Monday, October 31, 2016

राष्ट्र निर्माण में युवा की भूमिका

राष्ट्र निर्माण में युवा की भूमिका

युवा पीढ़ी के सही मार्गदर्शन में राष्ट्र की उन्नति और देश की प्रगति है वरना बर्बादी

[ अब्दुल मोइद अज़हरी ]
किसी भी मुल्क और कौम का युवा उस देश, समाज, और समुदाय का भविष्य होता है। उस का धरोहर और मान सम्मान होता है। युवा शब्द ही युवा पीढ़ी की परिभाषा है। यह शब्द उसकी क्षमता को दर्शाता है। युवा को यदि उल्टा कर के पढो तो वायु होता है। वायु की एक खासियत है। यह वायु अगर सही रुख में प्रवाह करे तो उज्वल भविष्य है। लेकिन यदि इस युवा पीढ़ी को मार्ग दर्शक ग़लत मिल जाये। तो उस कौम और मुल्क को बर्बाद होने से भी कोई रोक नहीं सकता। युवा पीढ़ी में जो उत्तेजना, शक्ति और रफ़्तार होती है वो अदभुत होती है। युवा उम्र में कुछ कर गुजरने का जो जज्बा होता है वो मनुष्य को उसकी क्षमता से बहुत आगे ले जाता है।
जिस देश ने अपनी युवा पीढ़ी को सक्षम और साक्षर बना लिया वो देश प्रगति की राह पर न सिर्फ प्रयत्नशील हो गया बल्कि लक्ष्य को प्राप्त भी कर लिया और विकसित देशों की सूची में अपना नाम सम्मिलित कर लिया। जिस समाज ने अपने युवा वर्ग को संस्कारों और संस्कृति के अनमोल धन से धनवान बना दिया उस समाज ने पूरी दुनिया का नेतृत्व किया है। यही कारण है कि कोई भी देश हो कोई भी समाज, समुदाय या धर्म हो सब ने ही अपने युवावों पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है। उनके शिक्षण एवं पालन पोषण को अधिक से अधिक महत्वता दी है।
युवा आयु निकल जाने के बाद मनुष्य समझौते पर ज्यादा यकीन रखता है। उसके अन्दर एक ठहराव आ जाता है। कोई भी प्लान और योजना बनाने के लिए तो अधेड़ उम्र की ज़रूरत होती है। क्यूंकि इस उम्र में स्थिरता के साथ सूझ बूझ होती है। उसके पास ज्ञान के साथ अनुभव होता है। जिस के आधार पर वो एक ठोस प्लान तैयार करता है। लेकिन इस योजना को अमल में लाने के लिए युवावों के मज़बूत बाजुओं, बुलंद इरादों और चुनौती स्वीकार करने के बाद कुछ भी कर गुजरने के हौसलों की ज़रूरत होती है। इस को एक उदाहरण से समझा जा सकता है।
जब समाज में सिक्षा के प्रति जागरूकता में कमी महसूस की गयी तो लोगों की शिक्षा के प्रति जागरूकता के लिए विशेषज्ञों द्वारा एक योजना बनायी गयी। सर्व सिक्षा जागरूकता अभियान का प्रोग्राम बना। सरकार की तरफ से फण्ड राशि भी निश्चित हो गई। अब इस योजना को अमल में लाने के लिए युवा वर्ग की आवश्यकता पड़ी। क्यूँकि आज की पीढ़ी क्या सोंचती है और कैसे सोंचती है, इस का ज्ञान इस युवा पीढ़ी को है। वैसे दोनों पीढ़ियों में उम्र के साथ सोंच में भी अंतर होता है। किसी भी तरह की सीमाओं और बंधनों में बांध कर रहना आज का युवा उस के निजी जीवन में हस्तक्षेप समझता है। जबकि बुज़ुर्ग पीढ़ी इसे रक्षा, सुरक्षा, तहज़ीब, अनुशासन और जाने क्या क्या कहती है। और भी कई असमानताएं हैं। हर क्षेत्र में इस युवा पीढ़ी की ज़रूरत होती है। खास तौर पर रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में और अधिक आवश्यकता होती है।
युवा बहते हुए पानी की तरह है जिसे रोकना असंभव है। क्यूंकि ऐसा करने पर उसका फैलाव और ज्यादा हो जायेगा। और वो पानी ऐसे नए रास्ते पैदा कर लेगा जो पहले से न थे। इस से काफी नुकसान उठाना पद सकता है। इस बहते हुए पानी को सिर्फ दिशा दिया जा सकता है। अब यह ज़िम्मेदारों पर निर्भर करता है कि वो कौन सी दिशा देना चाहेंगे। दिशा सही रहे तो पलक झपकते ही लक्ष्य सामने होगा और कामयाबी क़दम चूम रही होगी लेकिन अगर दिशा गलत हो गई तो दुसरे ही पल तबाही और बर्बादी की काली राख हमारे चेहरों पर होगी। हिरोशिमा और नागासाकी हमारे लिए एक उदाहरण हैं। उस पर परमाणु हथियार छोड़ने वाले 19 वर्षीय दो नवजवान ही थे। दोनों ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि हमें ग़लत दिशा दिखाई गई। हमारा इस्तेमाल किया गया। देश को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी दिलाने वाले नौजवान हों या भारत को भ्रस्टाचार से मुक्त करने हेतु आन्दोलन कारी युवा हों। इन्हों ने हमेशा अपनी महत्वता और क्षमता को सिद्ध किया है।
