Monday, October 31, 2016

राष्ट्र निर्माण में युवा की भूमिका

राष्ट्र निर्माण में युवा की भूमिका

युवा पीढ़ी के सही मार्गदर्शन में राष्ट्र की उन्नति और देश की प्रगति है वरना बर्बादी

[ अब्दुल मोइद अज़हरी ]
किसी भी मुल्क और कौम का युवा उस देश, समाज, और समुदाय का भविष्य होता है। उस का धरोहर और मान सम्मान होता है। युवा शब्द ही युवा पीढ़ी की परिभाषा है। यह शब्द उसकी क्षमता को दर्शाता है। युवा को यदि उल्टा कर के पढो तो वायु होता है। वायु की एक खासियत है। यह वायु अगर सही रुख में प्रवाह करे तो उज्वल भविष्य है। लेकिन यदि इस युवा पीढ़ी को मार्ग दर्शक ग़लत मिल जाये। तो उस कौम और मुल्क को बर्बाद होने से भी कोई रोक नहीं सकता। युवा पीढ़ी में जो उत्तेजना, शक्ति और रफ़्तार होती है वो अदभुत होती है। युवा उम्र में कुछ कर गुजरने का जो जज्बा होता है वो मनुष्य को उसकी क्षमता से बहुत आगे ले जाता है।
जिस देश ने अपनी युवा पीढ़ी को सक्षम और साक्षर बना लिया वो देश प्रगति की राह पर न सिर्फ प्रयत्नशील हो गया बल्कि लक्ष्य को प्राप्त भी कर लिया और विकसित देशों की सूची में अपना नाम सम्मिलित कर लिया। जिस समाज ने अपने युवा वर्ग को संस्कारों और संस्कृति के अनमोल धन से धनवान बना दिया उस समाज ने पूरी दुनिया का नेतृत्व किया है। यही कारण है कि कोई भी देश हो कोई भी समाज, समुदाय या धर्म हो सब ने ही अपने युवावों पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है। उनके शिक्षण एवं पालन पोषण को अधिक से अधिक महत्वता दी है।
युवा आयु निकल जाने के बाद मनुष्य समझौते पर ज्यादा यकीन रखता है। उसके अन्दर एक ठहराव आ जाता है। कोई भी प्लान और योजना बनाने के लिए तो अधेड़ उम्र की ज़रूरत होती है। क्यूंकि इस उम्र में स्थिरता के साथ सूझ बूझ होती है। उसके पास ज्ञान के साथ अनुभव होता है। जिस के आधार पर वो एक ठोस प्लान तैयार करता है। लेकिन इस योजना को अमल में लाने के लिए युवावों के मज़बूत बाजुओं, बुलंद इरादों और चुनौती स्वीकार करने के बाद कुछ भी कर गुजरने के हौसलों की ज़रूरत होती है। इस को एक उदाहरण से समझा जा सकता है।
जब समाज में सिक्षा के प्रति जागरूकता में कमी महसूस की गयी तो लोगों की शिक्षा के प्रति जागरूकता के लिए विशेषज्ञों द्वारा एक योजना बनायी गयी। सर्व सिक्षा जागरूकता अभियान का प्रोग्राम बना। सरकार की तरफ से फण्ड राशि भी निश्चित हो गई। अब इस योजना को अमल में लाने के लिए युवा वर्ग की आवश्यकता पड़ी। क्यूँकि आज की पीढ़ी क्या सोंचती है और कैसे सोंचती है, इस का ज्ञान इस युवा पीढ़ी को है। वैसे दोनों पीढ़ियों में उम्र के साथ सोंच में भी अंतर होता है। किसी भी तरह की सीमाओं और बंधनों में बांध कर रहना आज का युवा उस के निजी जीवन में हस्तक्षेप समझता है। जबकि बुज़ुर्ग पीढ़ी इसे रक्षा, सुरक्षा, तहज़ीब, अनुशासन और जाने क्या क्या कहती है। और भी कई असमानताएं हैं। हर क्षेत्र में इस युवा पीढ़ी की ज़रूरत होती है। खास तौर पर रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में और अधिक आवश्यकता होती है।
युवा बहते हुए पानी की तरह है जिसे रोकना असंभव है। क्यूंकि ऐसा करने पर उसका फैलाव और ज्यादा हो जायेगा। और वो पानी ऐसे नए रास्ते पैदा कर लेगा जो पहले से न थे। इस से काफी नुकसान उठाना पद सकता है। इस बहते हुए पानी को सिर्फ दिशा दिया जा सकता है। अब यह ज़िम्मेदारों पर निर्भर करता है कि वो कौन सी दिशा देना चाहेंगे। दिशा सही रहे तो पलक झपकते ही लक्ष्य सामने होगा और कामयाबी क़दम चूम रही होगी लेकिन अगर दिशा गलत हो गई तो दुसरे ही पल तबाही और बर्बादी की काली राख हमारे चेहरों पर होगी। हिरोशिमा और नागासाकी हमारे लिए एक उदाहरण हैं। उस पर परमाणु हथियार छोड़ने वाले 19 वर्षीय दो नवजवान ही थे। दोनों ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि हमें ग़लत दिशा दिखाई गई। हमारा इस्तेमाल किया गया। देश को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी दिलाने वाले नौजवान हों या भारत को भ्रस्टाचार से मुक्त करने हेतु आन्दोलन कारी युवा हों। इन्हों ने हमेशा अपनी महत्वता और क्षमता को सिद्ध किया है।
नई पीढ़ी में भी अपने पूर्वजों ही का खून और संस्कृति होती है। पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा, परंपरा और अनुशासन में ही उनका पालन पोषण होता है। परन्तु वक़्त बदलने के साथ हालत बदल जाते है। स्रोत और तरीके बदल जाते हैं। इस लिए इस बात को समझना अति आवश्यक है। कल बैलों के ज़रिये खेतों की सिंचाई और जुताई करने वाले किसान आज ट्यूबवेल से पानी निकालते हैं। ट्रैकटर से खेत जोतते है। खेतों की सिंचाई और जुताई की परंपरा अब भी है। बस उस का तरीका बदल गया है।
आज का युवा अपने निजी जीवन में किसी का भी घुसना पसंद नहीं करता है। फिर वो कहते उस के माता पीता ही क्यूँ न हों। मेरा जीवन मेरी पसंद के फार्मूले पर जीवन गुजरने वाला युवा अपने आप को सक्षम और मजबूत समझता है। उसे लगता है कि वो हर स्थिति का सामना करने के लिए तैयार है। 21वीं सदी के आज़ादी का आन्दोलन और उस के जज्बाती नारे इस युवा पीढ़ी की रगों में समाता नज़र आ रहा है। वो पुराने तर्क वितर्क समझने की अवस्था में नहीं है। इसी लिए कुछ समय के लिए उसे उसकी ज़िन्दगी में आज़ाद छोड़ देने में ही भलाई है। आज़ाद छोड़ने का यह मतलब नहीं की उसे अपनी नज़रों से दूर कर दे। या फिर अपनी नज़रें हटा ले। आज़ाद करने का एक मतलब यह भी होता है कि उसे व्यस्त कर दिया जाये।
