Sunday, February 19, 2017

न्याय के लिए तड़पती यूपी! क्या इस बार मिलेगा इंसाफ ?

न्याय के लिए तड़पती यूपी! क्या इस बार मिलेगा इंसाफ ?

अब्दुल मोइद अज़हरी

यू पी विधान सभा चुनाव में अब हुए दो चरणों के मतदान ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। सारेझूटे वादों और नाटकीय गठबन्धनों को क़रारी परास्त होने वाली है। दलित मुस्लिम के साथ इस बार उत्तर प्रदेश की जनता ने अपना मन बना लिया है।पिछली सरकार की नाकामियों को सबक़ सिखाने की ठान लिया है। झूटे वादों और साम्प्रदायिकता के विरुद्ध भी शशक्त रुझान देखने को मिले हैं। अब तक के आंकड़ों ने यह तो तय कर दिया है कि पिछली सरकार पूर्ण बहुमत से दोहराई नहीं जाएगी। इस बार की पूरी चुनावी रणनीतियों में सभी राजनैतिक छोटी बड़ी पार्टिओं एवं अराजनैतिक छोटे बड़े दलों, समूहों और संगठनों ने सामूहिक तौर बहुजन समाज पार्टी को अनदेखा किया लेकिन दोनों चरणों के अनुभवों ने यह प्रतीत कर दिया कि बसपा को अनदेखा करना सब की बड़ी भूल थी।
झूटी अफवाहें, आपत्ति जनक टिप्पड़ियां, भावुक भाषण, कटाक्ष और सांप्रदायिक माहौल बनाने जैसे काम आज की राजनैतिक रणनीतियां हैं। अपनीबातों को सही से रखने की बजाए दूसरों के निजी मामलों की खोज ज्यादा होती है। जितनी ज्यादा बुराइयाँ गिनाई जाएँ उतना ही सफ़ल मिशन समझा जाता है। किसी को हराने की इतनी ज्यादा जिद हो जाती है कि अपनी जीत भूल जाते हैं।अंत में वही होता है जिसे रोकने का प्रयास किया गया था। जितने भी गड़े मुर्दे हैं सब चुनावी दिनों में उखाड़े जाते हैं।विपक्ष के बाद एक ही मुद्दा होता है कि सत्ताधारी पार्टी ने कितना घोटाला किया है,इस सरकार में कितने दंगे हुए हैं,कितनोंको बगैर गुनाह किये सजा मिली है, कितने मुजरिमों के हौसले बुलंद हुए हैं इत्यादि।
खुलकर चुनावी मैदान में आई आल इंडिया उलमा व मशाईख़ बोर्ड ने भी शानदार शुरुआत की है। कईयों के खेल बिगाड़ दिए हैं। मायावती का समर्थन दे कर सब से पहले लोगों को चौंकाने वाला काम किया। उस के बाद “अबकी बार बसपा सरकार”का ऐसा अभियान चलाया कि बड़े बड़े राजनैतिक महारथियों को पीछे छोड़ दिया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उन के तेज़ अभियान के असर ने इतना काम किया कि सभी को बाक़ी चुनावी मतदान चरणों के लिए सब को चौकन्ना कर दिया है। इस वक़्त आल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड की सभी शाखाएं, और लाखों की तादाद में बोर्ड के समर्थक पूरी तरह से सय्यद मुहम्मद अशरफ किछोछवी के पिछले चलने का मन बना चुके हैं। आखिर हर बार किसी न किसी को वोट देते ही हैं और इस बार भी देना है तो क्यूँ न इस बार इन्हीं की अगुवाई में चला जाये जैसे विचारों ने सौदे बाजों की नींदें उड़ा दी हैं।
सय्यद मुहम्मद अशरफ किछोछ्वी से निजी बात चीत के दौरान उन्हों ने कहा कि ने हमेशा ही लोगों के हित की बात ही है। उन्हें इंसाफ और उनका हक दिलाने की लड़ाई लड़ी है। मेरा सीधे सियासत से न कल सम्बन्ध था और न ही कल होगा लेकिन आज राजनीति की बदलती परिभाषा के परिपेक्ष में यह ज़रूरी हो गया था कि निस्वार्थ सर्व जन हिताय और बहुजन सुखाय की कर्म रूपी परिभाषा दिखाई जाये उस के साथ तमाम राजनैतिक दलों को इस बात से भी अवगत कराया जाये कि राजनैतिक स्वार्थ के लिए अपने धर्म और कर्म का सौदा करने वालों की संख्या भले से बढती जा रही हो लेकिन त्याग, तपस्या और बलिदान वाले लोग भी इस धरती पर बसते हैं। जो खुद का पेट भरने से पहले पड़ोस में देख लेते हैं कि कोई भूका तो नहीं या कम से कम इतना तो ज़रूर देखते हैं कि खुद के और परिवार के मुख से उतरने वाले निवाले किसी का हक छीन कर तो नहीं आये हैं।
