कोरोना पहले मुसलमान हुआ अब कश्मीर बन गया
कोरोना पहले मुसलमान हुआ अब कश्मीर बन गया है
[अब्दुल मोईद अज़हरी]
कोरोना महामारी की आड़ में जिस तरह से समाज को
नफ़रत और साम्प्रदायिकता की आग में झोका जा रहा है वह बेहद दुखद और निंदनीय है।
तबलीगी जमात के गुनाहों की सज़ा जिस तरह से भारत मुसलमानों को मिल रही है ऐसा
प्रतीत होता है भारत की सत्ताधारी राजनीति को इसी बात का इंतजार था। जबकि तबलीगी
जमात के गुनाहों में शासन प्रशासन भी बराबर का मुजरिम है। मीडिया की संविधान
विरोधी विचारधारा ने देश को फिर से बाँटने की ठान रखी है। सत्ता के कोठे पर मीडिया
का यह नाच उन आवारा सरफिरों को इकठ्ठा कर रहा है जिन के दिमाग में नफ़रत और
साम्प्रदायिकता का ज़हर राजनीति के ग्लूकोस से पूरी तरह से भरा जा चुका है।
कोरोना जिहाद नाम का प्रोपगंडा अपना काम कर
चुका है। देश के अलग अलग हिस्सों में शहर से लेकर गाँव तक हिन्दू मुस्लिम की
राजनैतिक दूरी का खंजर अपने ही देश की पीठ पर घोंपने के लिए बांटा जा चुका है।
सब्ज़ी, राशन, फल के बाद अब दवा और अस्पताल भी इस भारत
विरोधी साजिश का शिकार हो चुके हैं। एक से ज़्यादा केस सामने आ चुके हैं जहाँ समुदाय
विशेष होने की वजह से इलाज नहीं किया गया और उस की मौत हो गई। साथ ही कोरोना
टेस्टिंग का एक दूसरा घिनौना सच यह भी सामने आ रहा है मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों
में पुलिस और डॉक्टर्स की मनमानी अपने चरम पर है। किसी को भी उठाकर बिना किसी
प्रॉपर टेस्टिंग के बगैर उसे कोरोना संक्रमित घोषित करके घर वालों को प्रताड़ित
किया जा रहा है।
यह कोरोना महामारी भारत के अलावा विश्व भर में
एक बीमारी है लेकिन भारत में यह एक राजनैतिक मौक़ा है जिस की आड़ में वोट पोलराइज़ेशन
का गेम चल रहा है। गेम की की सेफ्टी के लिए इस पर कश्मीर की तरह का एक लेबल भी लगा
हुआ जिस की वजह से आप ज़्यादा सवाल नहीं कर सकते और न ही इस का विरोध हो सकता है।
जिस तरह से कश्मीर की ज़मीन सियासत की भट्टी बनी हुई है और कश्मीरी उस में झुलस रहे
हैं उसी तरह से कोरोना महामारी की आड़ में NRC की प्रक्रिया होती दिख रही है।
इस में कोई संदेह नहीं है कि तबलीगी जमात ने
गलती की है उन्हों ने अपराध किया है। उस की उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए। लेकिन इस
अपराध को धर्म और जाति का राजनैतिक रंग देना भारत को पीछे धकेलना है। ऐसा नहीं है
कि इस कोरोना की चपेट में कोई एक धर्म समुदाय या जाती और वर्ग के लोग आये हैं। फ़िर
इस महामारी को किसी धर्म या समुदाय विशेष के विरुद्ध राजनैतिक द्रष्टिकोण से जोड़ना
किसी जघन्य अपराध से कम नहीं।
आज हालात यह हैं कि लोग सब्ज़ी फल राशन और दूसरा
सामान नाम पूछ कर खरीद और बेच रहे हैं। कोरोना पर लोगों का ध्यान केन्द्रित न होने
पाए इस के लिए एक और महामारी शुरू कर दी गयी। कोरोना से तो शायद देश महीने दो
महीने या साल भर में निपट लेगा लेकिन इस महामारी की चादर में फैलने वाली नफ़रत और
साम्प्रदायिकता की महामारी से देश कैसे बचेंगे।
धर्म को मुल्क और मानवता के विरुद्ध खड़ा होने
से बचाएं। नहीं तो न धर्म बचेगा न ही मनुष्यता। जागिये इस से पहले कि आप को धर्म
की अफीम के नशे में बेहोश कर के मानवता के नरसंहार में इस्तेमाल कर लिया जाये।
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