इस युवा पीढ़ी को बुजुर्गों के काम काज या किसी भी रीति रिवाज से कोई दिक्कत नहीं है। बस वो इस तौर तरीकों से घबराता है। क्यूंकि इन परम्पराओं के फायदे या नुकसान से वो अपरिचित है। वो हर काम अपने तरीके से करना चाहता है। उसे अनुभव लेने दिया जाये। पूरी ज़िम्मेदारी के साथ उसे काम करने की आज़ादी उसे ज़िम्मेदार बना देती है। हर मुश्किल में उस के लिए खड़े रहेने का आभास उस के आत्मविश्वास को मज़बूत करता है। इसी के साथ बुज़ुर्ग पीढ़ी पर भरोसे को भी ताक़त मिलती है। इस पीढ़ी से काम लेने का यही तरीका है। वरना बन्दूक का रुख अगर अपनी ही फ़ौज की तरफ हो गया तो दुश्मन को हमला करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
पैसा और पावर को हर युग में प्रगति और तरक्की की निशानी माना गया है। आज का वो युवा जो रोज़गार से जुदा हुआ है वो पूरी तरह सक्षम है। उस के पास पैसा भी है और पॉवर भी है। दुर्भाग्यपूर्ण उस राजनैतिक अंधकार में इन दोनों ही का दुरूपयोग हो रहा है। जो बेरोज़गार हैं वो इस पैसे और पॉवर के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं। कभी कभी ऐसा लगता है की यह बेरोज़गारी भी आज की राजनीति का एक हिस्सा है। वरना देश के शिक्षित और योग्य युवाओं का यूँ बेरोज़गार होना और उन का गलत इस्तेमाल होना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस राजनीति का युवाओं से ख़ाली होना भी अफसोसनाक है।
हर दौर में कामयाबी और तरक्की के अर्थ बदलते रहते है। हर एक की कामयाबी के अलग अलग मतलब होते है। दौलत और शोहरत हर दौर और युग में कामयाबी की निशानी समझी गयी है। इसी दौलत और शोहरत के नशे ने इंसानी आबादी पर ऐसे वार किये हैं जिस के ज़ख्म इतिहास के पन्नो में अब तक दर्द से चीख रहे हैं। आज पूरा खाड़ी देश इसी दौलत और शोहरत की दिशाहीन राजनीति का शिकार हो कर एक एक कर बिखर कर चकना चूर हो रहा है। न तो खाड़ी देशों का तेल इन्हें बचा पा रहा है और न ही मुस्लिम देशों पर इन की बादशाहत इन की किस्मत बदल पाने में कोई अहम् रोल अदा कर रहा है।
आज इसी युवा पीढ़ी को सही मार्ग दर्शन और मार्ग दर्शक की ज़रूरत है। क्यूंकि जिन युवा कन्धों पर देश और समाज को आसमान की बुलंदियों पर पहुँचाना था आज वही युवा अपनी दिशा से भटकता नज़र आ रहा है। उसका राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक शोषण किया जा रहा है। देश में फैल रही अशांति, असहिष्णुता और अपराध में इस युवा का काफी रोल नज़र आ रहा है। समाज में साम्प्रदायिकता और धर्म एवं जाति के नाम पर भेदभाव फैलाने में इस युवा का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस राजनैतिक आतंकवाद के चलते न सिर्फ देश का युवा दिशा हीन हो रहा है बल्कि देश की तरक्की की रफ़्तार भी रुक सी गयी है। चंद भ्रष्ट राजनेताओ की वजह से पुरे देश का गौरव, अभिमान और सम्मान दाँव पर लगा हुआ है।
इतिहास के पन्ने साक्षी हैं जब भी इस युवा पीढ़ी ने करवट ली है एक इन्कलाब आया है। किसी भी असंभव मिशन को संभव बनाया है। 200 साल अंग्रेजों की ग़ुलामी के विरुद्ध आज़ाद हिंदुस्तान के सपने को साकार करने में इस युवा पीढ़ी का योगदान अतुल्य एवं अमूल्य है। मौत की आँखों में ऑंखें डाल कर देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने की सौगंध खाने वाले युवाओं ने अपने पीछे कई उदाहरण छोड़े हैं। जो आज तक इस नई युवा पीढ़ी के लिए मार्ग दर्शन का कार्य कर रहे हैं। उबलते हुए ज्वालामुखी की तरह खून की गर्मी को अगर बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिया गया तो वो अपने अन्दर ही विस्फोट कर लेगा। जिस से उस के साथ देशी के भविष्य का भी बड़ा नुकसान होगा।
यही वजह हैं कि राजनीति का कारोबार करने वाले पाखंडियों का षड्यंत्र इस युवा पीढ़ी का दुरूपयोग करने में लगी हुई है। धर्म, आस्था और सामाजिक मूल्यों का भी धंधा बड़े धड़ल्ले से चल रहा है। हर तरह के सांप्रदायिक दंगों में इस का दुरूपयोग कर के मजबूरी की आग में अपनी सत्ता की रोटी सेकी जा रही है। सही दिशा न मिलने का ही कारण है कि अपराध जगत में यह पीढ़ी प्रवेश कर रही है। जुर्म और अपराध के नए तरीके तलाश करने में जुटी है। आतंकवाद और नक्सलवाद से लेकर उग्रवाद तक इस खूब प्रयोग हो रहा है। धर्म के नाम पर भी इस युवा समाज को भ्रमित किया जा रहा है।
राजनैतिक आतंकवाद के बलबूते धर्म का राजनीतिकरण करने वाले इन विद्रोहियों के विरुद्ध हर वर्ग से ज़िम्मेदारों को उठना होगा। धर्मगुरु, सामाजिक कार्यकर्ता, व्यावसायी, राजनेता, शिक्षा और रक्षा विशेषज्ञ, गावं के मुखिया ले लेकर देश मुखिया तक सब को इस बारे में सोंचना होगा। सब को मिल कर इस बीमारी का इलाज करना होगा। वरना कैंसर की तरह ये बीमारी देश के युवा को खा जाएगी और देश इस दीमक के कारण खोखला हो जायेगा। आज की सब से बड़ी देश भक्ति यही है कि देश को इस राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक आतंकवाद से बचाया जाये। इस के लिए हर धर्म, जाति और समाज के लोगों को मिल कर लड़ाई लड़नी होगी। सब इसी देश के है और यह सब का देश है। यही आज हम सब की धार्मिक सामाजिक और राजनितिक ज़िम्मेदारी है।
#Youth #Yuwa #YouthPower #YouthandtheNation 
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Sunday, October 30, 2016