दोनों चरणों के मतदानों से बसपा के साथ आल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड और उस के समर्थकों के हौसले बुलंद हैं। चुनावी दौरा पर पहुंचे आल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड यूथ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सय्यद आलमगीर अशरफ किछोछ्वी ने अपने एक बयान में कहा कि इस वक़्त यू पी बड़ी विषम परिस्थितिओं से गुज़र रही है। इन पांच वर्षों में यू पी की जनता ने ने लूट, बलात्कार, हत्या और साम्प्रदायिक दंगो में अपने आप को घिरा पाया। कानून के रखवालों ने दिल खोल कर कानून का मजाक उड़ाया। महिलाओं का शोषण होता रहा और बयान आते रहे कि बच्चों से गलतियाँ हो जाती हैं। हाशिमपुरा के मजलूमों को 16 वर्षों बाद भी न्याय नहीं मिला। दादरी और मुज़फ्फर नगर ने भी कानून और न्याय व्यवस्था को कटघरे में ला कर खड़ा कर दिया। ज़ुल्म और तांडव का नंगा नाच होता रहा और इंसाफ दूर कोने में कड़ी सिसकती रही। रोटी कपडा और मकान न देकर रक्षा और सुरक्षा भी छीन ली।
सय्यद आलमगीर अशरफ ने निजी बात चीत के दौरान कहा कि इस वक़्त उत्तर प्रदेश को सब से ज्यादा ज़रूरत न्याय व्यवस्था को दुरुस्त करने की है। किस ने ज्यादा मारा और किस ने कम मारा के आंकड़ों को गिनाते गिनाते सरकारों की अदला बदली हो जाती है। बस न्याय खुद कटघरे में खड़ा बेबस और मजबूर आँखों से रिहाई की अपील करता है। यू पी को ऐसे शासन और प्रशासन की आवश्यकता है जो प्रदेश में कानून बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था को सुधर सके. तत्कालीन और कड़े निर्णय लेने में सक्षम हो। सब के विकास की सिर्फ बात न करे बल्कि उसे कर के दिखाए। यह यू पी का राजनैतिक इतिहास बताता है कि जब कभी भी गुंडा गर्दी और राजनैतिक शरण में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिला और एक शसक्त शासन कल की आवश्यकता हुई है तो बहुजन समाज की सरकार ने यह ज़िम्मेदारी उठाई है। यह मेरा ही नहीं बल्कि यू पी की बहुमत जनता और सभी विरोधी दलों का भी मानना है कि बसपा सरकार आते ही गुंडा गर्दी और लूटमार बंद हो जाती है। कानून और न्याय व्यवस्था मजबूत होती है। लोगों में न्याय मिलने की उम्मीदें जाग जाती हैं। भय से मुक्ति मिल जाती है।
इसी लिए इस बार यू पी में बसपा की सरकार आना अति आवश्यक है। गुंडा राज, लूटमार, हत्याएं, बलात्कार और सांप्रदायिक दंगों से मुक्ति मिलते ही विकास के रस्ते अपने आप खुल जायेंगे। उस के लिए अपील करने और उस के बाद जताने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और न ही नाकामियों को छुपाने के लिए नाटक करने की आवश्यकता होगी।
अंत में उन्हों ने कहा कि बोर्ड न तो पहले कभी व्यक्तिगत हुआ है और ही आज है। सवाल इंसाफ और लोगों के हक का है। कौन अच्छा और कौन बुरा है यह तय करना हमारा काम नहीं। क्या अच्छा और क्या बुरा है हम इस बारे में बात करते हैं।


