नए भारत का इन्कलाब हूँ मैं
[अब्दुल मोईद अज़हरी]
“गौर से देखो मुझे, शाहीन बाग हूँ
मैं” का नारा देश के कोने कोने से गूंज रहा है। संविधान और उस के मूल्यों में
विश्वास रखने वाली भारत की हर बेटी आज शाहीन बाग पर गर्व कर रही है। बादल कितने ही
घने क्यूँ ना हों, एक दिन उन्हें
छटना ही पड़ता है। सत्ता के जिद्दी बादल संविधान की स्याही को कुछ बरसाती मेंढकों
की टर्र टर्र से मिटाने की कोशिश करना चाहते हैं लेकिन संविधान की यह सियाही किसी
किताब का हिस्सा नहीं है बल्कि भारत के सीने नक्श किया हुआ ऐसा लेख है जिसे मिटाना
इतना आसान नहीं है।
अपनी नाकामी और ना क़ाबिलियत छुपाने के लिए चाहे जितने काले
बादल भारत के संवैधानिक मूल्यों, लोकतान्त्रिक मान्यताओं एवं धर्म निरपेक्षता के
अटूट और अखंड भारत के सपनों को घेरने की कोशिश कर लें, इन्कलाब का सूरज दिल्ली का
शाहीन बाग बन कर अराजकता के पहाड़ों को पिघलायेगा और भ्रष्ट नेतृत्व से आज़ादी की
प्यास बुझाएगा।
दिल्ली का शाहीन बाग भारत के इन्क़लाब के इतिहास में अमर होता जा रहा है। जब
गाँधी की अहिंसा की विचारधारा की रौशनी फैल रही हो, तो अँधेरे के सौदागरों को भला यह बात कैसे अच्छी लग सकती है। गोडसे के पुजारी
लगातार गाँधी विरोध में दिन रात जल रहे हैं लेकिन उन्हें हर रोज़ कुछ नए गाँधी पैदा
होते नज़र आ रहे हैं। उन्हें मालूम नहीं कि गाँधी के शरीर को गोली मारी जा सकती है
उन के विचारों को नहीं।
दिल्ली के शाहीन बाग के इंकलाबी जज्बे को जब पैसे के बेहूदा इलज़ाम से रोंदा
नहीं जा सका तो उसे एक धर्म मात्र से जोड़ कर हिन्दू मुस्लिम का संविधान विरोधी
कार्ड खेला गया। अभी इस कार्ड
को गोदी मीडिया और बकैत नेताओं ने “IT Sale” की मदद से ख़ाली खोपड़ी में भरने का प्रयास भर किया था कि
शाहीन बाग की औरतों और प्रदर्शनकारियों को कट्टरपंथी नज़र से देखने वालो के मुंह
में ताला पड़ गया। हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई चारों लोगों ने एक साथ बैठ कर अपनी
धार्मिक रस्मों का द्रश्य देश दुनिया को दिखा दिया।
जिस से यह पता चल गया कि यह
प्रदर्शन धार्मिक नहीं है और न किसी धर्म को बचाने की लड़ाई है बल्कि यह मामला देश
का और उस के संविधान का है। भारतीय होने के नाते उसे बचाने की ज़िम्मेदारी भारत के
सभी नागरिकों की है।
इस हिन्दू मुस्लिम कार्ड के फेल हो जाने के बाद 19 जनवरी को ऐसा कुछ हुआ कि
जिस ने पूरे देश को हिला दिया। 19 जनवरी को समाजी कार्यकर्त्ता और अभिनेत्री स्वर
भास्कर ने जश्ने शाहीन बाग मनाने का एलान किया था। कश्मीरी पंडितों के नाम पर
राजनीति करने वाली मुद्दा मुक्त पार्टी के बकैत नेताओं ने कुछ कश्मीरी पंडितों को
शाहीन बाग भेजने का प्लान बनाया जहाँ वह CAA, NRC के समर्थन में धरना देने
वाले थे। उन कश्मीरी पंडितों ने कहा कि आज ही के दिन कश्मीर में हमारी बस्तियां
उजाड़ी गयी थी, भला आज के दिन जश्न कैसे मनाया जा सकता है।
शाहीन बाग की मुखर, निडर, देश
प्रेमी, सामाजिक सौहार्द एवं सद्भाव वाली औरतों ने अपना स्टेज उन कश्मीरी पंडितों
को सौंप दिया और कहा कि आप भी अपना एहतिजाज कर लो। जिन लोगों ने आप को कश्मीर वापस
दिलाने का सिर्फ़ वादा कर के आप का इस्तेमाल किया हैं उन्हें भी मालूम होना चाहिए
कि हम किसी के जले पर नमक नहीं लगाते।
हम भारतीय हैं और इस मुल्क की मिटटी ने हमें
मरहम लगाना सिखाया है। शाहीन बाग की औरतों ने कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार
की निंदा की और सभी कश्मीरियों को गले से लगा लिया। इस का असर यह हुआ कि वह
कश्मीरी पंडित भी शाहीन बाग की औरतों के साथ बैठ गए उन्हों कहा कि मैं इस नए कानून
का समर्थन तो करता हूँ लेकिन तुम्हारे दर्द में शामिल हूँ।
आख़िर कार अंग्रेज़ों की गुलामी करने वाले दिमाग को कभी तो अक्ल आएगी और इस देश
की मिटटी से प्यार करेगें। नए भारत का इन्कलाब हूँ मैं, गौर से देख मुझे, शाहीन बाग हूँ मैं।
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