زندہ ہے یا مار دیا گیا، نجیب کہاں ہے ؟ जिंदा है या मार दिया गया नजीब कहाँ है? Is He Alive or has been Murdered? Where is Najeeb?


 زندہ ہے یا مار دیا گیا، نجیب کہاں ہے ؟ 
طلاق سے وقت ملے تواک نظر ادھر بھی 



عبدالمعید ازہری
جواہر لعل نہرو یونیورسٹی ملک کی عظیم یونیورسٹیوں میں سے ایک ہے ۔ اس کی علمی لیاقت و صلاحیت کے ستارے پوری دنیامیں روشن ہیں ۔اس عظیم یونیورسٹی کو لوگ جمہوریت کا آئینہ بھی کہتے ہیں ۔ اس کی عملی تصویریں ہمیں گاہے بہ گاہے وقت بے وقت دیکھنے کو ملتی ہے ۔ علم و فن کی درسگاہ میں ،علوم فنون میں مہارت کے ساتھ ایک اچھا اور ذمہ دار شہری بننے کی بھی تعلیم ،علم کے اس مرکز کو منفرد کر دیتاہے ۔یہ یونیورسٹی مختلف زبانوں پر عبور کے ساتھ سیاسی شعور کیلئے بھی جانی جاتی ہے ۔ کسی بھی حق تلفی اور نا انصافی کے خلاف آواز بلند کرنے کی ایک طویل تاریخ اس علم کے مرکز کے نام ہے ۔ ملک کے کسی بھی کونے میں انسانیت کے خلاف ہونے والے حادثات کیلئے اس جگہ سے آواز ضرور اٹھائی گئی ہے ۔یہی وجہ ہے کہ جے این یو کیمپس میں کبھی بھی فرقہ واریت کی چنگاری کو ہوا نہیں ملی ۔ یہ کیمپس ملک کے اس نقشہ اور خواب کا پتہ دیتا ہے جسے ہمارے اکابرین نے دیکھا تھا ۔کہ’ ملک کا ہر باشندہ ایک دوسرے کا ہمدرد اور بہی خواہ ہو‘۔اس کیمپس کے امن پسند جمہوری آسمان پر کبھی بھی فرقہ پرستی اورمذہبی تشدد کے بادلوں کا سایہ نہیں پڑا ۔ کوششیں تو کی گئیں لیکن انسان دوستی کی تیز ہواؤں نے ہمیشہ ان کالے بادل کے سایوں کو دور رکھا ۔ ۲۰۱۴ کے لوک سبھا انتخابات کے بعد ہواؤں نے رخ بدلا ۔ کیمپس کی تاریخ میں وہ سب ہونے لگا جس کی کبھی امید نہیں کی گئی تھی ۔اپنی علمی اہلیت اور ہنر مندیوں کیلئے پوری دنیامیں ایک خاص جگہ بنانے والا یہ ادارہ راتوں رات فرقہ واریت کی سیاہ سرخیوں میں آ گیا ۔ مہینوں احتجاجات ہوئے ۔ اس کیمپس سے اٹھنے والی آوازوں کو مذہب اور برادری کی نظر سے دیکھا گیا ۔ ملک کی سالمیت کے لئے ہمیشہ اٹھنے والی آوازوں پر ملک سے غداری کا الزام لگایا گیا ۔ پہلی بار تاریخ پر سیاہی پوتی گئی ۔ پہلی بار کیمپس کی تاریخ میں ایسے ابواب کا اضافہ ہوا جس نے ماضی کی بنیادوں کو ہلا ڈالا ۔آزادی کی مثال قائم کر چکا کیمپس پہلی بار اپنے آپ کو غیر محفوظ محسوس کر رہاہے ۔
جے این یو کے رات کا جشن کوئی نئی بات نہیں ۔ لیکن ایک رات کئی مہینوں کا ماتم لانے والی ہے کسے پتہ تھا ۔کنہیا ، عمر خالد اور ان کے کچھ ساتھیوں کے ساتھ کھیلی گئی سیاسی کا ڈرامہ پوری دنیا نے دیکھا ۔ سیاست خود بھی حیران تھی میں کہاں پھنس گئی ۔ ایسی ہی ایک رات ۱۴ اکتوبر کی تھی ۔ جب جے این کا ایک طالب علم بری طرح سے زخمی کیا جاتا ہے ۔ اسے لہو لہان کرکے وارڈن اور گارڈ کے سامنے مارنے کی دھمکی دک جاتی ہے ۔ ۱۵ اکتوبر کو دن کے اجالے میں اسے غائب کر دیا جاتا ہے ۔ کس نے کیا ؟کیوں کیا ؟ نجیب کہاں ہے کسی کے پاس کوئی جواب نہیں ۔جے این یو کی امن پسند فضا میں نفرت کا زہر گھولنے والے اس حادثے نے کیمپس کی تاریخ میں کچھ ایسے ابواب کا اضافہ کر دیا ہے جو برسوں تک زخم دیتے رہیں گے ۔جے این یو ذمہ داروں کی خاموشی اسے اور دردناک اور خطرناک بناتی جا رہی ہے ۔ کیونکہ جس دن نجیب واپس آئے گا ۔ وہ کچھ ایسے انکشاف کر سکتا ہے جس کچھ لوگوں کے پپروں کے نیچے سے زمین یا کرسی کھسک سکتی ہے ۔نجیب کی پر اسرار گمشدگی ہر ایک کو شک کے کٹگھرے میں لا کر کھڑا کر دیتی ہے ۔ 
۲۰ طلبہ کی چشم دید گواہی سے تقریبا ۱۰ حملہ آوروں کی پہچان بھی ہو گئی ہے ۔ لیکن ان کے خلاف اب تک کوئی کاروائی نہیں کی گئیْ ۔ حد تو یہ ہے کہ ایک رپورٹ کے مطابق خود نجیب ہی کو ذمہ دار اور قصوروار ٹھہرایا جا رہا ہے ۔ جب طلبہ یونیورسٹی کے وائس چانسلر سے ملنا چاہتے ہیں ۲۴ گھنٹے دروازے پر ان کا انتظار کرتے ہیں تو طلبہ سے مل کر ان ہمت بندھانے اور انہیں تحفظ کا بھروسہ دلانے کی بجائے چیٹنگ چیٹنگ کھیل رہے ہیں۔ دسیوں ٹویٹ کر کے لوگوں کو باخبر کر رہے ہیں کہ دروازے پر ایک ڈرامہ ہو رہا ہے ۔یہ طلبہ کے ساتھ بھدا مزاق نہیں تو اور کیا ہے ۔ کیمپس کے اندار طلبہ کی حفاظت کی ذمہ داری کس کی ہے ۔ یہی واقعہ جب پچھلے دنوں کنہیا کمار اور خالد عمر کے ساتھ ہوا تھا تو شکایت ملتے ہی دونوں کے خلاف کاروائی شروع ہو گئی تھی۔ تحقیق و تفتیش کا معاملہ تو بعد میں شروع ہو ا تھا ۔ لیکن تحریری شکایت اور چشم دید گواہی کے با وجود اے بی وی پی کے ان کارندوں کے خلاف کوئی کاروائی نہیں کی گئی ۔ آخر کیوں ؟
