JNU पर हुए अटैक को आतंकी हमला
क्यूँ ना कहा जाये?
[अब्दुल मोईद अज़हरी]
जिस तरह से JNU, जामिया, अलीगढ़, बनारस जैसे
विश्वविद्यालय संघी आतंकियों के निशाने पर हैं इस ने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि
संविधान बदलना इतना आसान नहीं है। आज लगभग एक माह से पूरा देश NRC, CAA, और NPR को लेकर विरोध की आग में जल रहा है। देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, पर्यावरण
मंत्री अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं उन्हें करना क्या है। हठ धर्मी इतनी बढ़ गई है
कि देश को जला सकते हैं लेकिन अपने काले फ़ैसले में एक इंच भी बदलाव नहीं कर सकते।
यूपी में जिस तरह घर घर घुस कर लोगों को मारा गया, उन्हें लूटा गया और ख़ामोश करने का हिटलर तरीका अपनाया गया
उस ने देश के सामने आज़ादी के द्रश्य रख दिए जब भारत के आज़ादी के क्रांतिकारियों को
घर में घुस घुस कर मारा और लूटा जा रहा था। कल के गोरे अग्रेज़ ना कल भारत की आज़ादी
रोक पाए थे और ना आज के काले अंग्रेज़ आज संविधान के साथ खिलवाड़ कर पाएंगे।
आये दिन सौहार्द और सद्भाव विरोधी फैसलों से देश का इम्तिहान लिया जा रहा था।
धर्म, जाति, रंग, भाषा और क्षेत्र के नाम पर बाँट कर राजनीति का भरसक प्रयास
किया गया। अंधभक्त गुंडों की टोली भी बनायीं गई। लव जिहाद, मोब लिंचिंग, घर वापसी, तीन तलाक़, 370, राम
मंदिर जैसे मुद्दों के साथ भारतीय फ़ौज को भी राजनीति का शिकार बनाया गया। पुलवामा, उरी फर्जिकल स्ट्राइक में जनता की आँखों पर इमोशन की काली
पट्टी बांध कर देश के जवानों को अपमानित और पूंजी पतियों के क़र्ज़ माफ़ कर के,
उन्हें बड़े बड़े लोन दे कर विदेश भेजने में मदद कर के किसानों को आत्म हत्या पर
मजबूर करने जैसे घ्रणात्मक कुकर्म किये गए। आर्थिक मंदी, बेरोज़गारी, बलात्कार और
भ्रस्टाचार जैसे तूफ़ान में देश को धकेल दिया गया और सवालों पर पाबन्दी लगा दी गई।
इसी लिए सवाल करने वाले को देश द्रोही बता कर शिक्षण संस्थानों पर संघी शासक बिठा
दिया गया। अतः एक नाकामी छुपाने के लिए दूसरा बवाल खड़ा होता रहा।
आज NRC, CAA और NPR के ख़िलाफ़ पूरा
देश खड़ा हो गया। पहले तो ख़ुद भ्रम फैलाया गया। देश के प्रधानमत्री और गृह मंत्री
ख़ुद इस भ्रम को फैला रहे हैं। संसद में कुछ कह रहे हैं सड़क पर कुछ कह रहे हैं।
संघी प्रचारक कभी इसे मुसलमानों के ख़िलाफ़ बता कर मुर्ख अंधभक्तों को बहला रहे हैं
और कभी इसे दलित विरोधी बता ब्राह्मणवाद के वर्चस्व के नाम पर उच्च वर्ग को शांत
किया जा रहा था। इस की वजह यह है कि दलित ने प्रताड़ना को सहन करना बंद कर दिया था
और पढ़ लिख कर बराबर बैठने लगा था।
अब जब कि प्रदर्शन में हिन्दू मुस्लिम विवाद नहीं हो पाया और यह शांति पूर्ण
प्रदर्शन विश्व व्यापी हो गया तो असल गुंडा गर्दी सामने आ गई। जिस तरह से JNU कैंपस में कुछ साल पहले नक़ाब पहन कर संघी गुंडों ने देश
विरोधी नारे लगा कर JNU को बदनाम करने
की कोशिश की थी वही काम कल फिर किया गया।
जामिया और JNU से उठी
इन्किलाब की इस आवाज़ को देश की लगभग सभी राज्यों के विश्वविध्यालयों का समर्थन
मिला और साथ ही विदेशी विश्वविद्यालयों ने भी आवाज़ में आवाज़ मिलाई। इसी लिए पहले
जामिया में घुस कर वहां के छात्रों को आतंकित करने की कोशिश की गई लेकिन लेकिन
अफसोस कि उस ने पूरे देश को जगा दिया। अब फिर से JNU छात्रों को आतंकित करने की कोशिश हुई है जिस ने यह स्पष्ट कर दिया कि गोडसे
की गोली से गाँधी का शरीर तो मर सकता है लेकिन विचार उस शरीर से आज़ाद होकर हर गली
कूचे में हर रोज़ हज़ारों गाँधी विचारक को जनम देते रहते रहते हैं।
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मुल्क के हालात बहुत संगीन हैं अल्लाह ख़ैर करे
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