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Saturday, February 11, 2017

मेरा नजीब मुझे वापस दे दो!

मेरा नजीब मुझे वापस दे दो!
अब्दुल मोईद अज़हरी

भारत की पहचान भारत का संविधान और उस संबिधान के प्रति तमाम भारतीय का विश्वास है। पूर्ण विश्व में बहुसंख्यक देश होने के बावजूद आपसी सदभाव प्रेरणा दायक है। यह अकेला देश है बहुधार्मिक होने के साथ साथ विभिन्न संस्कृति और परम्पराओं कास्थान है। इस देश की अन्य विशेषताओं में से एक धार्मिक और वक्तिगत आज़ादी है। यही वजह है कि एक साथ मंदिर और शिवालों से घंटियों और आरतियों की मधुर आराधनायें सुनाई देती हैं और मस्जिद व दरगाह से अज़ान व ज़िक्र की सदायें बुलंद होती है। गुरूद्वारे में कीर्तन के साथ ईसा मसीह के चर्च में प्रेयर होता है।यही इस देश का सौंदर्य, स्वाभिमान, गर्व और गरिमा है।
यहहमारा दुर्भाग्य है किहमइस देश की एकता और अखंडता को अपनी आँखों से टूटता हुआ देख रहे हैं।इस देश को यह दशा और दिशा देने वालों ने अपने प्राणों की आहुति दी।जन,जान, माल और मर्यादा का बलिदान दिया। सुख, सुकून, मोह और माया को त्याग दिया ताकि ऐसे देश के सपने को साकार कर सकें जिस में सिक्षा, सुरक्षा, श्रधाऔर समानता की नदियाँ तमाम हिंदुस्तानिओं पर अपनी प्रेम और कोमलता को न्योछावर करें।आर्थिक, सामाजिक, न्यायिक, धार्मिक और राजनैतिक स्तर में ईमानदारी की बढ़ोतरी हो। किसी भी भारतीय को उस की जाति, धर्म या समुदाय के नाम पर आहत न किया जाये। धनवान गरीबों के साथ अत्याचार और दुर्व्यवहार न कर सकें।
अनेकता में एकता के लिए उदाहरण दिए जाने वाले देश में जिस तरह से सामाजिक, न्यायिक, धार्मिक और राजनैतिक स्तर गिरा है वो निंदनीय और गहन विचार का विषय है। न्यायिक स्तर में आयी भारी गिरावट ने देश के उन वीरों की आत्माओं को नस्तर लगाने का काम किया है जिन्हों ने देश की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। न्याय भी अब वयक्ति देख कर मिलने लगा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि न्याय को खरीदने की परंपरागत शुरुआत हो गई है। ऐसे में व्यक्ति विशेष और खास समुदाय और समूहों की जेब में या कुर्सियों में दब कर रह गया है। ऐसे में सामाजिक मूल्यों के ऊपर कर्तव्य का भार आ जाता है लेकिन राजनीति छल और कुनितिओं के चलते उस में संदेह और दुर्व्यवहार की भावनाएं उत्पन्न होने लगीं। धार्मिक गुरुओं ने भी अपनी गुणवत्ता को अपने अपने धर्माश्रमों, पूजा स्थानों और इबादत गाहों तक सिमित कर लिया।
आज सब से बड़ा सवाल और सुरक्षा का है। इस लोकतंत्र देश का हर नागरिक अपने देश के मुखिया से कम से कम इतनी तो आशा रख सकता है कि इस देश कोविश्वमें शिखर पर पहुँचाने के लिए सामूहिक प्रयास करे जिस के लिए सिक्षा और हुनर के अवसर मिलते रहेंगे। दूसरी सब से बड़ी आशा रोटीकपड़ा और मकान के बाद यह होती है कि हर नागरिक की सुरक्षा को विश्वसनीय बनाया जाये।