کیا اسے بھگوا تشدد ، تعصب ، انتہا پسند ی اور دہشت گردی نہیں کہا جا سکتا؟
انسانیت کا تقاضہ تو یہی ہے کہ اگر اس میں کو ئی داخلی شمولیت نہیں تو یونیورسٹی کو سخت اقدام لینے کی ضرورت ہے ۔ خود اے بی وی پی کو بھی آگے آنا چاہئے ۔ کیونکہ یہ سیاست نہیں بلکہ جے این یو کے ایک طالب علم کی زندگی کا سوال ہے ۔ صرف جے این یو کے ایک طالب علم نہیں بلکہ کسی بھی اسکول ، کالج اور یونیورسٹی میں پڑھنے والے ہر طالب علم کے تحفظ کا سوال ہے ۔جہوریت اور اسانیت میں یقین رکھنے والے کسی بھی انسان کی ٹوٹتی آس کا سوال ہے ۔ جے این یو وہ کیمپس ہے جو ملک کو مستقبل دیتا ہے ۔ ملک کے دھندھلاتے مستقبل کا سوال ہے ۔ اس میں جمہوریت کو تربیت ملتی ہے ۔ دم توڑتی جمہوریت کی اکھڑتی اور ٹوٹتی سانوں کو بچانے کا سوال ہے ۔
نہیں معلوم نجیب کو کیا ہوا۔ اسے اغوا کیا گیا ، مار دیا گیا ، غائب کر دیا گیا یا اور کیا سلوک کیا گیا ۔اگر اس کا جواب نہیں ملا تو کسی بھی اسکول کالج اور یونیورسٹی کے کسی بھی طالب علم کو اپنی باری کا انتظار کرنا چاہئے ۔ جب ملک کا مستقبل سنوارنے والی درسگاہیں محفوظ نہیں تو تعمیر وترقی کی راہیں مسدود ہونے سے کون روک سکتا ہے ۔ آج نجیب کی ماں کے آنسو سوکھے ہیں۔ کل کسی اور ماں کا سہارا چھن جائے گا ۔ کسی اور بہن کا آسرا ٹوٹ جائے گا ۔ 
جے این یو طلبہ کے جوش اور ہمت کو سلام ہے جنہوں نے اب تک ہمت نہیں ہاری ۔ اس معاملے کو فرقہ واریت کی نذر کرنے کی بجائے اسے زندہ رکھا ۔ اپنی تاریخ کو بچانے کیلئے جد جہد کر رہے ہیں۔ روزانہ مظاہرے کر رہے ہیں۔ یہ بتانے کی کوشش کر رہے ہیں کہ ہم ملک کا مستقبل ہیں۔ ہمیں اپنی جھوٹی سیاست کے لئے قربان نہ کرو ۔ جب بیٹے نہیں رہیں گے تو دولت کس کے لئے کماؤگے ۔طلاق سے فرصت مل جائے تو ایک نظر اس پر بھی ڈال دیجئے ۔
جے این یو کے طلبہ تو اپنا کام کر رہے ہیں ۔ آپ کیا کر رہے ہیں؟
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Abdul Moid Azhari (Amethi) Email: abdulmoid07@gmail.com, Contact: 9582859385
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Saturday, October 29, 2016

समान नागरिक संहिता, यू.पी. विधान सभा चुनाव और मुसलमान Uniform Civil Code, UP Assembly Election and Muslimsیکساں سول کوڈ ،یو پی اسمبلی انتخاب اور مسلمان


یکساں سول کوڈ ،یو پی اسمبلی انتخاب اور مسلمان

عبد المعید ازہری


تین طلاق کو عورتوں پر ظلم قرار دینے والے حلف نامے کی مخالفت کا سلسلہ تھمنے کا نام نہیں لے رہا ہے ۔روزانہ ملک بھر میں ایک سے زائد نشستیں قائم کر کے خالص مذہبی معاملات میں حکومت کی غٖیر قانونی دخل اندازی کی سخت مذمت مسلسل جاری ہے ۔لا ء کمیشن کی طرف سے جاری کئے گئے فارم کو کچھ لوگوں نے سرے سے بائکاٹ کر دیاتو کچھ لوگ اسے بھرائے جانے کی مہم قائم کر چکے ہیں۔حکومت کے اس رویہ کے خلاف چھوٹے بڑ ے احتجاج ، مظاہرے اور نشستیں تو ہو رہی ہیں لیکن اب تقریبا بیس دنوں کا عرصہ گزر جانے کے بعد ایسا محسوس کیا جا رہا ہے کہ مسئلے کا سیاسی رخ ایک بار پھر سے ۲۰۱۴ دہرانے کی کوشش کر رہاہے ۔مسلمانوں کی جانب سے متحد احتجاج اور کانفرنسیں جہاں مسلمانوں کو ایک پلیٹ فارم کا خواب دکھا رہی ہیں وہیں دوسری طرف ان کے ذریعہ مسلمانوں کے خلاف اتحاد کے خواب کو شرمندہ تعبیر بھی کیا جا رہا ہے ۔ رام مندر کے مدعی کو کسی سیاسی مجبوری کے تحت جب پورا نہ کیا جا سکااور پی ڈی پی کے ساتھ مشترک حکومت کی وجہ سے کشمیر میں بھی ۳۷۰ پر کام نہ ہو سکا تو ایک آخری پتہ یکساں سول کوڈ ہی کا ہے جو حکومت اور بی جے پی کو ۲۰۱۷ کے انتخاب میں زندہ رکھ سکتا ہے ۔چونکہ یکساں سول کوڈ صرف مسلمانوں کا ہی معاملہ نہیں اسلئے اسے سیدھے نشانہ بنانے کی بجائے تین طلاق کو موضوع بنایا گیا ۔ دلت مسلم اور دیگر اقلیتوں کے ساتھ ظالمانہ سلوک کرنے کے بعد اچانک حکومت کو مسلم عورتوں کے ساتھ ہمدردی، ضرورت سے زیادہ حیران کن ہے ۔ ویسے ایک حکومت کے ناطے ہمیں امید ہوتی اور رہنی چاہئے کہ وہ عام شہریوں اور باشندوں کے ساتھ حق و انصاف کا معاملہ رکھے گی ۔ کسی کے ساتھ بھی ظلم ہونے نہیں دے گی ۔ کوئی بھی بھوکا اور بنا چھت کے رات نہیں گزارے گا ۔

