रवीश कुमार जी! आप ने संविधान के प्रति दम तोडती उम्मीद को ताक़त दे दी।
[अब्दुल मोईद अज़हरी]
दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में पत्रकारिता को ना सिर्फ़ संवैधानिक महत्वता
हासिल होती है बल्कि उस लोकतान्त्रिक ढांचे के एक पायदान समझा जाता है। हमारे देश
भारत में भी यही था पर अब नहीं है। ख़ुद लोकतंत्र के बुझते चराग के अँधेरे में
उम्मीद के एक दो जुगनू ज़िन्दगी दांव पर लगाये तो हुए हैं लेकिन उस से क्या हासिल।
शायद आज़ादी की तारीख़ उन मुर्दा आत्माओं में नैतिकता, बलिदान, सिधांत, ज़मीर और
आत्मसम्मान की जान डालने में असफ़ल हो रही है। क्यूंकि मौत यह नहीं है कि इन्सान की
आत्मा उस का शरीर छोड़ दे बल्कि मौत यह है कि इन्सान कि आत्मा में उस का ज़मीर मर
जाये।
रवीश कुमार जी! इतिहास तुम्हे याद रखेगा। आने वाली नस्लें जब तुम्हें पढ़ेंगी
तो उन के भी बच्चे तुम पर गर्व करेंगे जिन के बाप दादाओं ने चंद टुकड़ों की खातिर
अपना ज़मीर ही नहीं बल्कि देश के लोकतंत्र को कुच्छ पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रख
दिया था।
समाज के हर वर्ग, ग़रीब, पिछले, आदिवासी, जाति, धर्म, रंग, भाषा और
क्षेत्र के नाम पर शोषित, महिला, बच्चे बुज़ुर्ग, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, देश के जवान और किसानों की मूल समस्याओं को
सरकार के सामने रख कर आप ने लोकतंत्र के विश्वास को जीवित रखा है। मुझे उम्मीद ही
नहीं बल्कि यकीन है की उम्मीद के इस बुझते चराग को एक दिन सहारे और समर्थन की
उर्जा ज़रूर मिलेगी।
प्रार्शन के इतिहास के पन्नों में मैं अभी तक कोई ऐसा नहीं पढ़ा जिस में 2 माह
के बच्चे से ले कर 80 साल की बुज़ुर्ग महिलाएं 2 डिग्री तापमान की सर्दी में तिरंगा
लेकर देश के संविधान के लिए सडकों पर एक महीने बैठी हों। देश की तारीख़ ने यह भी
नैन देखा होगा कि तिरंगे में लिपटे लगभग 17 वर्षीय युवा को चाकू से गोद कर इस लिए
मार दिया गया हो कि वो संविधान की रक्षा के नाम पर सड़क पर निकाल आया था।
रवीश कुमार जी! इन सब से बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि इन ख़बरों के लिए देश के
बड़े मीडिया चैनलों को समय ही नहीं मिला और जिन्हों ने समय निकाला भी तो उन्हों ने
भी लोकतंत्र का गला घोंटने का ही काम किया। मज़लूम को मुजरिम बना डाला।
रवीश कुमार जी! दिल्ली के शाहीन बाग में बैठी इन महिलाओं और बचों का पूछने
सत्ता का कोई मंत्री नहीं आया और भाषणों में कहते रहे कि हम समझाने की कोशिश
करेंगे। घर घर जायेंगे।
रवीश कुमार जी! इन का हाल पूछने तो वह भी नहीं आये जिन्हों ने ट्विटर, पर
प्रेस कांफ्रेंस में विरोध का समर्थन किया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री से ले कर
कांग्रेस के राहुल और प्रियंका तक कोई नहीं आया।
रवीश कुमार जी! आप को ज़्यादा मालूम होगा कि इन्हें किस बात का डर सता रहा है
और यह डर कितना वास्तविक और स्वाभाविक है।
रवीश कुमार जी! मुझे एक बात समझ में नहीं आयी कि बहुमत में आयी सरकार, बहुमत से पारित अधिनियम, राष्ट्रपति से हस्ताक्षरित क़ानून को भी जनता के समर्थन कि आवश्यकता क्यूँ कर
पड़ गई। सरकार क़ानून पर समर्थन मांग रही है।
रवीश कुमार जी! दिल की गहराइयों से आप का धन्यवाद! शाहीन बाग पहुँच कर आप ने सिर्फ़
उन महिलाओं, बच्चों, नौजवानों और बुजुर्गों का मान नहीं रखा है बल्कि आप ने
संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक
मूल्यों के प्रति दम तोडती उम्मीद जिंदा कर दिया है।
Facebook: https://www.facebook.com/ Abdulmoid07/
@@---Save Water, Tree and Girl Child Save the World---@@

No comments:
Post a Comment