पिछले दो वर्षों में विशेष कर और इक्कीसवीं शताब्दी में आम तौर पर इन तमाम मूल्यों का न सिर्फ हनन हो रहा है बल्कि ख़ुदउनके साथ अत्याचार और दुर्व्यवहार हो रहा है। तो देश का हल क्या होगा यह कहना कठिन है। देशका मन जाना विश्व विद्यालय जवाहर लाल नेहरु विश्व विद्यालय ने अपने इतिहास के पुराने पन्नों में ऐसे दिन नहीं देखे होंगे जैसे हालत उस ने 2016 में देखे हैं। हैदराबाद बाद के एक विश्व विद्यालय के एक होनहार छात्र रोहित वेमुला के साथ जो हुआ इतिहास के पन्नों में लाल सियाही से लिखा जायेगा। यह एक रोहित का मर्डर नहीं था बल्कि शिक्षा का गला घोंटा गया था। या फिर यह एक संकेत था कि अगर किसी ने भी देश के संविधान के प्रति विश्वास दिखाकर वर्तमान भ्रष्ट राजनीती के विरुद्ध जाने की कोशिश करेगा उसे रोहित वेमुला बना दिया जायेगा। यह देश के नागरिक के साथ नहीं बल्कि देश के साथ मज़ाक किया गया था।
दिन को 12:00 बजे विश्व विद्यालय के छात्रावास से एक विद्यार्थी को किडनैप कर लिया जाता है और शासन एवं प्रशासन दोनों ही अपनी अपनी कुर्सिओं पर बैठ कर दुसरे नजीब की तयारी कर रहे हैं। यह दोनों ही हादसे सिर्फ और सिर्फ उदाहरण के लिए हैं कि कोई भी भ्रष्ट नीतियों के विरुद्ध जाने की कोशिश न करे। ऐसे सैकड़ों हादसे रोज़ हो रहे हैं लेकिन उस पर कोई भी कान धरने को तैयार नहीं। एक माँ अपने बच्चे की तलाश में महीनों छात्रावास का चक्कर लगाती है लेकिन उसे जवाब आंसू, धक्के, गलियां और दरबारों के चक्कर के सिवा कुछ न मिला।पूरा छात्रावास भय और निराशा के अँधेरे में डूब गया लेकिन देश धुरंधर अपने महलों की चकाचौंध से नीचे आने को तैयार नहीं। देश के मौलिक अधिकारों का चीर हरण होता रहे अपना सिक्का भ्रष्टाचार के बाज़ार में चलता और छनकता रहे।
जे.एन.यू. के छात्रों को लगा कि अगर हम देश के संविधान के लिए खड़े न हो सके और न्यायके लिए आवाज़ न उठा सके तो फिर शिक्षा का क्या फायदा। विद्यार्थिओं को सब से पहले देश और देश के संविधान की शिक्षा दी जाती है। उस प्रति समर्पित रहना और और उसकी सुरक्षा को विश्वसनीय बनाना गुरुदाक्षिना में शामिल है। ऐसे में हर विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वहअन्याय के विरुद्ध शशक्त आवाज़ उठाये और शिक्षा के प्रति हो रहे निरंतर अत्याचार को रोके। छात्रों का अपने अधिकारों के लिए धरना देना अपने आप में ही चर्चा का विषय है कि ऐसी स्थिति क्यूँ आई कि विद्यार्थिओं को धरना देने की ज़रूरत पड़ गयी। वर्तमान स्थिति यह है किबिना धरना दिया और चीखे चिल्लाये और लाठी डंडा खाए न्याय मिलना मुश्किल ही नहीं न मुमकिन होता जा रहा है। जब छात्र भूक हड़ताल पर बैठने को मजबूर हो जाएँ तो मौक़ा की नजाकत का अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं। पिछले कई दिनों से जे.एन.यू. संगठन के साथ छात्र भूक हड़ताल कर रहे हैं.
उन में से शायद किसी का भी नजीब से सीधा कोई सम्बन्ध नहीं होगा। अलग प्रदेश के भी लोग हैं। लेकिन फिर भी वह खाना पानी त्याग दे कर मुखिययों को अपनी ओर आकर्षित कर के न्याय मांग रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि यह भूक हड़ताल एक आन्दोलन बन जाये और फिर एक ऐसी लहर उठे जो अपनी गति हर धुरंधरों को बहा ले जाये।
सवाल देश की जनता से है। सभी छात्रों से है। शिक्षकों और शिक्षा से जुड़े सभी महानुभाओं से है। एक आम आदमी से लेकर देश के मुखिया से है। महीनों से रो रही माँ का सवाल देश के हर नागरिक को रोटी कपड़ाऔर मकान के साथ रक्षा और सुरक्षा देने वाले ज़िम्मेदार से है। नजीब कहाँ है ?