اس میں صرف موجودہ حکومت ہی کا سیاسی فائدہ نظر نہیں �آرہا ہے ۔بلکہ عوامی مقبولیت کھو رہی کئی تنظیموں کو بھی اس کا فائدہ مل رہاہے۔ اسی لئے اب تک یہ مسئلہ بغیر کسی خاص عملی لائحہ عمل کے گرم ہے ۔ مسلم پرسنل لاء کی بگڑتی شبیہ کے لئے بھی یہ نقاب کا کام کرے گا۔ جس میں خالص مذہبی اغراض و مقاصد سے سیاسی گلیاروں میں چہل قدمی کے داغ چھپ جائیں ۔ مذہب کے نام ہر سیاسی سوداگری کا یہ کھیل جب مہنگا پڑ گیا تو اسے بھنانے کیلئے پھر سے عوامی حمایت و ہمدردی درکار تھی ۔ اس میں وہ سب کچھ حاصل ہو جائے گا ۔ جمیعۃ علماء ہند بھی اس کا خوب فائدہ اٹھانے کی کوششوں میں لگی ہے ۔ ابھی حال ہی میں وہابیت سے کنارہ کشی کا اعلان کرنے کے بعد ایک صوفی کی درگاہ سے اپنی عقیدت و محبت کا اظہار کیا ۔ جب وہاں سے کچھ سوال اٹھنے لگے تو پھر اس معاملے کو لیکر سرگرمی سہارا دینے کیلئے کافی ہے ۔ جمیعۃ علماء ہند کے سرکاری بیان کے مطابق اجمیر شریف میں ہونے والا اجلاس علم و تعلیم سے منسوب تھا ۔ اسکے لئے وہاں سرکار غریب نواز کے نام سے ایک یونیورسٹی کھولنے کا بھی فریب رچا گیا تھا ۔ لیکن جب یہ دوسرا مدعی سامنے آگیا تو موضوع بدل گیا ۔جمیعۃ اہل حدیث بھی مسلم پرسنل لاء کی حمایت میں کھڑی نظر آرہی ہے ۔ جبکہ ان کے نزدیک تین طلاق کا مسئلہ جمیعۃ، پرسنل لاء بورڈ اور اہل سنت و جماعت کو موقف سے الگ ہے ۔ میدیا میں آنے والی خواتین کا تعلق بھی یا تو اہل حدیث، سلفی ، غیر مقلد سے ہے یا پھر دین سے بے زار افراد سے ہے ۔ اسے حکومت کی سازش کہہ کر روزانہ احتجاج اور کانفرنسوں سے سب کے اپنے ذاتی فائدے ہو رہے ہیں۔ عام مسلمان استعمال ہورہا ہے ۔ اس کا بدستور استحصال ہو رہا ہے ۔اگر یہ سیاسی سازش اور خطہ ہے تو ہمارے زوردار مظاہرے اس منسوبے کو انجام دینے میں پیش پیش ہیں۔

یہ بھی سچ ہو سکتا ہے کہ یہ ۲۰۱۷کی تیاری ہو لیکن یہ معاملہ صرف اسی حکومت کے ساتھ مخصوص نہیں ۔یہ معاملہ اس سے پہلے بھی ہو چکا ہے ۔ ۲۰۰۷ میں بھی تین طلاق کا مسئلہ اٹھایا گیا تھا ۔ خود پرسنل لاء بورڈ کے ایک عہدے دار کی شمولیت کا بھی خلاصہ ہوا تھا لیکن اس وقت اتنا احتجا نہ تو جمیعۃ علماء ہند نے کیا تھا اور نہ ہی مسلم پرسنل لاء بورڈ نے کیا تھا۔ اس مخصوص شخص کے اخراج بھر سے سب کو تصلی ہو گئی تھی ۔ اس وقت حکومت کانگریس کی تھی ۔ اس سے بھی پہلے بی جے پی کے علاوہ سیاسی پارٹیوں کے دور حکومت میں کئی طرح کے مذہبی،سیاسی و سماجی چھیڑ چھاڑ کے معاملے سامنے آئے ہیں لیکن اسے کسی سیاسی بازی گری کا نام نہ دیکر متحد مظاہرے ہوئے ۔ جب سے یہ حکومت آئی ہے یا اس حکومت کے آنے سے پہلے بھی انہیں مسلم تنظیموں نے کانگریس کی زبان اختیار کر لی تھی۔ اگر مسلمانوں کے ساتھ نا انصافی ہو رہی ہویا کسی بھی ہندوستانی شہری کے ساتھ ظلم ، زیادتی یا حق تلفی ہو رہی ہو تو کیا حکومت کی شکل دیکھ کر احتجاج کا تیور بنایا جائے گا ؟ کیا کسی سیاسی حزب مخالف کی طرح ہمار ا رویہ ہوگا ؟ تین طلاق کا مدعی سیاسی کھیل کے ساتھ عام مسلمانوں کے لئے بھی لمحہ فکر بنتا جا رہا ہے ۔ وہ احتجاج تو کر رہا ہے لیکن وہ بھی ایک مستقل حل چاہتا ہے ۔ مسئلے کی مکمل وضاحت کا طالب ہے ۔ اس بار مفتیان کرام کی ذمہ داری ہے کہ وہ اس خالص علمی اور فقہی مسئلے میں ایک متفق علیہ رائے قائم کریں ۔اس مسئلے کو لیکر ہندوستان کی اکثرمسلم ملی و مذہنی تنظیموں نے اتفاق کیا ہے کہ خالص مذہبی معاملات میں حکومت کی کسی بھی طرح کی دخل اندازنی قابل قبول نہیں ۔ملک کا آئین جب خصوصی حق دیتا ہے تو اسے ختم کرنے کا حق کسی کو نہیں ۔ ملک میں سیکڑوں برادریوں کو ملک کے آئین کے مطابق خصوصی حق ملا ہوا ہے ۔ وہ تمام پرسنل لاء زیر عمل بھی ہیں۔
اس سے انکار ممکن نہیں کہ اس طرح کے مسائل اسی وقت ہمار ے سامنے آتے ہیں جب ہمارے نام نہاد دینی رہنماء خدائی کا دعوہ کرنے لگتے ہیں۔ مسئلے کو صحیح طریقے سے سمجھانے کی بجائے اسے تھوپنے میں یقین رکھتے ہیں۔ کسی بھی طرح کے سوال کو دین میں دخل اندازی کہہ کر اسے اور تشویس ناک کر دیتے ہیں ۔یقیناًیہ معالمہ سراسر خالص دینی معاملات میں غیر قانونی دخل اندازی ہے ۔ آئین کی خلاف ورزی ہے ۔اس کے لئے آواز بلند کرنی ضروری ہے ۔ اس کے ساتھ اس طرح کے حالات سے نمٹنے کیلئے ایک مضبوط لائحہ عمل کی بھی ضرورت ہے ۔ہر اہل و نااہل دین کا ٹھیکے دار نہیں بن سکتا ہے ۔ جس طرح ہم ہمارے اسلام کے نظام میں یقین ہے اسی طرح اس بات کا بھی خیال رکھا جائے کہ ہم اس ملک کے آئین اور قانون میں نہ صرف یقین رکھیں بلکہ اس کی حفاظت بھی کریں۔اسی سال فروری میں سپریم کورٹ نے ایک کیس کے فیصلے میں صراحتا اس بات کی وضاحت کی تھی کہ یہ ایک خالص دینی مسئلہ ہے اس میں جو بھی قرآن وحدیث کو روشنی میں نتیجہ نکلتا ہے اس پر عمل کیا جائے گا ۔ اسی طرح درگاہ حاجی علی پر عورتوں کے داخلے کو لے کر بھی سپریم کورٹ نے یہی کہا تھا کہ جو قرآن اورحدیث کے مطابق صحیح ہو اس پر عمل ہو ۔ابھی صدر جمہوریہ عالی جناب پرنب مکھرجی جی نے بھی اس بات کی وضاحت کی کہ خالص دینی معاملات میں غیر قانونی دخل اندازی سے گریز ضروری ہے ۔ نکاح و طلاق سے لے کر خلع اور حلالہ سب کی حکمتیں قرآن احادیث کے علاوہ سائنس اور لوجک کے ذریعہ بھی واضح ہے اسے اسی انداز میں واضح کرنے کی اشد ضرورت ہے ۔اب صرف دست بوسی اور جی حضوری سے قیادت و ہدایت محفوظ ہونے والی نہیں۔ محدود فکر کے جاہل علماء کی کج فہمی کا نتیجہ ہے کہ مسلمان اتنا منتشر اور اسلام تنقید و تنقیص کے نشانے پر ہے ۔ ان کی ہٹھ دھرمی ضد اور اپنے علم پر غرور نے اسلام کی شبیہ اور انسانی وقار کو مجروح کیا ہے ۔انہیں بھی خود احتسابی کی سخت ضرورت ہے ۔
الگ الگ برادریوں کے خالص دینی اور قومی رسم و رواج، عبادات و معاملات کے علاوہ ملک کے ہر باشندے کیلئے قانون یکساں ہے ۔ یکساں سول کوڈ تو پہلے ہی سے نافذ ہے ۔ جتنی ضرورت ہے، جتنے سے ملک کی تعمیر و ترقی میں کوئی رکاوٹ نہیں آتی ۔اتنی زیر عمل ہے۔ کسی بھی آئین کی مخالف نہیں ہوتی ۔ سبھی اسے مانتے ہیں ۔مسلمانوں کے نکاح طلاق اور وراثت کے معاملے میں خاص حقوق ہیں ۔ جنہیں ملک کا آئین اجازت دیتا ہے۔ اسی طرح الگ الگ برادیوں کے ہیں اب اگر اس کو بھی ایک کر دیا جائے تو آسانی ہونے کی بجائے مشکل پیدا ہو جائے گی ۔یہ ملک ’انیکتا میں ایکتا‘ کیلئے جانا جاتا ہے ۔ مختلف مذاہب اور تہذیب ہونے کے باوجود ایک ساتھ رہتے ہیں ۔ کیونکہ سب کو مذہبی آزادی حاصل ہے ۔ اسے ختم کردیا گیا تو ملک کا یہ سرمایا بکھر جائے گا ۔ نفرتیں اور کدورتیں گھر کر جائیں گی ۔خالص دینی معاملات میں یکساں سول کوڈ موجود ہے ۔ جیسے کہ ایک مسلمان جوڑا جب اپنی شادی میں اسپیشل میرج ایکٹ کے تحت مندرج کر ا لیتا ہے تو اسے خصوصی قانون کی بجائے عام قانون ہی تحت دیکھا جائے گا ۔ہماری عدالتوں میں ویسے ہی لاکھوں کیس زیر سماعت ہیں ۔ کئی کیس کئی برسوں سے چل رہے ہیں۔ اگر شادی اور نکاح کے کیس بھی اسی فہرست میں آگئے تو زندگی کتنی مشکل ہو جائے گی اس کا اندازہ لگایا جا سکتا ہے ۔
تین طلاق اور حلالہ جیسے مسئلوں کو سیاسی دخل اندازی کے ساتھ عوامی نظر سے بھی دیکھنے کی ضرورت ہے ۔ جو خواتین مسئلے کی نزاکت اور سنگینی کو سمجھے بغیر بہک رہی ہیں انہیں بھی حق ہے کہ وہ اپنے حقوق کو سمجھیں ۔ حکمت اور مقصد کو واضح کرنا ہمارادینی و ملی فریضہ ہے ۔ یہ ذمہ دار مفتیوں کو طے کرنا ہے کہ اس مسلئے میں کسی متفق علیہ موقف کو طے کریں ۔یہ کسی سیاسی ، ملی ، سماجی ، تعلیمی اور دیگر فلاحی تنظیموں کا مسئلہ نہیں ہے یہ ۔خالص دینی ، علمی اور فقہی مسئلہ ہے ۔ دین کے ٹھیکے
داروں کی خبر گیری کے ساتھ ذمہ دار مفتیان کرام اس مسئلے کی سنگینی کو سمجھیں ۔ بحث اور سیمینار کی ضرورت ہو تو اس پر بھی عمل کریں۔ ایک تحریری اور تحقیقی موقف دلائل و براہین کے ساتھ حکمت و ضرورت کے ساتھ عوام و حکام کے سامنے رکھیں۔ورنہ ملک میں ہر سال کہیں نہ کہیں انتخاب ہوتے رہتے ہیں ۔ ہماری پوری زندگی صرف احتجاج میں مصروف ہو کر گزر جائے گی ۔ تعمیر و ترقی کا خواب بھی نہیں دیکھ پائیں گے ۔ اسے پورا کرنے کی تو بات دور کی ہے ۔
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Abdul Moid Azhari (Amethi) Email: abdulmoid07@gmail.com, Contact: 9582859385
یکساں سول کوڈ ،یو پی اسمبلی انتخاب اور مسلمان




