जे.एन.यू. की
छात्र सुरक्षा पर संघी संकट के बादल
अब्दुल मोइद
अज़हरी
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय भारत के प्रख्यात
एवं मशहूर यूनिवर्सिटियों में से एक है। भाषा की शिक्षा में अपार सफलता, प्रशंशा
एवं आभार बटोरने वाला जे. एन. यू. जातिवाद, नस्लवाद और साम्प्रदायिकता से ऊपर उठकर
लोकतंत्र और संविधान में न सिर्फ विश्वास करने के लिए बल्कि उस पूर्ण रूप से पालन
करने हेतु विश्व भर में गर्व की नज़रों से देखा जाता है। देश के किसी भी कोने में
हो रहे अत्याचार, अन्याय, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता और कट्टरवाद के विरुद्द सदैव
इस परिसर से आवाज़ उठाई गयी है। ज़ुल्म, ज़्यादती और हिंसा के के खिलाफ लड़ाई लड़ी गयी
है। कोई भी नेता या राजनैतिक प्रतिनिध इस कैंपस में आने और राजनैतिक भाषण देने से
पहले सौ बार सोचता है। क्यूंकि यहाँ जिंदा लोग रहते हैं। बोलते हैं। इन के लब आजाद
हैं। तथ्यों पर बात करते हैं। ऐसा नहीं है कि इस परिसर में राजनीती नहीं होती है।
जमकर और भरपूर होती है। लेकिन धर्म जाति रंग और नस्ल के नाम पर नहीं होती। मुद्दों
और तथ्यों पर वाद विवाद होता है। यह जे.एन.यू. का इतिहास है। लेकिन शायद इस इतिहास
के सुनहरे पन्ने 2014 में ख़त्म हो गए।
देश के तमाम विश्व विद्यालयों के लिए प्रेरणा
रहे इस कैंपस ने सिर्फ 2 वर्षों में इतना ज़हरीला वर्तमान झेला है जिसकी कसक शायद
दशकों तक रहेगी। कन्हैया कुमार और खालिद उमर के साथ हुयी राजनीति ने जे.एन.यू के
इतिहास में कुछ ऐसे पन्नों को जोड़ दिया जो रह रह कर दिल व दिमाग पर गर्म थपेड़ों की
तरह लपटें मार रहे हैं। भारत जैसे लोकतंत्र देश में, जहाँ बोलने और अपनी बात कहने
की आज़ादी है, जब से ज़बानों पर पाबंदियां लगने लगी है पूरा देश, जो संविधान में
विश्वास रखता है, बेचैनी की करवटें बदल रहा है। कन्हैया कुमार और खालिद उमर का
मामला अभी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ था कि जे.एन.यू. एक ऐसे दर्दनाक हादसे का
शिकार हुआ जिस की कल्पना नहीं की होगी।
14 अक्टूबर की रात को एक छात्र के कमरे में
ABVP के कुछ लोग आते हैं। उस समय माही मांडवी हॉस्टल के लिए चुनाव का प्रचार
प्रसार चल रहा था। कमरे में कुछ हाथा-पाई हुई। चुनाव प्रचार की अगुवाई कर रहे ABVP
के विक्रांत के अनुसार जब यह लोग कमरे में दाखिल हुए तो नजीब ने इन से
दुश्व्याव्हार किया। छात्र विक्रांत के हाथ पर बांधे कलावे पर अभद्र टिप्पड़ी की।
आपत्ति जताने पर हाथ उठा दिया। जवाब में लड़कों ने भी थप्पड़ जड़ दिया। उसी वक़्त
छात्र संघ के दूसरे लड़कों को फ़ोन कर के बुलाया गया और नजीब पर जानलेवा वार किया
गया। जब दूसरे छात्र इकठ्ठा हो जाते हैं। बीच-बचाव होता है। लेकिन मारने की प्यास
अभी तक बुझी नहीं थी। नजीब को बचाने के लिए उसे बाथरूम में बंद करना पड़ा। लेकिन
उपद्रवी और हिंसक इतने उत्तेजित थे की बाथरूम में भी घुस गए और उस पर हाथ साफ किया।
वार्डन से शिकायत की गयी। वार्डन रूम तक ले जाते वक़्त तक उसे मारा जाता रहा।
गार्ड, वार्डन और अनेक छात्र इस गुंडागर्दी को अपनी आँखों से देख रहे थे। रात ही
को एम्बुलेंस में AIIMS में लहूलुहान छात्र को भारती कराया गया। ट्रीटमेंट के बाद
भोर में लड़का हॉस्टल वापस आ गया। नजीब पहले ही अपने घर फोन करके माँ से मिलने की
इच्छा ज़ाहिर कर चुका था। लगभग 10:30 बजे सुबह उस की माँ का फ़ोन आया कि “मैं आनंद
विहार पहुँच चुकी हूँ कमरे पर ही रहना मैं आ रही हूँ” । 11:30 बजे दिन के आस पास
नजीब की माँ हॉस्टल पहुंची तो नजीब कमरे में नहीं था। काफी देर तक प्रतीक्षा करने
पर आस पास के हॉस्टल में पता लगाना शुरू किया गया। कोई खबर नहीं मिली। उसे फ़ोन
लगाया गया तो फ़ोन कमरे ही में पड़ा मिला। उसका पर्स और सारे ज़रूरी सामान, पैसे,
कागज़ सब रूम पर ही थे। 15 अक्टूबर 12 बजे दिन से नजीब का का कोई सुराग नहीं। कोई
नहीं जानता। माँ बहन भाई और जे.एन.यू. परिसर के सभी छात्रों को जानना है। नजीब
कहाँ है ?
