मिस्ड कॉल वाली सरकार और समर्थन में धरना प्रदर्शन
[अब्दुल मोईद अज़हरी]
आज़ाद भारत के इतिहास में इतना हास्य पद क़दम शायद ही किसी पन्ने में दर्ज किया
गया हो जितना कि वर्तमान में बहुमत से आयी सरकार का है। सरकार ने राज्य सभा और लोक
सभा दोनों सदनों में बहुमत के साथ नागरिकता संशोधन बिल पारित किया जो अभी क़ानून बन
चुका है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अध्यादेश/नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया
है। दोनों सदनों में बहुमत से पारित होने वाला क़ानून जनता की अदालत में सवालों के
घेरे में आ गया। सवाल भी उचित हैं। सरकार उस का सीधे जवाब देने से कतरा रही है। जब
भी सवाल होता है सत्ता के धुरंधर उसे विपक्ष के कंधे पर रख देते हैं।
एक इंटरव्यू में जब देश के गृह मंत्री अमित शाह से यह सवाल पूछा गया कि
नागरिकता संशोधन क़ानून से संवैधानिक मूल्य उस वक़्त टकराते हैं जब NRC में बाहर किये गए लोगों में से मुस्लिम के अलावा सभी को इस
क़ानून के ज़रिये नागरिकता दे दी जाएगी लेकिन मुस्लिम को बाहर कर दिया जायेगा। जवाब
में अमित शाह कहते हैं कि यह नागरिकता संशोधन कानून किसी भी भारतीय की नागरिकता
छीनने के लिए नहीं है बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और
अफ़गानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यक समुदाय यानि हिन्दू, बौद्ध, जैन, क्रिस्चियन इत्यादि को नागरिकता देने का क़ानून है। उस के
बाद जब वो NRC पर आते हैं तो सीधे
कांग्रेस के पास चले जाते हैं कि NRC कोई नया
मुद्दा नहीं है बल्कि यह तो कांग्रेस के समय पर लागू होने कि बात की गई थी।
दूसरी सच्चाई यह है धर्म प्रताड़ना एक प्रोपेगंडा के अलावा कुछ नहीं क्यूंकि इस
बिल या क़ानून में धर्म प्रताड़ना का कोई ज़िक्र तक नहीं है।
सवाल अभी भी वही हैं:
जब नागरिकता देने का प्रावधान पहले से ही था तो नए क़ानून की आवश्यकता क्यूँ
पड़ी?
नागरिकता देने में इन्हीं तीन देशों का चुनाव क्यूँ किया गया?
इसे धर्म से क्यूँ जोड़ा गया?
अगर नागरिकता संशोधन कानून सिर्फ़ बाहर के लोगों को नागरिकता देने का क़ानून है
तो क्या इसे NRC से पहले लागू किया जायेगा
और NRC के बाद इस का उपयोग नहीं
होगा? जब कि गृह मंत्री जी कह
रहे हैं कि पहले NRC होगी फिर यह
क़ानून लागू होगा?
जब बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने लिस्ट मांगी कि जो भी बंगलादेशी भारत में
हैं उन की सूची दे दो ताकि वो बांग्लादेशियों को अपने देश वापस बुला लें तो अब तक
वह सूची बांग्लादेश को क्यूँ नहीं सौंपी गयी?
अब तक कितने घुसपैठियों को देश से निकाला गया है इस की कोई सूचना जारी क्यूँ
नहीं की जाती?
एक राज्य में NRC के लिए 1600
करोड़ खर्च हुए थे। पूरे देश में NRC के लिए लगभग
55 हज़ार करोड़ खर्च होंगे। देश की मौजूदा आर्थिक मंदी को देखते हुए क्या देश इतने
बड़े बजट के लिए तैयार है?
अगर वाकई में “सब चंगा सी” तो ख़ुद के ही पारित हुए क़ानून के समर्थन में देश
में धरना प्रदर्शन क्यूँ कराये जा रहे हैं?
मिस्ड कॉल से समर्थन की आवश्यकता क्यूँ पड़ गई और मिस्ड कॉल नम्बर को प्रमोट
करने के लिए अश्लील झूट का सहारा क्यूँ लिया गया?
देश में चल रही बहुमत की सरकार को अगर मिस्ड कॉल और धरना प्रदर्शन का सहारा
लेना पड़े तो क्या यह नहीं समझ लेना चाहिए कि जनता क़ानून के विरोध में खड़ी है?
जब देश भर के लोगों को समझाने का प्लान सरकार के पास है विरोध में चल रहे धरना
प्रदर्शनों पर सरकार के प्रतिनिधि क्यूँ नहीं जाते?
क्या अब सरकार से यह सवाल नहीं होना चाहिए कि उस के लिए देश बड़ा है या पार्टी?
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