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Friday, October 28, 2016

JNU का एक छात्र लापता 14 दिनों से कोई सुराग नहीं कैंपस में खौफ का माहौल नजीब कहाँ है ?جے این یو طلبہ میں گمشدگی سے بڑھی بے چینی ۱٤ دنوں سے کوئی سراغ نہیں، نجیب کہاں ہے ؟


جے این یو طلبہ میں گمشدگی سے بڑھی بے چینی
۱۲ دنوں سے کوئی سراغ نہیں، نجیب کہاں ہے ؟
عبد المعید ازہری
 
جواہر لعل یونیورسٹی ملک کے عظیم علمی مراکز میں سے ایک ہے ۔ اس یونیورسٹی کی علمی لیاقت ، ہنر مندی کے جوہر کے علاوہ سیاسی شعور کے ستارے پور ے دنیامیں روشن ہیں۔طلبہ کی غیر جانب دارانہ بے داری اور حساس طبیعت نے بھی اس ادارہ کو منفرد بنایا ہے ۔ ملک کے کسی بھی کونے میں ہونے والے غیر انسانی اور غیر قانونی حادثات کیلئے اس کیمپس نے ہمیشہ آواز اٹھائی ہے ۔ یہی بے باکی اور حق گوئی اس یونیورسٹی کو منفرد بنا دیتی ہے ۔ یہاں کبھی بھی فرقہ واریت یا برادری واد کو فروغ نہیں مل پایا ۔ نسلی تعصب اور تانا شاہی کو بھی ہمیشہ اس کیمپس کی تنقید کا سامنا کر نا پڑا ہے ۔سیاسی استحصال کے خلاف اس کیمپش کے طلبہ نے بلا تفریق نسل و مذہب متحد آواز اٹھائی ہے ۔ یہ سب کچھ اپنی روایت کے ساتھ بڑی ہی حساسیت کے ساتھ چل رہا تھا ۔۲۰۱۴ کے لوک سبھا کے انتخابات کے بعد بھگوا تشدد کا شکار اقلیتی طبقہ کے ساتھ یہ ادارہ بھی ہوا ۔ جے این یو کی تاریخ میں پہلی بار حق گوئی اور بے باکی کو ملک کے غداری میں تبدیل کیا گیا ۔ کئی طلبہ میں خوف حراس کی زد میں لیا گیا ۔لیکن اپنی روایت پر قائم رہتے ہوئے جے این نے طلنہ یونین کا ایک نیا باب کھول دیا ۔لیکن تب تک کچھ ایسے باب کے اضافے ہو گئے تھے جو ماضی کے کامیاب کارناموں پر دیمک کا کام کرنے لگے تھے ۔ کنہیا اور خالد کا باب ابھی پوری طریقے سے بند بھی نہیں ہوا تھا کہ اچانک جے این کیمپس میں ایک ایسا حادثہ ہوا جسے کیمپس کی تاریخ نے کبھی نہیں دیکھا تھا ۔ بایو ٹیک انجینیرنگ کا ایک طالب علم دن کے اجالے میں غائب کر دیا گیا ۔ پولس محکمہ سے لیکن یونیورسٹی کی سیکیورٹی کو اب تک اس کا کوئی سراغ نہیں ملا ۔ ۱۴ اکتوبر کی رات کو ماہی مانڈوی ہاسٹل کے انتخاب کی تیاری چل رہی تھی ۔ اسی دوران اے بی وی پی کے امید وار وکرانت ڈور ٹو ڈور ووٹ مانگ رہے تھے ۔ جب نجیب کے کمرے میں پہنچے تو کچھ ہی دیر میں ہاتھا پائی کی آواز باہر سنائی دی ۔ تھوڑی ہی دیر میں اے بی وی پی کے کچھ اور غنڈے اس لڑکے کو بری طرح پیٹ دیتے ہیں۔ کچھ دوسرے طلبہ کے بیچ بچاؤ کے بعد مار پیٹ کا یہ سلسلہ موقوف ہوتا ہے لیکن ختم نہیں ہوتا ۔ وارڈن اور سیکیورٹی گارڈ کے آنے کے بعد بھی اسے اتنا مارا گیا کہ ایمس میں داخل کرنا پڑا۔ صبح اسپتال سے واپس آکر طالب علم اپنی ماں کا انتظار کرنے لگا اس نے ایک دن قبل ہی اپنی ماں سے ملنے کی خواہش ظاہر کی تھی ۔ تقریبا ۱۱ بجے ماں کا فون آتا ہے کہ وہ آنند وہار پہنچ چکی ہیں۔ اپنے بیٹے کو کمرے ہی پر رہنے کو کہا ۔ ماں جب ہاسٹل پہچتی ہے ۔ تقریبا ۱۲ بجے سے وہ لڑکا ہاسٹل سے غائب ہے ۔ آج ۱۳ دن ہوگئے اب تک نجیب لا پتہ ہے ۔ وکرانت کے مطابق جب وہ ووٹ مانگنے کیلئے نجیب کے کمرے میں داخل ہوا تو نجیب نے وکرانت کے ہاتھ میں بندھے کلاوہ پر تنقید کرتے ہوئے اس کا مزاق اڑایا ۔ اس کے بعد وکرانٹ پر ہاتھ اٹھا دیا ۔ جب کہ کیمپس ہی کی دوسری کچھ لڑکیوں کے مطابق اس نے نجیب کے ہاتھوں میں راکھی بھی باندھی تھی ۔اس کے علاوہ دسیوں ایسے لڑکے ہیں جنہوں نے اس بات کا اعتراف کیا کہ وہ ایسا لڑکا نہیں تھا کہ کسی سے بھی بلا وجہ الجھ جائے ۔
تقریبا ۲۵ لڑکوں نے نجیب کو ما رکھاتے دیکھا ہے ۔ انہوں نے تحریری طور پر پروکٹر اور شیخ الجامعہ سے شکایت درج کرائی ہے ۔ آج ۱۳ دن ہو گئے کوئی بھی محکمہ اس سلسلے میں سنجیدگی سے لینے کو تیار نظر نہیں آ رہا ہے ۔ جے این یو کے حساس طلبہ کا احتجاج جاری ہے ۔ طلبہ یونین بھی مظاہرے کر رہی ہے ۔ اس سلسلے میں مرکزی وزیر داخلہ راجناتھ سنگھ کے دفتر پر دھرنہ دیتے وقت گرفتاریاں بھی دی گئیں۔ دہلی کے گورنر نجیب جنگ کو بھی معاملے سے واقف کرایا گیا ۔ انہوں نے معاملے کو سنجیدگی سے دیکھنے کا وعدہ کرتے ہوئے کہا کہ ۲ ایس آئی ٹی افسر اس معاملے میں جانچ کریں گے ۔دیگر اعلیٰ افسروں سے ملاقات کا سلسلہ جاری ہے ۔ نجیب کے اہل خانہ بھی پچھلے دس دنوں سے آفس کے چکر لگا رہے ہیں ۔ ایک ہی سوال ہے ۔ میرا نجیب کہاں ہے ؟اس کا جواب نہ تو دہلی پولس کے پاس ہے اور نہ ہی جے این یو کے پاس ہے ۔ ایسا پہلی بار ہوا ہے کہ کیمپس میں عدم تحفظ کی فضا بن گئی ہے ۔ کیمپس کی خاموشی کئی سوال کھڑے کر رہی ہے ۔ اب تک اس سلسلے میں کی گئی کاروائی کا بھی خلاصہ کرنے کو تیا رنہیں ۔ وارڈن اور گارڈ کے علاوہ درجنوں طلبہ کی موجودگی میں بری طرح سے حملہ آوروں میں سے تقریبا دس کی سناخت ہو چکی ہے ۔ اس کے باوجود اب تک ان کے خلاف کوئی کاروائی نہیں ہوئی ہے ۔اسے سب کے سامنے جان سے مارنے کی دھمکی دی گئی ۔
سوال یہ ہے کہ نجیب کی گمشدگی کا ذمہ دار کون ہے؟ ۱۲ دنوں سے لا پتہ نجیب کے لئے جواب دہ کون ہے ؟جے این یو کیا اس بات کی یقین دہانی کرا سکتا ہے کہ ایسا حادثہ کسی دوسرے کے ساتھ نہیں ہوگا ؟دوسرے طلبہ کس حد تک محفوظ ہیں ۔ آخر جے این کی سیکیولر فضا میں تعصب کے پیچھے کس فکر کا ہاتھ ہے ۔ کیا اس کیمپس کی غیر جانبدارانہ حق پرستی کو فرقہ واریت کے رنگ میں رنگنے کی کوشش کو جارہی ہے ۔ اس بار طلبہ یونین کے انتخاب میں اے بی وی پی کا پوری طرح صفایا ہو گیا اس کے باوجود کیمپس پر چڑھتا بھگوا رنگ اور اے بی وی پی کی بڑھتی جبری دخل اندازی کے پیچھے کون ہے ؟ آخر کیمپس کے پروکٹر سے لیکر وی سی تک اس معاملے کو لیکر سنجیدہ کیوں نہیں ؟ نجیب کی ماں ، بہن ، بھائی اور جے این یو کے تمام طلبہ کا ایک ہی سوال ہے ۔ نجیب کہاں ہے ؟ اس کا جواب کون دے گا ؟
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Abdul Moid Azhari (Amethi) Email: abdulmoid07@gmail.com, Contact: 9582859385


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Thursday, October 27, 2016

بوکو حرام اور دائش اسلام دوست نہیں دُشمن ہیںबोको हराम और इस्लामिक स्टेट इस्लाम दोस्त नहीं दुश्मन हैं Boko Haram and ISIS are Any Islam