नई पीढ़ी में भी अपने पूर्वजों ही का खून और संस्कृति होती है। पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा, परंपरा और अनुशासन में ही उनका पालन पोषण होता है। परन्तु वक़्त बदलने के साथ हालत बदल जाते है। स्रोत और तरीके बदल जाते हैं। इस लिए इस बात को समझना अति आवश्यक है। कल बैलों के ज़रिये खेतों की सिंचाई और जुताई करने वाले किसान आज ट्यूबवेल से पानी निकालते हैं। ट्रैकटर से खेत जोतते है। खेतों की सिंचाई और जुताई की परंपरा अब भी है। बस उस का तरीका बदल गया है।
आज का युवा अपने निजी जीवन में किसी का भी घुसना पसंद नहीं करता है। फिर वो कहते उस के माता पीता ही क्यूँ न हों। मेरा जीवन मेरी पसंद के फार्मूले पर जीवन गुजरने वाला युवा अपने आप को सक्षम और मजबूत समझता है। उसे लगता है कि वो हर स्थिति का सामना करने के लिए तैयार है। 21वीं सदी के आज़ादी का आन्दोलन और उस के जज्बाती नारे इस युवा पीढ़ी की रगों में समाता नज़र आ रहा है। वो पुराने तर्क वितर्क समझने की अवस्था में नहीं है। इसी लिए कुछ समय के लिए उसे उसकी ज़िन्दगी में आज़ाद छोड़ देने में ही भलाई है। आज़ाद छोड़ने का यह मतलब नहीं की उसे अपनी नज़रों से दूर कर दे। या फिर अपनी नज़रें हटा ले। आज़ाद करने का एक मतलब यह भी होता है कि उसे व्यस्त कर दिया जाये।
इस युवा पीढ़ी को बुजुर्गों के काम काज या किसी भी रीति रिवाज से कोई दिक्कत नहीं है। बस वो इस तौर तरीकों से घबराता है। क्यूंकि इन परम्पराओं के फायदे या नुकसान से वो अपरिचित है। वो हर काम अपने तरीके से करना चाहता है। उसे अनुभव लेने दिया जाये। पूरी ज़िम्मेदारी के साथ उसे काम करने की आज़ादी उसे ज़िम्मेदार बना देती है। हर मुश्किल में उस के लिए खड़े रहेने का आभास उस के आत्मविश्वास को मज़बूत करता है। इसी के साथ बुज़ुर्ग पीढ़ी पर भरोसे को भी ताक़त मिलती है। इस पीढ़ी से काम लेने का यही तरीका है। वरना बन्दूक का रुख अगर अपनी ही फ़ौज की तरफ हो गया तो दुश्मन को हमला करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
पैसा और पावर को हर युग में प्रगति और तरक्की की निशानी माना गया है। आज का वो युवा जो रोज़गार से जुदा हुआ है वो पूरी तरह सक्षम है। उस के पास पैसा भी है और पॉवर भी है। दुर्भाग्यपूर्ण उस राजनैतिक अंधकार में इन दोनों ही का दुरूपयोग हो रहा है। जो बेरोज़गार हैं वो इस पैसे और पॉवर के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं। कभी कभी ऐसा लगता है की यह बेरोज़गारी भी आज की राजनीति का एक हिस्सा है। वरना देश के शिक्षित और योग्य युवाओं का यूँ बेरोज़गार होना और उन का गलत इस्तेमाल होना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस राजनीति का युवाओं से ख़ाली होना भी अफसोसनाक है।
हर दौर में कामयाबी और तरक्की के अर्थ बदलते रहते है। हर एक की कामयाबी के अलग अलग मतलब होते है। दौलत और शोहरत हर दौर और युग में कामयाबी की निशानी समझी गयी है। इसी दौलत और शोहरत के नशे ने इंसानी आबादी पर ऐसे वार किये हैं जिस के ज़ख्म इतिहास के पन्नो में अब तक दर्द से चीख रहे हैं। आज पूरा खाड़ी देश इसी दौलत और शोहरत की दिशाहीन राजनीति का शिकार हो कर एक एक कर बिखर कर चकना चूर हो रहा है। न तो खाड़ी देशों का तेल इन्हें बचा पा रहा है और न ही मुस्लिम देशों पर इन की बादशाहत इन की किस्मत बदल पाने में कोई अहम् रोल अदा कर रहा है।
