Sunday, April 15, 2018

धर्म स्थल की पवित्रता और देश का गौरव दांव पर holiness of sacred places and pride of the nation are on risk

धर्म स्थल की पवित्रता और देश का गौरव दांव पर
[अब्दुल मोईद अज़हरी]

आसिफा मैं भूल जाना चाहता हूँ कि तुम्हारा मज़हब क्या है, और मुझे यह भी जानने की ज़रूरत नहीं है कि तुम्हारी बिरादरी क्या है. या इलाक़ा कौन सा है. पर यह कैसे भूल जाऊं कि तुम इस देश की बेटी हो. हमारा गौरव, मान, मर्यादा और सम्मान हो. मैं यह भी भूलना चाहता हूँ कि बलात्कारियों का धर्म, समुदाय, या ठिकाना क्या है लेकिन यह कैसे भूल जाऊं कि उन्होंने दुनिया का सब से घिनौना पाप करने के लिए धार्मिक स्थल को अपवित्र किया है. आसिफ़ा तुम अकेली नहीं हो, निर्भया का परिवार हर रोज़ बढ़ता जा रहा है. परिवार से जुड़ता हर सदस्य धर्म के ढोंगी ठेकेदारों, देश और धरती का सौदा करने वाले कुकर्मी राजनैतिक नेताओं, लम्बी लम्बी बातें और भाषण झाड़ने वाले समाज सुधारकों और जज़्बात, दर्द, मुरव्वत और रिश्तों के एहसास से ख़ाली हज़ारों सादे पन्नों पर प्रदर्शनी की काली स्याही पोत कर दुनिया को झूटी तसल्ली देने वाले आराम पसंद लेखकों के मुंह और ज़मीर पर रोज़ तमाचा मारता है. लेकिन दिल पत्थर और आँखों में बेशर्मी के परदे पड़े होने की वजह से कोई असर नहीं हो रहा है. उन्हें इंतज़ार है उस घड़ी का जब घर के कोने की आग दूसरे कोने तक पहुँच कर हजारों घरों को जलाने के बाद उस आग की लपटें जब उन के घर की तरफ बढ़ने लगेंगी तो उन्हें क़ानून, समाज और इंसाफ नज़र आयेगा. उन्नाव की पीड़ित एक और निर्भया हो या बिहार की मज़लूम बेटी हो, सभी का जुर्म यह है कि वह इस देश की बेटियां हैं.
आज जिस तरह से कानून व्यवस्था जुर्म और ताक़त के बाज़ार में नाचने का काम कर रही है निंदनीय और अफ़सोस नाक है. कठुवा में जिस तरह से क़ानून के काले सफ़ेद मिटटी (ख़ाकी) के हाथों ने शर्मनाक प्रदर्शन किया है वह ख़ुद के क़ानून परिवार के सदस्यों के ज़मीर और आत्मा पर ज़ोरदार दहशत का तमाचा है. उन्नाव और कठुआ में दर अस्ल सिर्फ देश की उस बेटी का बलात्कार नहीं हुआ है बल्कि क़ानून व्यवस्था, शासन, प्रशासन के साथ अब तक चुप रह कर तमाशा देखने वाले पूरे समाज के साथ रेप हुआ है. कठुआ के खाना बदोश की आठ साला बेटी के साथ जानवरों से भी बुरा बर्ताव होता है वह भी इस लिए कि उन खाना बदोशों को वहां से डरा धमका कर भगा दिया जाये. किसी को भगाने का यह अद्भुत और मानवहीन तरीका बड़ा निर्दयी है. हमें यह सवाल बुरी तरह परेशान करता है कि यह भगाने की सियासत के चक्कर में हैवानों वाला प्रदर्शन कब तक चलेगा. उस के बाद जब मुजरिमों पर कानूनी कार्रवाई की कोई प्रतिक्रिया शुरू होना चाहती है तो उन के बचाव में उतरने वाले लोगों को देख तो देश का सिर झुक गया.