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UP Assembly Election 2017 Dalits and Muslims یو پی اسمبلی انتخابات: سب کی نگاہیں دلت مسلم پر مرکوز


یو پی اسمبلی انتخابات: سب کی نگاہیں دلت مسلم پر مرکوز

عبد المعید ازہری

یہ موجودہ سیاست کی ناکامی ہے یا سیاست دانوں کی نا اہلی ہے کہ سیاست کا با ضابطہ تعمیر ترقی کا خاکہ تعصب اور بے ایمانی کی نظر ہوتا جا رہا ہے۔ آج کے انتخابات کیلئے پیسہ، پاور اور ظلم و زیادتی لازم ہوتے جا رہے ہیں۔ دنگے اور فرقہ وارانہ فسادات کسی بھی انتخابی مہم کا اہم حصّہ ہوتے جا رہے ہیں۔ اشتعال انگیز تقریریں، جذبات کو مجروح کرنے اور انھیں ابھارنے والے بیانات و تحریریں، نفرت و تشدد کا پروپیگنڈا، لالچ، مکر و فریب اور بلیک میلنگ جیسے فتنہ پرور افکار و نظریات موجودہ سیاست کے مینوفیسٹو میں شامل ہیں۔ ایسے میں شرافت، ایمانداری اور دیانت داری اپنے دامن کو بچاتے پھر رہے ہیں۔ تعمیر و ترقی کی مسدود راہیں مزید بے چینی کا شکار ہو رہی ہیں۔ سیاسی معیار اتنا گرتا جا رہا ہے کہ کوئی بھی اسے سنبھالنے میں جھجھک محسوس کر رہا ہے۔ بین الاقوامی سیاست کے استحصالی رویہ کا شکار مسلم قوم اب اپنے وطن میں بھی مظلوم ہوتی جا رہی ہے۔
یو پی اسمبلی انتخاب کا بگل بج چکا ہے۔ دام و فریب اپنے شباب پر ہے۔ شکاری اپنے نئے جال کے ساتھ تیار ہیں۔ برساتی مینڈک بھی میدان میں ہیں۔ کچھ پرانے تیر بھی آزمائے جا رہے ہیں۔ سب کا ہدف قوم مسلم ہے۔ سب کی توجہ کا مرکز صرف مسلمان ہیں۔ یہ اور بات ہے کہ کسی کو بھی ان کی پرواہ نہیں ہے۔ کوئی حب علی میں ہے تو کوئی بغض معاویہ میں ۔کچھ یزید اور ابو جھل بھی ہیں۔ عین انتخاب کے دن تک سیاسی بازیگری چلتی رہے گی۔ کسی سے اتحاد تو کسی سے بغاوت کا وقتی اور فریبی کھیل کھیلا جائے گا۔ کچھ پتے ابھی بھی کھلنے باقی ہیں۔ کچھ اپنا کام چکے ہے اور کچھ کر رہے ہیں۔
بہن جی کی پارٹی اپنی داخلہ پریشانیوں سے ابھرتی نظر آ رہا ہے۔سائکل اور پنجے کا ڈرامائی اتحاد بھی اپنااثر ڈالنے کی کوشش کر رہے ہیں۔ اس اتحاد میں کس کا فائدہ اور کس کا نقصان ہے یہ کہنا مشکل ہے۔ اب یہ بات اتحادیوں کو بھی پتہ ہے کہ نہیں کچھ کہہ نہیں سکتے۔کانگریس نے ایسا کیا کیا ہے جس کی بنیاد پر اس کی سیٹیں بڑھنے والی ہیں۔ کانگریس کو جو 100سیٹیں ملی ہیں ان میں اکثر مسلم اکثریت علاقہ ہیں اور وہ تقریبا محفوظ سیٹیں ہیں۔ اب ایسے میں کانگریس کس بنیاد پر اپنا اثر ثابت کر پائے گی۔ سماج وادی پارٹی کا بیس اور بنیادی ووٹ 10 فیصد سی زیادہ نہیں۔ 70 سے 80 فیصد مسلمانوں کے ساتھ اقتدار کی کرسی حاصل کرتی رہی ہے۔ ایسے میں اسے کیوں لگ رہا ہے کہ اس بار مسلمان اسے ووٹ نہیں دیگا۔ اسلئے وہ کانگریس کے راہل گاندھی کے ذریعہ دلت کو اپنی طرف کھینچنا چاہتی ہے۔ کیا ایسا ہو سکتا ہیں کہ اس اتحاد کے باوجود سائکل کا محفوظ ووٹ کانگریس کی امیدوار کو جائے گا۔ اگر نہیں تو اس کا فائدہ کسے ملے گا۔ ایک سوال یہ بھی ہے کہ اگر سماجوادی پارٹی نے بڑے کام کئے ہیں اور سرکار بھی واضح اکثریت کی ہے تو ایسے میں کسی کے کندھے کی ضرورت کیوں پڑی۔ اس اتحاد سے سائکل اور بی جے پی کا فائدہ تو سمجھ یں آتا ہے لیکن کانگریس کی دلچسپی سمجھ سے پرے ہے۔
گھریلو مشکلوں سے ابھرتی ہوئی بہن کی ہاتھی نے اس بار نہایت ہی مستانی اور لبھاؤنی چال چلی ہے۔ اس بار بی ایس پی نے 103 مسلم امیدوار میدان میں اتارے ہیں۔ جو باقی تمام پارٹیوں کی مجموعی تعداد سے زیادہ ہے۔ ایسے میں اگر مسلمان ٹوٹا اور بکھرا تو تو وہی ہوگا جس سے جمہور سماج میں خوف ہے۔