بوکو حرام اور دائش اسلام دوست نہیں دُشمن ہیں

عبد المعید ازہری

جو لوگ تھوڑا بہت بھی مذہبی شعور رکھتے ہیں وہ اچھی طرح جانتے ہیں کہ دینِ اسلام میں تعلیم کی کتنی اہمیت ہے ۔ اللہ تعالیٰ نے ہمارے پیارے رسولؐ کو اس دنیا میں جہالت کو ختم کرنے اور علم و حکمت کی تعلیم دینے کے لیے بھیجا۔جس کا ثبوت قرآنِ مجید میں موجود ہے۔ حدیثِ پیغمبر میں بار بار علم حاصل کرنے کی اہمیت بیان کی گئی ہے۔جس وقت چین کا سفر بہت دشوار تھا اُس وقت بھی ہمارے پیارے رسولؐ نے اپنی اُمت سے کہاتھا کہ اگر تمہیں علم حاصل کرنے کے لئے چین جانا پڑے تو بھی تم ضرور جانا۔آپ نے اس بات کو بھی واضح کر دیا تھاکہ علم کا حاصل کرنا ہر ایک مرد اور عورت پر فرض ہے۔لیکن بڑے افسوس کے ساتھ کہنا پڑ رہا ہے کہ جس علم کو حاصل کرنے کا حکم اللہ اور اُس کے رسولؐ نے اپنی اُمّت کو دیا ہے۔ آج بوکو حرام اور طالبان جیسی تنظیمیں بنام اسلام علم حاصل کرنے کی مخالفت کر رہی ہیں۔یہ تنظیمیں جہاں ایک طرف بنامِ اسلام بے گناہ انسانوں کا خون بہا کر ، مزاروں،مسجدوں ، امام بارگاہوں اور چرچ وغیرہ کوزمیں دوز کر رہی ہیں وہیں دوسری طرف اسکولوں اور یونیورسٹیز پر حملے کر کے لڑکیوں کوتعلیم سے روک رہی ہیں۔جس سے اُن کی اللہ اور اُس کے رسولؐ کی مخالفت اور علم دشمنی صاف ظاہر ہو رہی ہے۔ پاکستان میں لڑکیوں کی تعلیم پر کام کرنے والی ملالا یوسف ضئی پر طالبانیوں کے حملہ کے بعد نائجریا میں بوکوحرام اب زور شور سے اس کا م کو انجام دے رہا ہے۔بوکو حرام کے سربراہ ابو بکر شکاؤ نے ۲۰۰ سے زیادہ اسکولی لڑکیوں کو اغوا کرکے اس بات کا ثبوت دے دیا کہ وہ بھی ملا عمر کی طرح اللہ اور اُ س کے رسولؐ کا مخالف اور دین اسلام کا دشمن ہے ۔ یہی وجہ ہے کہ ایسے اسلام دشمنون کی مخالفت پوری دنیا میں شروع ہو گئی۔مصر میں مذہبی اُمور کے وزیر محمد مختار نے اس تنظیم کی مخالفت کرتے ہوئے کہا کہ بوکو حرام کے اقدامات کلّی طور پر دہشت گردی ہے اور اس کا اسلام سے کوئی لینا دینانہیں ہے۔ جامعہ الازہر کے شیخ احمدالطیب نے کہا کہ لڑکیوں کو اغوا کرنا مذہبی تعلیمات اور اسلامی اُصولوں کی کُھلی ہوئی مخالفت ہے۔ترکی میں نائجریا کے سفیر احمد عبدالحامد مدوری نے کہا کہ بوکو حرام کا دینِ اسلام سے کوئی لینا دینا نہیں۔ اُنہوں نے کہا کہ وہ لوگ خود کو مسلمان کیسے کہہ سکتے ہیں جو بے گناہ بچوں کو اغوا کرتے ہیں، اُن کا خون بہاتے ہیں اور مساجد اور چرچ کو منہدم کر رہے ہیں۔یہ ایسے لوگ ہیں جو مذہب کو پھانسی دے رہے ہیں۔بوکو حرام کے لیڈر ابو بکر شکاؤ نے اسکولی لڑکیوں کو اغوا کرنے کے بعداپنے ایک شیطانی بیان میں کہا ’’ میں نے تمہاری لڑکیوں کو اغوا کیا ہے۔ میں اُن سے شادی کروں گا اور اُنہیں بعد میں بازار میں فروخت بھی کردوں گا۔یہ وہ شخص ہے جو نائجریا میں اپنے آپ کو سب سے بڑا عالم دین ، توحید کا پرستار اور شرک و بدعت کو مٹانے والا کہتا ہے اور اُس کے ماننے والے اُسے’’ دار التوحید‘‘ کہتے ہیں۔اس تنظیم نے نائجریا کے تقریباََ ۳۰ لاکھ لوگوں کا جینا حرام کر دیا ہے۔ بوکو حرام کے افراد روزانہ کہیں نہ کہیں انسانی خون بہا رہے ہیں۔ عورتوں کی عصمت دری کر رہے ہیں اور لوگوں کو اغوا بھی کر رہے ہیں۔ اس تنظیم کی بنیاد ۲۰۰۲ ؁ء میں کسی اور نے نہیں بلکہ ایک نام نہادعالم محمد یوسف نے ڈالی تھی۔اس شخص نے مغربی تعلیم کی مخالفت کے بہانے ایک دینی مدرسہ قائم کیا تھا۔جس میں نائجریا کے غریب خاندان کے لوگوں نے اپنے بچّو ں کو دینی تعلیم حاصل کرنے کے لیے بھیج دیا تھااور پھر اُس مدرسہ کے ذریعہ انتہا پسند نوجوان تیار کر کے اُس تنظیم کے سربراہ محمد یوسف نے نام نہاد اسلامی ریاست قائم کرنے کا اعلان کر دیا۔ اُس کے بعد ہی محمد یوسف نے زور شور سے جہادیوں کی بھرتی شروع کردی اور جب جہاد کے نام پر اُس کے دہشت گرد تیار ہو گئے تو اُس نے نائجریا کی حکومت کے خلاف لڑائی شروع کر دی ۔ ۲۰۰۹ ؁ ء میں اس تنظیم نے سرکاری عمارتوں اور پولس اسٹیشنوں پر اتنے زبر دست حملے کیے کہ ہزاروں لوگ شہر چھوڑ کر بھاگنے لگے ۔حکومت حرکت میں آئی اور اس تنظیم کے سیکڑوں لوگ گرفتار ہوئے اور اس کا سرغنہ محمد یوسف مارا گیا۔اس آپریشن کے بعد نائجریا کی حکومت نے بوکوحرام کے خاتمہ کا اعلان کر دیا ۔لیکن کچھ دنوں کے بعد ابو بکر شکاؤ کی سربراہی میں پھر بہت سے دہشت گرد اکٹھا ہو گئے ۔ابو بکر شکاؤ نے محمد یوسف کی بیوی سے شادی کر لی اور پھر اپنے ساتھیوں کو لے کر اُس نے ۲۰۱۰ ؁ء میں سرکاری جیل پر حملہ کر دیا اور اپنے سیکڑوں ساتھیوں کو جیل سے چھڑا لیا۔ اُس کے بعد سے روزانہ ابو بکر شکاؤ بوکو حرام تنظیم کے بینر تلے قتلِ عام کرنے لگا ۔ان ۲۰۰ لڑکیوں کو اغوا کرنے سے پہلے جب کبھی اسکولوں پر بوکو حرام حملہ کرتا تھا تو وہ صرف لڑکوں کو نشانا بناتا تھا اور لڑکیوں کو چھوڑ دیتا تھا۔لیکن اب اس تنظیم نے اسکولی لڑکیوں کو اغوا کرنا شروع کر دیا ہے۔یہ تنظیم قتل و غارت گری کرنے کے ساتھ مساجد، گرجا گھروں ،پولس، فوج اورنیم فوجی دستوں سمیت قانون نافض کرنے والے دیگر افراد کو بھی اپنا نشانہ بنا رہی ہے ۔اس تنظیم نے بہت سے بینکوں کو بھی لوٹ لیا ہے۔اس تنظیم نے دائش کے سربراہ ابو بکر بغدادی کی بھی تائید کی تھی۔ ستمبر کے مہینہ میں میڈیا نے ابو بکر شکاؤ کے مارے جانے کی خبر بھی نشر کی تھی۔لیکن ابھی تک اس کی تصدیق نہیں ہو پائی ہے ۔ابو بکر شکاؤ نے بھی ابو بکر بغدادی کی طرح اپنے آپ کومسلمانوں کا خلیفہ بنا رکھا ہے۔ ابو بکر شکاؤ کی تنظیم بوکوحرام اور ابو بکر بغدادی کی تنظیم داعش (آئی ایس آئی ایس) دونوں ہی انتہا پسند وہابی فکر کی پیداوار ہیں اور وسیلہ شفاعت اور تعظیم کے قرآنی عقیدہ کی منکر ہیں اس طرح کی تمام تنظیمیں تعلیم نسواں کی مخالفت کرکے اور بے گناہوں کے خون سے ہولی کھیل رہی ہیں جس کی وجہ سے اسلام کا نام بدنام ہو رہا ہے۔اس لئے اس طرح کی تمام تنظیموں کی مخالفت کرنا اُن مسلمانوں کا دینی و ملی فریضہ ہے۔09582859385 abdulmoid07@gmail.com