जिस देश की धरती को माँ कहा जाता हो, वहां की बेटियों को देवी का रूप समझा जाता हो. मात्र भूमि की जय कार होती है. वहीँ पर माँ और बेटी दोनों का अपमान, उन का शोषण और उन का बलात्कार क्या देश के साथ दुर्व्यवहार नहीं है. बलात्कारियों और दंगाइयों के समर्थन में भारत माता की जय और जय श्री राम के नारों का प्रयोग कर के ना सिर्फ भारत माँ के पावन चरित्र पर कीचड़ उछाला है बल्कि मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम का भी अपमान किया है. जिस की मर्यादा और पुरुष की उत्तमता की गाथाएं पुराणों और धार्मिक संवादों में बड़ी आस्था के साथ बयान की जाती हो उस के नाम का इस्तेमाल उसी के विचारों और शिक्षा के विरुद्ध होना उस का अपमान है.
जहाँ एक गिरोह नारा ए तकबीर की आवाज़ लगा कर ख़ुद को बम से उड़ा कर निर्दोषों की हत्या का बड़ा गुनाह करता हैं वहीँ यह गिरोह भी श्री राम और भारत माता के नारे लगा कर ज़ुल्म और पाप करते हैं. दोनों में कोई फर्क नहीं है. आज नारों का राजनैतिक दुरूपयोग दुर्भाग्य पूर्ण है. कठुआ के बलात्कारी हों, उन्नाव के ज़ालिम या बिहार का वहशी दरिंदा जिस ने 6 साल की मासूम पर अपनी नामर्दी और नपुंसकता दिखाने का दुस्साहस किया.
यह इस कायर पुरुष प्रधान की मानसिकता है कि अपनी नाकामी छुपाने के लिए हर शहर और गाँव में एक निर्भया का उदाहरण दे कर उन्हें अपने पाँव की जूतियाँ बनाना चाहते हैं. लेकिन यह भारतीय बेटियों का साहस है कि इन्हीं जंगलों से निकल कर वह देश का गौरव बन कर स्वर्ण पदक का कीर्तिमान रच का भारत माँ का शीश गर्व से ऊँचा कर रही हैं.
ऐ भारत की बेटियों तुम रुकना नहीं. यह तुम्हारे हौसले की जीत है. निर्भया और आसिफा जैसी देश की धरोहरों का बलिदान है. यह मुट्ठी भर कायरों और बीमारों का समाज तुम्हारे हौसलों को पस्त नहीं कर सकता.
आज बलात्कार की बढती घटनाओं से क़ानून और समाज दोनों ही हारा है. यह इतिहास रहा है कि जब कभी भी पूंजीपतियों ने क़ानून को अपनी जेब का ग़ुलाम बनाने की कोशिश की है. जनता की अदालत ने इस देश और न्याय व्यवस्था की रक्षा की है.
अभी भी देश का बहु संख्यक समाज इस हीन भावना का विरोधी है. वह उठेगा एक दिन और फिर हर बेटी को इंसाफ मिलेगा. यह बेटियां ही उठाएंगी उन्हें. जब अपने बलात्कारी बाप, भाई और बेटे का बहिष्कार करेंगी. अपने सारे रिश्ते ख़त्म कर देंगी. और हर पुरुष को महिलाओं के सम्मान के लिए मजबूर कर देंगी. क़ानून व्यवस्था को भी एक दिन आज़ादी मिलेगी. यह सब कुछ होगा. जब लोगों का धर्म उनकी निजी आस्था और देश, समाज और मानवता उन की सामूहिक पहचान होगी.
रावण और शैतान कहीं अलग नहीं है. वह हमारे बीच और अपने अन्दर ही है. वरना रावण के चंगुल में क़ैद सीता जी की अस्मिता सुरक्षित रही लेकिन आज भक्तों और जिहादियों के हाथों में कुछ भी सुरक्षित नहीं है.
किसी भी नाकामी को बलात्कार से नहीं छुपाया जा सकता. क्युकी कभी कभी रोष में की गई प्रतिक्रिया प्रतिशोध बन कर बहुत कुछ जला देती है जिस की चिंगारियां सदियों तक दर्द हाँ एहसास दिलाती रहती हैं. खुद भी बचो और देश को भी किसी ऐसी आग में जलने से बचा लो.
Abdul Moid Azhari (Amethi) Email: abdulmoid07@gmail.com, Contact: 9582859385


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