یہ پروپیگنڈا سمجھ سے پرے ہے کہ یو پی میں بی جے پی کی سرکار بننے سے صرف راہل اور اکھلیش کا اتحاد ہی بچا سکتا ہے۔ لیکن اس کے پیچھے کی کوئی بھی لاجک یا وضاحت سمجھ میں نہیں آ رہی اور نہ ہی کوئی سمجھانے کو تیار ہے۔ دونوں ہی پارٹیوں نے اپنے کالے کارناموں پر پردہ ڈالنے کیلئے اتحاد کا چولا پہن لیا ہے۔ سائکل کی ملایم مینیفیسٹو پر اب تک عمل نہیں اور آنے والا نیا فارمولا بھی واضح نہیں۔
اس بار کا انتخاب ایک ہی مدعی کے ارد گرد گھومتا نظر آ رہا ہے۔بی جے پی کے علاوہ سبھی کی نظر دلت مسلم کے اتحاد پر ہے۔ وہیں بی جے کی پالیسی انتشار کی ہے۔ جتنا بکھراؤ ہوگا کمل کی رہیں اتنی ہی ہموار ہوں گی۔ 92 کے بعد جب مسلم کانگریس سے ٹوٹا ہے۔ سماج وادی کے ساتھ اکثر رہا ہے۔ ابھی راہل کی ریلی سے لوگوں کو لگتا ہے کہ دلت کا رجحان اس شہزادے کی جانب بڑھا ہے کیونکہ کھیت میں پھاوڑا ڈالنے، چھپر کے نیچے ڈال روٹی خانے اور چارپائی پر چرچا کرنے سے لوگوں نے اندازہ لگا لیا ہے کہ اس وقت دلت کی مسیحائی کا تمغہ راہل بھیا کے پاس ہے ۔بس اسی بنیاد پر دلت مسلم اتحاد کے سپنے دن میں ہی دیکھے جا رہے ہیں۔
سچائی کچھ اور ہی بیان کر رہی ہے۔ ان دونوں ہی پارٹیوں کے پاس نہ تو دلت کا ووٹ بینک ہے اور نہ ہی اب مسلمانوں کی اکثریتی حمایت ہے۔ پچھلی سرکار میں کئے گئے وعدوں کو پورا نہ کرنے کی وجہ سے کیا دوبارہ مسلمان غلطی دوہرائے گا۔ وہیں دوسری طرف 22 سے 23 فیصد کا دلت ووٹ بینک بہن جی کے پاس پہلے ہی سے موجود ہے۔ 103 امیدواروں کی وجہ 18 سے 19 فیصد مسلمانوں کے ووٹ پر ان کی گہری نظر ہے۔ پچھلے انتخاب کے کچھ کاغذی ریکارڈز کے مطابق بی ایس پی کا سماج وادی سے ووٹ تناسب صرف 2 فیصد کم تھا۔ جب کہ مسلمانوں نے پوری اکثریت کے ساتھ سائکل کی سواری کی تھی۔ ایسے میں ہاتھی کی چال بری نہیں۔
بی ایس پی کے پاس ایک اور مثبت پلس پوائنٹ ہے۔ وہ یہ ہے کہ ہندوستانی اکثریتی صوفی سنی مسلمانوں کی تنظیم آل انڈیا علماء و مشائخ بورڈ نے بھی بی ایس پی کی حمایت کا اعلان کر دیا ہے۔ اس سے ہر مسلم علاقہ سے ووٹوں پر فرق پڑنا یقینی ہے۔ اس کا واضح ثبوت پچھلے دو ہفتوں سے بورڈ کے بانی و صدر سید محمد اشرف کچھوچھوی کے میدان میں کودتے ہی نظر آ گیا۔ سیاسی گلیاروں میں مچی کھلبلی نے اشارہ کر دیا کہ اس بار مسلمان ہاتھی پر سوار ہونے کو تیار ہیں۔ سید محمد اشرف کچھوچھوی نے بھی اپنی مضبوط دعوی داری سے ہاتھی کی چال میں رفتار بھر دی ہے۔ یو پی کے بیسوں ضلعوں میں بورڈ کی شاخ سرگرم ہو گئی ہے۔ ایک ہفتہ کے اندر پورا نقشہ ہی بدل کر رکھ دیا ہے۔
ان کے مطابق اس بار مسلمانوں کے پاس ایک اختیار بچا ہے وہ یہ کہ ہاتھی پر سوار ہو جائیں۔ پچھلے لوک سبھا الیکشن کی غلطی دوہرانے کی غلطی نہ کریں۔ کسی کو ہرانے کے چکر میں اتنا غافل نہ ہو جائیں کہ بڑے نقصان کا سامنا کرنا پڑے۔ سائکل پر بیٹھے راہل کی وجہ سے اگر کچھ ہونے والا ہوتا تو اس اتحاد کی نوبت ہی نہیں آتی۔
آنے والے دن اور تصویر کا رخ کچھ اور صاف کر دیں گے۔ آل انڈیا علماء و مشائخ بورڈ کے اچانک میدان میں آنے سے فریب کاری اور دھوکہ دھڑی کی جھوٹی عمارت تو گری ہے۔ اب دیکھنا یہ ہے کہ باقی چھوٹی چھوٹی مسلم پارٹیوں کے درمیان آل انڈیا علماء و مشائخ بورڈ اور سید محمد اشرف کچھوچھوی مسلمانوں کو حکمت عملی اور دور اندیشی سے کتنا اگاہ کر سکتے ہیں۔ البتہ بی ایس پی سپریمو مایا وتی کا یہ اقدام اب تک سب سے زوردار سیاسی پنچ ہے۔
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Friday, February 10, 2017