जे.एन.यू. छात्र संघ कैंपस के समस्त छात्रों के
साथ अब तक धरना दे रहे हैं। प्रोटेस्ट कर रहे हैं। वार्डन, प्रोक्टर और कुलपति से
सवाल कर रहे हैं। नजीब कहाँ है ? सब खामोश हैं। मीडिया चुप है। पुलिस निश्चिंत है।
दिल्ली सरकार के हाथ में कुछ नहीं है। गवर्नर कोशिश कर रहे हैं। गृह मंत्रालय के
सामने छात्रों को गिरफ्तार किया जा रहा है। नेता अपनी अपनी भलाई के रास्ते और
जुगाड़ ढूंड रहे हैं। माँ की आँखों के आंसू सूख गए। बहन लोगों को जवाब देते देते थक
गई। छात्र संघ के हौसले कमज़ोर होने लगे। पूरा परिसर एक अजीब सी बेचैनी का शिकार है।
ऐसी असुरक्षा की स्थिति इस से पहले कभी नहीं आयी थी। हलके फुल्के वाद-विवाद बहस-बाज़ी
तो चलती रहती है। लेकिन 15 दिनों तक किसी का गायब हो जाना बहुत बड़े खतरे का इशारा
है। कैंपस की सुरक्षा व्यवस्था पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है। इस कैंपस में अलग अलग
प्रदेश से लड़के और लड़कियां रहती हैं। भारत का भविष्य इस परिसर में परवरिश पता है। देश
का लोकतंत्र इस में जीता है। लेकिन सब सहमे हुए हैं। ख़ामोश हैं। पर सवाल कर रहे
हैं। अगला नंबर किस का है। क्यूंकि अब तक कोई सुराग नहीं मिला। नजीब कहाँ है?
नजीब माही मांडवी हास्टल में रहता था। बायोटेक
इंजीनियरिंग का स्टूडेंट था। अभी मुश्किल से 20 दिन पहले वो हॉस्टल में आया था।
पढने लिखने में तेज़ होने के साथ उसके सहपाठियों के अनुसार बदायूं जिले का नजीब
काफ़ी मिलनसार और अच्छे व्यवहार का छात्र था। उसके क्लास की कुछ लड़कियों के अनुसार
जब नजीब को उन्हों ने राखी बांधी थी तो किसी भी प्रकार की आपत्ति जताए बिना हाथ
में बंधवाया भी और ख़ुशी भी व्यक्त की थी। अभी आये हुए एक माह भी नहीं हुआ था तो
किसी भी राजनीती का हिस्सा होना असंभव है। अब कमरे में घुसने के बाद पहले हाथ नजीब
ने उठाये थे या विक्रांत और साथियों ने और ऐसी नौबत क्यूँ आई, इसका सही पता तो तभी
लगेगा जब नजीब वापस लाया जायेगा। 20 से ज्यादा चश्मदीद गवाहों ने हस्ताक्षर के साथ
शिकायत दर्ज करायी है। हमला करने वालों में से लगभग 10 लड़कों की पहचान हो गयी है।
लेकिन अब तक उन पर कोई करवाई नहीं की गई। जिस के चलते छात्रों में नाराज़गी है। जब
कोई जवाब और रास्ता नज़र नहीं आता तो शक दिल व दिमाग में घर कर जाता है। हर किसी पर
होता है। तरह तरह के ख्याल आते हैं।
यह सिर्फ जे.एन.यू के किसी एक छात्र नजीब का
मामला नहीं है। यह किसी भी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी के किसी भी छात्र की रक्षा
और सुरक्षा का मसला है। यह संविधान और लोकतंत्र में विश्वास रखने, उसका पालन करने
और उन्लंघन किये जाने पर उस का विरोध करने वाले विद्यालयों और छात्रों का मुद्दा
है। यह देश के भविष्य का सवाल है। देश को नेताओं और मुखियाओं के उज्जवल भविष्य के
बारे में ध्यानपूर्वक सोचने की आवश्यकता है। एक कैंपस के छात्रों में जितनी सीमित
शक्ति है उसका प्रयोग और उपयोग हो रहा है। उम्मीद है शादी, तलाक़ और विमुद्रीकरण से
फुर्सत मिलने पर देश इस मामले को गंभीरता से लेगा।
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