Thursday, April 12, 2018

हाँ मैं दहशत गर्द हूँ Yes I am a Terrorist


क़न्दोज़ के मासूमों की पुकार
“हाँ मैं दहशत गर्द हूँ “


[अब्दुल मोईद अज़हरी]
हाँ मैं दहशत गर्द हूँ. क्योंकि मैं ने क़ुरान की आयतों को अपने सीनों में महफूज़ कर लिया है. क़ुरान पढ़ने और उसे याद करने के बाद मेरा क़दम और इरादा उसे समझने और उस पर अमल करने का था. मेरे क़ुरान पढ़ने भर से यह क़ुरान के दुश्मन लरज़ गए. डर गए. और अपने इसी डर से भागने के लिए ऐसा घिनौना काम किया. अभी तो हम ने आयतों से मुलाक़ात की थी तो इन की हालत ख़राब हो गई अगर हम दोस्ती कर लेते तो शायद इन पर बिजली गिर जाती. इन का झूट और क़ुरान से इन की दुश्मनी हमें समझ में जाती. इन्हें डर था कि यह फिर हमें बहका नहीं पाते. इन के धोके और फ़रेब के जाल में हम नहीं फंसते और साथ ही में अपने जानने और मानने वालों को भी नहीं फंसने देते. हम लोगों को बता देते कि क़ुरान की हिफाज़त का दावा करने वाले यह दीन के दुश्मन हैं. इन का क़ुरान और इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है. इन का सारा जिहाद खुद के लिए है. यह दूसरों के हथियार हैं. जो किसी के राजनीतिक फायदे के लिए क़ुरान बेचते हैं. दीन का सौदा करते हैं. इस्लाम के विरुद्ध खुद मुसलमानों को इस्तेमाल करते हैं. यह नहीं चाहते हैं कि कोई तालीम हासिल करे. पढ़ लिख कर मुल्क और कौम का नाम रौशन करे और दीन के नाम पर दीन की दुश्मनी कर रहे लोगों से होशियार रहे. यह तो यही चाहेंगे कि पढाई लिखाई से दूर रह कर ख्वाबो की एक दुनिया बनाई जाये जिस में हुकूमत और क़यादत अपने हाथ में होती है. ऐसे ही लोगों के लिए दंगे प्लान किये जाते हैं. उसके बाद उन्हें मानव बम बना दिया जाता है.
पढ़ा लिखा समाज तो यह भली भांति जनता है कि कोई भी धर्म शिक्षा के विरुद्ध नहीं हो सकता. जिस धर्म का पहला ज्ञान ही शिक्षा हो वह तालीम का कितना बड़ा हितैषी और प्रचारक होगा. इन ज़ालिमों का सब से बड़ा मिशन ही शिक्षा का विरोध है. क़न्दोज़ से पहले पाकिस्तान में एक स्कूल में बच्चों पर तालिबान का हमला उन की नामर्दी और क़ुरान और इस्लाम विरोधी विचारधारा को दर्शाता है. इस के साथ ही इस तरह के जिहाद को सहमती देने वाले लोग, स्कूल, संस्थाएं और जमाअतें भी ज़ुल्म में बराबर के हिस्सेदार हैं. इंसानी समाज को यह समझना होगा कि जब इन्सान इंसानियत की विचारधारा को त्याग देता है तो उस पर किसी भी धर्म, समुदाय या देश का रंग नहीं चढ़ता वो सिर्फ ज़ालिम होता है. ज़ुल्म ही उस का मज़हब, मुल्क और कौम होता है.
ऐसे ज़ालिमों का विरोध करना सही मानों में जिहाद और धर्म युद्ध है. धर्म, जाति और समुदाय से परे इस युद्ध को मिल कर लड़ना चाहिए क्योंकि यह सब का समान दुश्मन है.
क़न्दोज़ के मासूम हाफिज़ क़ुरान बच्चों पर यह जालिमाना हमला निंदनीय है. अगर इस हमले की वजह आतंकवादिओं पर हमला करना था तो भी यह नाकामी है. अफ़ग़ानिस्तान में नफ़रत और साम्प्रदायिकता के बीज बोने और अल-क़ायदा जैसा आतंकवादी संगठन बनाने में किस का हाथ यह पूरा विश्व जानता है. मासूमों को मार कर ना किसी को सबक सिखाया जा सकता है और ना ही किसी को सज़ा दी जा सकती है. इस से हिंसा और नफरत की आग और भड़केगी.
यह जो दंगों का खेल आज दुनिया खेल रही है और इसी से अपनी राजनीती चमका रही है. यह एक खतरनाक खेल है. इस में कोई नहीं बचता है. बारी बारी सब का नम्बर आता है. हमारा मुल्क भी इस की चपेट में आता नज़र रहा है. सियासी दंगों का जवाब दंगों से दिया जा रहा है. धार्मिक भावनाओं का घी तेल इस सांप्रदायिक राजनीती की आग में डाला जा रहा है. आग की लपटें और पानी की धारा किसी की सगी नहीं होती हैं. जहाँ भी जगह नज़र आती है उसे अपनी बाँहों में ले लेती है और एक लम्बी नींद सुला देती है.
अभी वक्त है. इस से बचा जा सकता है. समाज को सही दिशा निर्देश देने वाले समाज सुधारकों और अहिंसा वादी विचार धारकों को फिर से जागरूक और कार्यरत होना पड़ेगा. रात पेड़ लगा कर सुबह फल की उम्मीद करने वालों का भी इस में कोई काम नहीं है. यह कार्य धैर्य का है. यह काम उन वीरों का है जो अपने लहू से अपने आने वाली पीढ़ियों का भविष्य उज्ज्वल करते हैं.
क़न्दोज़ के मासूमों की आवाजें अभी भी हर उस व्यक्ति को सुनाई दे रही हैं इंसानियत पर जिन का यकीन अभी बाकी है. वह कह रहे हैं कि अगर मज़हब की चादर में लिपटे हुए नाम निहाद जिहादी दहशत गर्दो के विरुद्ध शिक्षा का मिशन दहशत गर्दी है तो हाँ मैं दहशत गर्द हूँ.
Abdul Moid Azhari (Amethi) Email: abdulmoid07 Contact: 9582859385


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