ہندوستان میں اسلامی خطاطی کی روایت Islamic Calligraphy in India


ہندوستان میں اسلامی خطاطی کی روایت

عبد المعید ازہری


خطاطی اسلامی فنکاری کا ایک اعلی نمونہ ہے۔ جس طرح فن تعمیر کا رعب پوری دنیا پر ہے۔ یہ خاصہ بھی اسلامی فنون کے حصّے میں موجود ہے۔ اسلامی خطاطی کو بلند و معیاری مقبولیت اسلئے بھی ملی کیونکہ اس کی شروعات عربی زبان سے ہوئی۔ اس زبان کو اہمیت اور افضلیت اسلئے مقدر ہے کیونکہ قرآن مقدس کی زبان بھی عربی ہے۔ عرب کی تصویر گری اور نقش کاری پوری دنیا میں مشہور ہے لیکن چونکہ مجسّمہ سازی یا تصویر سازی کو علماء دین اور فقہاء اسلام نے حرام قرار دیا اسلئے ساری فنکاری خطاطی کی جانب منتقل ہو گئی اسی لئے اس میں حد درجہ نکھار اور جاذبیت پیدا ہو گئی۔ وقت کے ساتھ نئے نئے ایجادات بھی ہوتے گئے اور خطاطی اسلامی فنکارانہ اظہار کی اہم اور بڑی شکل میں منتقل ہو گئی۔ آج خطاطی کی دسیوں قسمیں موجود ہیں۔ عربی زبان کی قید و حدود سے یہ فن نکل کر دنیا کی متعدد قدیم اور مقبول زبانوں تک پہنچ گئی۔ عربی زبان کی برکت و تہذیب کو لے کر یہ فن فارسی، ترکی، شمالی افریقی بربر زبانوں، کردش، مالی اور اردو زبان وغیرہ میں سرایت کر گئی۔ اردو زبان و ادب کے فراغ میں بھی اس خطاطی کی بڑی کارگر اہمیت ہے۔
اس خطاطی میں دلچسپی کو قرانی آیات و نبوی پیغامات سے راہ ملی۔ قرآن کی شروعات پڑھو سے ہوئی۔ کتابت اس کا لازمی و لا ینفک جزء ہے۔ اقراء کے بعد ہی قلم کے علم کا ذکر اس کی واضح دلیل ہے۔ سورۃ نون کی تفسیر میں مفسرین نے نون کو دوات اور قلم کو قلم کے معنی میں لیا ہے۔ حرف نون کی شکل بھی دوات کی طرح ہے اسلئے بھی کتابت کو ایک مضبوط راہ ملی، اسکے علاوہ بھی کئی آیات نے کتابت کی جانب نہ صرف توجہ دی ہے بلکی ترغیب بھی دی ہے. پیغمبر اسلام کی زبانی اس فن کو بڑی تقویت ملی ہے۔ آپ صلعم نے فرمایا جس نے خوبصورتی کے ساتھ بسم اللہ لکھا اس کے لئے عظیم اجر ہے اور جنت میں مقام خاص ہے۔ ایک اور جگہ ہے کہ اگر حسن نیت کے ساتھ خطاطی کی گئی تو اس کا بہترین بدل ہے۔
اس ضمن میں تین اہم ارشادات ہیں جن کی وجہ سے اس فن کو بسا اوقات عبادت کی طرح فروغ دیا گیا۔ اس میں ثواب کی نیت سے دلچسپی لی گئی ہے۔
آپ صلعم نے فرمایا جس نے بسم اللہ کو خوبصورتی سے لکھا یا جس نے جتنی خوبصورتی سے لکھا اس نے حق کو اتنا ہی واضح کیا ہے۔ حق کی نشر و اشاعت میں اتنا ہی اس کا حصہ ہے۔ تبلیغ و ترویج حق کے بارے میں بے شمار ارشادات موجود ہیں۔
دوسری جگہ ارشاد فرمایا علم کو کتابت کے ذریعے حاصل کرو اور پھیلاؤ۔ حصول علم کی ایک سے زائد قرآنی آیات و احادیث ہیں جو حصول علم کی فرضیت پر واضح اور روشن دلیل ہیں۔ حصول علم کے مختلف وسائل و ذرایع میں سے ایک کتابت ہے۔ اس لئے اس کتابت اور اس فنی و ادبی شکل خطاطی کو اتنی اہمیت و افضلیت حاصل ہے۔
تیسرا ارشاد ہے کہ رب صاحب جمال ہے اور جمال و خوبصورتی کو پسند کرتا ہے۔ لہذا ہر معاملے میں خوبصورتی کو پسند کرتا ہے۔ تحریری خوبصورتی بھی ایک فن بنا۔ ابتدائی دور میں اور آج بھی اکثر عربی الفاظ و جملوں کی خطاطی کی جاتی رہی ہے۔ اس میں بھی یا تو اسماء حسنی یا قرآنی آیات ہی خطاطی میں لکھے جاتے ہیں۔ اس فن کی اتنی شہرت و مقبولیت اسی کا فیضان معلوم ہوتا ہے۔
