JNU में आतंकी हमला, संघी साज़िश या चुनावी हिंसा?
[अब्दुल मोईद अज़हरी]
JNU कैंपस में 5 जनवरी की रात को हुए आतंकी हमले की चरों और
निंदा हो रही है। सत्ताधीश सरकार, दिल्ली पुलिस और JNU प्रशासन सवालों के घेरे में हैं। जवाब देने की बजाये उल्टा चोर कोतवाल को
डांट रहा है। 30 से ज़्यादा छात्र इस आतंकी हमले में घायल हुए है साथ कुछ अध्यापकों
को भी छोटें आयी हैं। JNU में हुई फीस
वृधि को लेकर पिछले एक महीने से ज़्यादा दिनों से छात्र शांति पूर्ण धरना प्रदर्शन
कर रहे थे। विश्वविद्यालय के कुलपति से मिल कर बात करने की भी मांग कर रहे थे
लेकिन साहेब मिलने के लिए राज़ी नहीं हुए।

JNU भारत का एक ऐसा
विश्वविद्यालय है जिस छात्र विदेशों में पढ़ाते हैं। देश के ब्यूरोक्रेट, प्रशासन, राजनीति, सामाजिक, न्यायिक, और आर्थिक व्यवस्थाओं में
इस यूनिवर्सिटी का अतुल्य योगदान है। इस से बढ़कर सामाजिक, व्यावहारिक, संवैधानिक और
लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति इस यूनिवर्सिटी ने सदैव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
है। जब भी संवैधानिक और और लोकतान्त्रिक ढांचे के साथ किसी भी तरह की छेड़ छाड़ हुई
है इस शैक्षिक संस्थान ने अपनी आवाज़ बुलंद की है।
जिस तरह से इस यूनिवर्सिटी को कुतर्क, अमानवीय और अराजक राजनीति की आग में धकेल दिया गया है वह निंदनीय और शर्मनाक
है। यह चिंता का विषय कैंपस प्रशासन, इस से जुड़े
हुए छत्र संघ, अध्यापक संघ और यहाँ से पढ़
कर निकले हुए देश विदेश में सेवा दे रहे ओल्ड बॉयज संघ समेत सब के लिए है।
JNU पर होने वाला यह आतंकी
हमला देश के किसी विश्वविद्यालय विशेष पर नहीं है। यह हमला देश के लोकतंत्र के
ढांचे पर है संविधान के मूल्यों पर है। अगर आप सवाल बर्दाश्त नहीं कर सकते, अगर आप टिप्पड़ी पर धैर्य नहीं रख सकते, अगर आप प्रबंधन पर
नियंत्रण नहीं रख सकते, अगर आप छात्रों के साथ तालमेल नहीं रख सकते तो आप को सत्ता
त्याग देना चाहिए। प्रशासन हो, शासन या या
संघ हो।
देश के लिए इस से बड़ा दुर्भाग्य पूर्ण विषय नहीं हो सकता कि अब विद्या मंदिरों
पर होने वाले आतंकी हमलों की ज़िम्मेदारी लेने वाले संगठन भी देश में मौजूद हैं।
उन्हें इस बात का गर्व है कि उन्हों ने हमला किया है। उस से भी बड़ा दुर्भाग्य यह
है कि सत्ता राजनीति का इन्हें संरक्षण मिल रहा है।
सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए आतंक का सहारा लेगी, इस से बड़ा देश के साथ
मज़ाक और क्या हो सकता है। जिस तरह आतंकवादी संगठन लोगों में अपना खौफ़ और डर बढ़ाने
के लिए अपने जुर्मों का प्रचार प्रसार करते हैं, और कोई संगठन खड़ा हो कर उस आतंक को जस्टिफाई करते हुए सरकारी प्रशासन का मज़ाक़
उडाता है लगभग यही द्रश्य देश में पिछले कुछ वर्षों से शुरू हो गया है।
मोब लिंचिंग कि विडियो वायरल करने के बाद गोडसे ज़िंदाबाद के नारे लगा कर गाँधी
का अपमान शुरू हुआ और अब विद्या के मंदिर पर हमला करने के बाद हमले कि ज़िम्मेदारी
लेने कि प्रक्रिया शुरू हो गई।
एक और काम किया गया कि लोकतंत्र से तानाशाही की तरफ बढ़ते क़दम के ख़िलाफ़ कोई भी
विश्वविद्यालय आवाज़ ना उठा पाए इस के रोहित वेमुला की मौत को उसी का कसूरवार ठहरा
कर JNU को बदनाम करने कि साज़िश
रची गई। आज JNU पर अगर बुलडोज़र चलाने का
फ़ैसला भी अगर सत्ताधीश पार्टी ले लेती है तो कुछ लोग उस का भी समर्थन करने के लिए
खड़े हो जायेंगे।
वह लोग कहाँ हैं जिन्हों ने JNU कैंपस की
मिटटी से अपने वजूद को देश विदेश में एक सम्मानजनक नाम दिया है।



BJP संरक्षित आतंकवादी हमला है
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