मंत्री जी के दो बड़े
फैसले: राजनैतिक या धार्मिक
{अब्दुल मोईद
अज़हरी}
उत्तर प्रदेश के बीते
विधान सभा चुनाव में आये चौंकाने वाले नतीजों ने कई राजनैतिक पंडितों की दुकानों
पर ताला लगा दिया। चुनाव के दौरान ही जब भारतीय जनता पार्टी की तरफ से
मुख्यमंत्री को लेकिन गहन समीक्षा चल रही थी तो यह तय हो गया था कि यू पी का सी एम
कौन होगा। माननीय योगी आदित्य नाथ जी की मुख्यमंत्री के रूप में घोषणा कोई
अचंभव नहीं था यह सोची समझी राजनैतिक रणनीति थी। दो उप मुख्यमंत्री मंत्री और
20 से अधिक मंत्रिओं का मंत्री मंडल भी एक राजनैतिक और एतिहासिक क़दम जिस पर 2019
की जीत लिखी जा चुकी है। भारतीय जनता पार्टी की राजनैतिक रणनीतियों के आगे बड़े बड़े
महारथी नत मस्तक नज़र आ रहे हैं। पिछले कई दशकों से चैनल पर सूर्यवंशम की तरह एक दो
मुद्दों ही की राजनीति हो रही थी। किसी की राजनैतिक समीकरणों को अच्छा या बुरा न
कहते हुए इस वास्तविकता को सिरे से ख़ारिज करना संभव नहीं। 2014 के लोकसभा चुनाव
में ही भारतीय जनता पार्टी ने एक नई राजनीति को जन्म दिया जो सुनामी की तरह सब
को लपेटती जा रही है। धर्म और जाती की राजनीति का खुल कर प्रचार प्रसार हुआ और परिणाम
हमारे सामने हैं। परदे के पीछे से धर्म और जाती की राजनीति को करारी हार मिली।
इस मुद्दे पर विस्तार
से बात चीत फ़िर कभी।
उत्तर प्रदेश से
मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी शपथ ग्रहण करते ही यू पी के साथ साथ पूरा
देश कुछ बड़े फैसलों की प्रतीक्षा करने लगा। कई समुदाय में डर और भय स्वाभाविक हो
गया। सी एम की कुर्सी संभालने से पहले योगी जी को जो राजनैतिक छवि खुद उन्हों ने
चुनी थी इस के चलते इस तरह का माहौल बनना तै था। जिस का इंतज़ार था वो घड़ी आ गई
योगी जी के दो फैसले आये। तमाम अवैधे बुचड खाने बंद होंगे और बलात्कार और छेड़ छाड़
जैसी घटनाओ को रोकने के लिए एंटी रोमियो स्क्वाड बनाने जैसे अहम्, बड़े और साहसी
फैसले लिए। दोनों ही फैसले सराहनीय हैं।
सरकार कोई भी क़ानून
लाती है तो उस के पीछे जनता की भलाई छुपी होती है। योगी जी के सामने दो बड़ी
चुनौतियाँ हैं। एक तो वो खुद ही एक सम्पूर्ण धार्मिक व्यक्ति हैं दुसरा यह की एक
धार्मिक व्यक्ति उ.प्र. के मुखिया है। इस से पहले राजनीति की बिगड़ती दिशा के लिए
यह माना जा रहा था कि अधर्म की प्राप्ति के धर्म का राजनैतिक दुरूपयोग रोकने के
लिए राजनीति किसी धार्मिक व्यक्ति की आवश्यकता है। अब वो ज़रूरत पूरी हो गई। फैसले
भी अच्छे लिए गए। लेकिन दोनों ही फ़ैसले अब तक सिर्फ राजनैतिक लग रहे हैं। उ.प्र.