یوں تو خطاطی دور نبوی میں ہی شروع ہو گئی تھی۔ کیونکہ جو درہم و دینار خرید و فروخت میں استعمال ہوتے تھے ان پر کچھ نقش ہوتا یہ اور کچھ تحریر بھی ہوتا تھا۔ جب آپ صلعم کی انگوٹھی کی شکل میں جو مہر بنائی گئی تھی وہ بھی خطاطی کا ایک بہترین نمونہ کہا جا سکتا ہے۔ اس میں تین لفظوں کی تحریری خطاطی تھی۔ اس کے بعد وقت کے ساتھ اس میں نئے نقش بنتے گئے۔ اس فن کی شروعات ۸ویں صدی سے ہوئی۔ اب تک تعمیر و ترقی کے بے شمار مرحلے طے کر چکا ہے۔ آج خطاطی اسلامی فنکاری کا ایک اٹوٹ اور بے جوڑ حصہ بن چکا ہے۔ خطاطی مقدس و پاک و پاکیزہ (قرانی) تحریروں کو پیش کرنے کا ایک واحد اور بہترین ذریعہ بن گیا۔ اس کی ترویج و اشاعت میں محنتیں اور سرمایا کاری وقت، حالات و ضرورت کے پیش نظر ہوتی رہی۔
۸ویں صدی کوفی شکل میں شروع ہوئی خطاطی نے ۸ ویں صدی میں مغربی اور اندلسی فارم کو ایجاد کیا۔ ۱۰ویں صدی میں نسخ یا نسخی شکل،۱۱ ویں صدی میں ثلث ۱۴ اور۱۵ ویں میں طالق اور نستعلیق ۱۶ ویں اور۱۷ ویں صدی عیسوی میں دیوانی لہجہ وجود میں آیا. اس کے علاوہ ان کی الگ الگ اور قسمیں بھی ایجاد میں آئیں. جیسے سینی، محقق، رقعہ وغیرہ۔
خطاطی کے موجد عرب ہیں۔ اسلامی خطاطی مسلمانوں کی ایجاد ہے۔ ایسا کہا جاتا ہے کہ سب سے پہلے مسلم خطاط مولا علی علیہ السلام ہیں۔
جہاں ایک طرف خطاطی کی اسلامی شکل و شبیہ اس کی ترویج و اشاعت کی تاریخ آنکھوں کے سامنے ہے۔ اس میں مسلمانوں کی دلچسپی بھی واضح ہے۔ وہیں دوسری طرف یہ بھی ایک نا قابل فراموش حقیقت ہے کہ آج یہ فن زوال پذیر ہوتا جا رہا ہے۔ جس فن کو عبادت اورثواب کی نیت سے عروج بخشا گیا ہو آج وہ زبوں حالی کا شکار نظر آ رہا ہے۔ آج خود مسلمان اس فن سے مانوس ہوناتو در کنار اس کی تاریخ سے بھی واقف معلوم نہیں ہوتا ہے۔ مسلمانوں نے اس فن کو غیر ضروری بلکہ مکروہ و ناپسندیدہ کی حد تک ترک کر رکھا ہے۔ یہی وجہ ہے کہ آج خطاط کی جو حیثیت ہے وہ بڑی ہی قابل رحم ہے۔ غربت و مفلسی کے شکار ہیں۔ اس کے علاوہ تعظیم و توقیر کی نگاہوں سے محروم ہیں۔ ایک گمنام سی زندگی جی رہے ہیں۔ کس مپرسی کا عالم ہے۔ فن اور فنکار دونوں ہی اس امت مسلمہ کی خاطر خواہ توجہ کے طلبگار ہیں۔ دوسری جانب اس فن کا حال یہ ہے کہ اس فن کو بڑے اور متمول فنون میں گنا جاتا ہے۔ فنکاروں کو بڑی قدر اور توقیر کی نگاہوں سے دیکھا جاتا ہے۔ دل و تخت دونوں پر ایک ساتھ راج کرتے ہیں۔
ہندوستان میں اس فن کی ڈوبتی ہوئی امیدوں کو ایک مضبوط سہارا ملنے کی جھلک نظر آئی ہے۔ آثار و روایت کی حفاظت میں نمایاں کردار رکھنے والے درگاہ آثار شریف کے ذمہ دار اس فن اور فنکاروں کو زوال پذیری سے نکال کر کامیاب و سرخرو زندگی سے آشنا کرانے کی بڑی کوشش کرنے جا رہے ہیں۔
فروری مہینے میں ایک انٹرنیشنل میلاد النبی کے موقعہ پر خطاطی کا مقابلہ کرانے کا ارادہ کیا ہے۔ ملک و بیرون ملک سے خطاط کو دعوت دی جارہی ہے۔ متعینہ تاریخ سے ایک ماہ قبل تمام خطاطوں نے اپنا نمونہ پیش کیا۔ منتخب فنکاروں کو مدعو کیا جارہا ہے۔ ان کے جملہ اخراجات کو برداشت کیا جائے گا۔ ۲۰منتخب خطاط مقابلہ میں شرکت کریں گے۔ سبھی کو شرکت کا اعزاز دیا جائے گا۔ ان میں سے چھہ لوگوں کو خصوصی انعامات کے علاوہ ڈھائی سال کیلئے فن خطاطی میں خوبصورتی اور مہارت پیدا کرنے کیلئے ملیشیا بھیجا جائے گا۔ پورے اخراجات ادارہ اٹھائے گا۔ دو سال تک اسکالر شپ بھی ملے گی۔ اس پروگرام میں ملیشیا سے بڑی تعداد میں علماء مشائخ اور خطاط شرکت کریں گے۔ اس کے علاوہ کئی بڑی بین الاقوامی شخصیت کی شرکت ہوگی۔درگاہ آثار شریف کا یہ اقدام اس فن کی تعمیر و تشکیل نو میں میل کا پتھر ثابت ہوگی۔
اس کے علاوہ ہندوستان میں درگاہ آثار شریف خطاطی کا ایک بین الاقوامی ادارہ بھی کھولنے جا رہا ہے۔ جس میں خطاطی سکھائی جائے گی۔ قیام طعام کا بندوبست ہوگا۔اعلی اور معیاری قسم کا ادارہ ہوگا. فن کے اعتبار سے اور عمارت کے حساب سے بھی یہ ادارہ منفرد اور دیدہ زیب ہوگا۔
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