आज इसी युवा पीढ़ी को सही मार्ग दर्शन और मार्ग दर्शक की ज़रूरत है। क्यूंकि जिन युवा कन्धों पर देश और समाज को आसमान की बुलंदियों पर पहुँचाना था आज वही युवा अपनी दिशा से भटकता नज़र आ रहा है। उसका राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक शोषण किया जा रहा है। देश में फैल रही अशांति, असहिष्णुता और अपराध में इस युवा का काफी रोल नज़र आ रहा है। समाज में साम्प्रदायिकता और धर्म एवं जाति के नाम पर भेदभाव फैलाने में इस युवा का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस राजनैतिक आतंकवाद के चलते न सिर्फ देश का युवा दिशा हीन हो रहा है बल्कि देश की तरक्की की रफ़्तार भी रुक सी गयी है। चंद भ्रष्ट राजनेताओ की वजह से पुरे देश का गौरव, अभिमान और सम्मान दाँव पर लगा हुआ है।
इतिहास के पन्ने साक्षी हैं जब भी इस युवा पीढ़ी ने करवट ली है एक इन्कलाब आया है। किसी भी असंभव मिशन को संभव बनाया है। 200 साल अंग्रेजों की ग़ुलामी के विरुद्ध आज़ाद हिंदुस्तान के सपने को साकार करने में इस युवा पीढ़ी का योगदान अतुल्य एवं अमूल्य है। मौत की आँखों में ऑंखें डाल कर देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने की सौगंध खाने वाले युवाओं ने अपने पीछे कई उदाहरण छोड़े हैं। जो आज तक इस नई युवा पीढ़ी के लिए मार्ग दर्शन का कार्य कर रहे हैं। उबलते हुए ज्वालामुखी की तरह खून की गर्मी को अगर बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिया गया तो वो अपने अन्दर ही विस्फोट कर लेगा। जिस से उस के साथ देशी के भविष्य का भी बड़ा नुकसान होगा।
यही वजह हैं कि राजनीति का कारोबार करने वाले पाखंडियों का षड्यंत्र इस युवा पीढ़ी का दुरूपयोग करने में लगी हुई है। धर्म, आस्था और सामाजिक मूल्यों का भी धंधा बड़े धड़ल्ले से चल रहा है। हर तरह के सांप्रदायिक दंगों में इस का दुरूपयोग कर के मजबूरी की आग में अपनी सत्ता की रोटी सेकी जा रही है। सही दिशा न मिलने का ही कारण है कि अपराध जगत में यह पीढ़ी प्रवेश कर रही है। जुर्म और अपराध के नए तरीके तलाश करने में जुटी है। आतंकवाद और नक्सलवाद से लेकर उग्रवाद तक इस खूब प्रयोग हो रहा है। धर्म के नाम पर भी इस युवा समाज को भ्रमित किया जा रहा है।
राजनैतिक आतंकवाद के बलबूते धर्म का राजनीतिकरण करने वाले इन विद्रोहियों के विरुद्ध हर वर्ग से ज़िम्मेदारों को उठना होगा। धर्मगुरु, सामाजिक कार्यकर्ता, व्यावसायी, राजनेता, शिक्षा और रक्षा विशेषज्ञ, गावं के मुखिया ले लेकर देश मुखिया तक सब को इस बारे में सोंचना होगा। सब को मिल कर इस बीमारी का इलाज करना होगा। वरना कैंसर की तरह ये बीमारी देश के युवा को खा जाएगी और देश इस दीमक के कारण खोखला हो जायेगा। आज की सब से बड़ी देश भक्ति यही है कि देश को इस राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक आतंकवाद से बचाया जाये। इस के लिए हर धर्म, जाति और समाज के लोगों को मिल कर लड़ाई लड़नी होगी। सब इसी देश के है और यह सब का देश है। यही आज हम सब की धार्मिक सामाजिक और राजनितिक ज़िम्मेदारी है।
#Youth #Yuwa #YouthPower #YouthandtheNation 
*****

Abdul Moid Azhari (Amethi) Contact: 9582859385, Email: abdulmoid07@gmail.com


@@---Save Water, Tree and Girl Child Save the World---@@

No comments:

Post a Comment