समेत भारत की बहुसंख्यक आबादी ने गौ हत्या बंद करने की मांग की थी जिसे भारतीय
जनता पार्टी ने अपने मेनुफिस्टो में लिखा और अपने भाषणों में लोगों को विश्वास कि
सरकार आते ही वो यह बड़ा फैसला लेंगे। सरकार आई भी और बड़ा फैसला लिया भी गया।
सिर्फ अवैध बूचड़ खानों
को बंद कर के अच्छे दिन की तरह सिर्फ दिलासा ही दिया है। भारत में जितने अवैध बूचड़
खाने हैं उनकी संख्या ही कितनी है और उन में कटने वाले जानवरों की संख्या दस बड़े
बूचड़ खानों से भी कम है। अब अगर जानवरों की हत्या के विरुद्ध यह फैसला है तो सरे
बूचड़ खाने बंद कर दिए जाने चाहिए। और गौ शालाएं ज्यादा से ज्यादा खोल दिए जाने
चाहियें। लेकिन अभी ऐसा कुछ होता नज़र नहीं आ रहा है। अच्छे दिन की तरह इस का
इंतज़ार करेंगे। अगर यह फैसला इस लिए था ताकि अवैध करने की जगह लोग वैध करें तो
उम्मीद है सरकार लाइसेंस की प्रक्रिया को आसन करेगी। इस फैसले का राजनैतिक फ़ायदा
यह हुआ कि हर एक भारतीय के खाते में पंद्रह लाख की तरह किया हुआ वादा पूरा हो गया
जनता खुश हो गई। जिन्हें डराना या धमकाना था वो भी काम हो गया।
एंटी रोमियों का मामला
भी कुछ ऐसे ही है। अगर कानून को सही से और बिना भेदभाव के लागू नहीं किया जाता तो
इस कानून की कोई ज़रूरत नहीं थी यह काम तो RSS और बजरंग दल के कार्यकर्ता पहले से
ही कर रहे थे। अगर मेरी नहीं हो सकी तो किसी की नहीं होने देंगे। बलात्कार और
छेड़छाड़ की घटनाओं में बड़े नेता अफसर और शाहज़ादे शामिल होते हैं। एक बार उन पर लगाम
लग गई आधा सिस्टम अपने आप सही हो जायेगा। बाक़ी आधा कानून व्यवस्था सही होने पर हो
जायेगा। योगी जी से लोगों को बड़ी आशाएं हैं एक धार्मिक पुरुष राजनीति की आड़ में
धर्म और धर्म की आड़ में राजनीति का दुरुर्प्योग नहीं करेगा। नहीं तो वो कहीं का
नहीं रहेगा। यानि न खुदा ही मिला न विसाले सनमम न इधर के रहे न उधर के रहे। धर्म
और राजनीति दोनों का एक साथ पालन बहुंत आसान हैं। दोनों ही का उद्देश्य मानव सेवा
और सुरक्षा है। जिस तरह पिछली सरकार क बनते ही कार्यकारिणी गुंडों को छूट मिल गई
थी उस के बाद क्या हुआ सभी जानते है। ऐसे ही इस सरकार के बनते ही शुरू हुई
कार्यकर्ताओं की गुंडा गर्दी को अगर विराम नहीं दिया गया तो फ़िर दोनों ही कोई फ़र्क
नहीं है। इस पर काबू पाने का मतलब है आप सक्षम और निष्पक्ष हैं।
अवैध बूचड़ खाने बंद
होने पर रोना भी बंद किया जाये। यह अलग बात है की इस का राजनैतिक फ़ायदा उठाया गया
लेकिन सही तरीके से लिया गया है यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए। इस देश और समाज के हर
मैदान में क़ानूनी हिस्सेदारी ज़रूरी है। ऐसा नहीं है कि पिछली सरकारें बड़ी भोली
थीं। वो कानून लाकर राजनैतिक फ़ायदा तो नहीं उठा पायीं बल्कि कानून न लाकर दो दो
फ़ायदे ले रही पैसा भी लेती थीं और एहसान जता कर हमेशा अपने लिए इस्तेमाल करती रही
हैं। जितना पैसे थानों और घूसखोर नेताओं और अफसरों को खिला दिया उतने पैसे में
कारोबारी को वैध किया जा सकता था।
समस्याओं से उलझना
समाधान नहीं है। विपरीत परिस्थितिओं में भी लड़ना और सामना करना ही सफलता की निशानी
है। कोई भी चीज़ हमेशा बाक़ी नहीं रहती। वक्त की अच्छी बात यह है कि गुज़र जाता है:
अच्छा हो या बुरा। सोचने समझने और ज्यादा समझने की ज़रूरत है। शिक्षित हो कर ही
सुरक्षित और सामाजिक रूप से संगठित हो सकोगे। उस के बाद ही संघर्ष संभव है।
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