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Monday, October 24, 2016

ایسے ہوتے ہیں محمد ؐ کے گھرانے والے ऐसे होते हैं मुहम्मद के घराने वाले

ایسے ہوتے ہیں محمد ؐ کے گھرانے والے 

عبدالمعید ازہری

داستان کربلا تاریخ کے صفحات میں وہ باب ہے جو ہر سال نیا بلکہ بہر آن جدا گانہ انکشاف پیدا کرتا ہے ۔ کربلا کے مسافر جب مدینہ کو الوداع کہہ رہے تھے تو کیا ان کے وہم و گمان یا فکر و خیال میں یہ بات تھی کہ منزل مقصود تک پہونچنے سے پہلے ہی انہیں ایک سنسان صحرا میں گھیر لیا جا ئے گا اور پھر ایک قلب چاک دل دہلانے والا سانحہ رونما ہو گا ۔ قافلہ کے سردار حضرت امام حسین علیہ السلام نے ماں کی مزارِ انوار کو بوسہ دیا ، آنسوؤں کا نظرانہ پیش کر کے رخصت کی اجازت ما نگی ۔ پھر نانا کے روضۂ اطہر پر گئے ،کئے ہو ئے وعدے کو وفا کر نے کے لئے ،قوت وہمت کی دعا لی ، نم آنکھوں سے الوداع کہا اور کربلا کے ان مسافروں نے مدینہ چھوڑ دیا ۔ چھ ماہ کا معصوم علی اصغر ، کمسن بی بی سکینہ ، ایک جوان بیٹا علی اکبر ، بھائی حسن کی نشانی قاسم ، بھائی عباس علمبردار سائے کی طرح ہمیشہ جان نثار کرنے والی بہن زینب ، ان کے دو شہزادے عون ومحمد،تخت وتاج اور عیش و عشرت کو اہل بیت پر قربان کرنے والی بیوی شہر بانو اور چند محافظ مسافر تھے ۔ جو کوفہ جا رہے تھے ۔ آج تک ایسی کوئی تاریخ نہیں ملی جو یہ بتا سکے کہ ایک فوج نے جب کسی دوسری فوج پر حملہ کیا ہو ، اس کا مقابلہ کیا ہو ، یا اس کی جانب کوچ کیا ہو ، اس کے پاس ایسے افراد پر مشتمل فوج رہی ہو ۔ ان مسافروں کو منزل پر پہونچنے سے پہلے گھیر لیا گیا ۔ظلم و زیادتی کی گئی ، چاہنے والوں کو زد و کوب کیا گیا ،ستایا گیا ، پانی بند کیا گیا ، بد سلوکی کی گئی ، اور دوسری طرف صرف دفاع اور صبر کیا گیا ۔ یہ کیسی جنگ تھی ؟
کم سے کم ایک فوج دوسرے فوج سے ایسے تو جنگ نہیں کرتی ۔ اگر یہ دو شہزادوں کی جنگ تھی تو ایک طرف تیر و تلوار تو دوسری طرف فقط تسبیح و اذکار ، ایک طرف ظلم تو دوسری طرف صبر ، ایک طرف مصلح لشکر تو دوسری طرف بیوی بچے اور اہل و عیال ۔ یہ کس طرح شہزادوں کی جنگ تھی ؔ ؟تاریخ شاہد ہے یہ جنگ کبھی تھی ہی نہیں ۔ کیونکہ جنگ کے بھی اصول ہوتے ہیں جو یہاں قطعی نہیں تھے ۔ زبردستی ا سے جنگ کانام دیا گیا ۔یہ ظلم و زیادتی پیسے اور طاقت کے نشے کا کھیل تھا ۔ قیادت کے ذریعے دینی امامت کو چھیننے کا یہ حملہ تھا ۔ ساری طاقت ، دولت اس لئے یکجا صرف ہو رہی تھی تاکہ اس جھوٹی قیادت کے ذریعے دین کی امامت حاصل کر لی جا ئے ۔ ورنہ ایک اکیلے امام حسین علیہ السلام کے لئے مدینہ سے مکہ ، مکہ سے کوفہ تک کا پیچھا نہیں کیا جا تا ۔ یہ بات یزید کو بھی معلوم تھی کہ پیسہ اور طاقت کے باوجود اسے وہ مقام و مرتبہ حاصل نہیں تھا جو ایک امام و خلیفہ کو حاصل ہو نا چاہئے تھا ۔ ایک امام حسین ہی تھے جن کی بیعت اسے وہ مقام دلا سکتی تھی جس کی وہ خواہش کرتا تھا ۔ کہیں نہ کہیں تاریخ کے دبے صفحات میں ہی صحیح یزید کو بھی اس بات کا اعتراف تھا کہ خلافت کے صحیح حقدار وہ خود نہیں بلکہ امام حسین علیہ السلام ہیں ۔
امام حسین علیہ السلام کا اعجاز تھا کہ پہلے ہی دن اعلان کر دیا کہ ہاتھ نہیں دوں گا ۔ پوری طاقت صرف ہو گئی ، خیمے جلائے گئے ، لاشیں خاک و خون میں لت ہو ئیں ، ظلم و جبر کا قیامت خیز بازار گرم ہو ا ، ادھر سب کچھ ہو تا رہا اور امام آخر تک کہتے رہے سر دے دوں گا پر ہا تھ نہ دوں گا ۔ یہ دشمن کیا جھوٹی طاقت و دولت کے ذریعہ اختیار کی بات کریں گے ۔ امام کا اختیار تو یہ تھا کہ جب یزیدی لشکر شام کی جا نب واپس لوٹا تو امام کا سر لے کر گیا ہاتھ پھر بھی نہ پا سکا ۔ جب سر جسم میں تھا جب بھی نہ جھکا اور جب جدا ہوا تو اور بلند ہو گیا ، دشمنوں کے نیزے کے اوپر اور سب سے آگے ، گویا کہہ رہا ہو ، میں نبی کا نواسہ ہوں میرے اختیار کے آگے تو تم بھی مجبور ہو ، میں کل بھی امام تھا اور آج بھی تمہاری امامت کر رہا ہوں ۔ سر دادنہ داد دست در دست یزید، حقا کہ بنائے لا الٰہ است حسین 
ٍ جب لوگوں نے امام کو پانی کے لئے مجبور ، بے بس و لا چار لکھا اور بیان کیا تو بڑی حیرت ہو ئی کہ جس کے دادا کی ایڑیوں کی رگڑ سے آبِ زمزم کا چشمہ جاری ہو گیا ، جن کی اولاد میں یہ قدرت پا ئی گئی کہ ایک کا سے میں پورے انا ساگر کو بھر دیا ، وہ مجبور کیسے ہو سکتے ہیں ۔تاریخ نے اس فکر کی پوری قوت کے ساتھ تائید کی کہ انہیں تو شہید ہو نا تھا ورنہ یہ وہ شہزادے ہیں ابھی کمسنی کا عالم ہے اور جنت سے جوڑے آ رہے ہیں ۔ دو شہزادوں کے درمیان تحریری مقابلے کا فیصلہ نہ خاتون جنت کر رہی ہیں نہ باب العلم کر رہے ہیں اور نہ ساری دنیا میں رب کے عدل و انصاف کو عام کرنے والے پیغمبر اعظم کر رہے ہیں ۔ بلکہ خود رب تعالیٰ جبرئیل امین کے ذریعے اپنی حکمت کا مظاہرہ کر رہا ہے ۔ ابھی اپنی کم عمری کے عالم میں ہیں اور جنتی نوجوانوں کی سرداری دے دی گئی ، جن کی بے چینی سے یہ کائنات بے چین ہو جا ئے ، جن کے رونے سے رب کو جلال آ جا ئے وہ بھلا کیسے مجبور ہو سکتے ہیں ۔ دونوں عالم کا بوجھ اٹھانے والے کندھے جن کی سواری بنے ، جن کے بارے میں نبیﷺ نے یہ فرمایا ہو کہ حسین مجھ سے ہے اور میں حسین سے ہوں ، وہ مجبور کیسے ہو سکتا ہے ۔ وہ تو صبر و استقامت کا ایک عظیم امتحان تھا ۔ امتحاں پیاس کا دینا تھا وگرنہ اصغر ایڑیا ں تم بھی رگڑتے تو نکلتا پانی۔
ولادت سے لے کر کربلا تک امام کا اعجاز سر چڑھ کر بولتا رہا ۔ یہ امام کا اعجاز ہی تھا کہ جب تک امام شہید نہ ہو ئے تھے سب جامِ شہادت نوش کر رہے تھے ، جوان بیٹا علی اکبر قربان ہوا ، بہن زینب نے اپنے لا لوں عون و محمد کا نظرانہ امام کو پیش کیا ، بھائی حسن کی نشانی اپنے بابا سے جا ملی ، بھائی عباس بابا جان کے پاس چلے گئے ۔ ایک قیامت سی برپا ہو ئی لیکن جب اللہ کے یہ خا ص پسندیدہ منتخب امام اپنے وعدے پر کھرا اترا، جام شہادت کو اپنے گلے سے اتارا ،اور نو ر کی یہ شعاع اپنے نور سے جا ملی پھر ا س کے بعد کوئی شہید نہ ہوا ، نہ معصوم سکینہ کے اوپر تلوار اٹھی ، نہ بہن زینب پر تیر چلے اور نہ ہی عابد بیمار کو زد و کوب کیا گیا ۔ہاں ظلم ہوا اور اتنا ہوا کہ آسمان کو رونا آ گیا ۔ امام زین العابدین مسلسل کربلا کے ظلم کے خلاف آواز بلند کرتے رہے یہ اعجاز امام حسین نہیں تھا تو اور کیا تھا کہ جس فوج یزید نے چھ ماہ کے معصوم علی اصغر کے خشک گلے میں تیر پیوست کر دیا ہو آج تنے تنہا امام زین العابدین کی کھلی خلافت اور جھوٹی قیادت سے بغاوت کا مقابلہ نہیں کر پا رہی ہے ۔ امام حسین کے بارے میں ولادت ہی کے وقت سے یہ معلوم پڑ گیا تھا کہ اس نور کو شہادت کے مقام پر فائز ہو نا ہے ۔ سبھی جا نتے تھے یہاں تک کہ ایک بار مولائے کائنات مولیٰ علی کرم اللہ وجہہ الکریم کا گزرسر زمین کربلا سے ہوا تو عجیب سی بوئے ظلم و جفا آئی ۔ رک کر پوچھا کہ یہ کونسی جگہ ہے، لوگوں نے بتایا یہ کربلا ہے ۔ آپ سواری سے اترے اور رونے لگے خوب روئے ، زاروقطار روئے ، رو رو کر پورے کربلا کا چکر لگا کراپنے ساتھیوں کو بتا نے لگے کہ یہ دیکھو یہاں میرے بچوں کو گھیرا جا ئے گا ، یہاں میرے گھر کی شہزادیوں کا خیمہ لگے گا ، یہاں میرے عباس کے بازو قلم ہوں گے ، عون و محمد ، قاسم واکبر یہاں شہید ہو ں گے ۔ اور یہاں میرے لخت جگر حسین کا سر سجدۂ شکر میں جھکے گا اور ظالموں کا خنجر میرے لال کے نازک گلے پر چلے گا ۔ سب کو پتہ تھا کہ حسین علیہ السلام کربلا جا ئیں گے اور ان کو وہاں شہید کیا جا ئے گا ۔ نانا ، بابا ، ماں ، بھائی سب یہ بات جانتے تھے کہ امام کے ساتھ کیا ہوگا ، پھر بھی کسی نے روکا نہیں ، سب نے اس یقین پر اپنی رضا مندی کا اظہار کیا کہ یہ تو رب کی مرضی ہے ، اس کا حکم اور حسن انتخاب ہے ۔
بعد میں بھی گھر والوں نے منع نہیں کیا ، اصحاب کرام نے منع کیا کہ کوفہ والے اعتبار کے قابل نہیں ، لیکن جب قافلہ روانہ ہوا تو معصوم سکینہ نے بھی ضد نہیں کی کہ باب وہاں مت چلو لو گ ستائیں گے ، پانی کا قطرہ بھی نہ دیں گے ،بہن زینب نے بھی اعتراض نہ کیا کہ بھیا کوفہ کا ارادہ ترک کر دو ، ہم اسلام کی مقدس شہزادیوں کے ساتھ نا روا سلوک کیا جا ئے گا ، ہماری چادریں چھین لی جا ئیں گی ، جوان علی اکبر خوفزدہ نہ ہو ئے ، بہن زینب نے اپنے شوہر سے اجازت لے لی اور سفر میں اپنے بچوں کو ساتھ لے لیا ، اس کی فکر کئے بغیر کہ کیا ہو گا ۔امام کا یہی کہنا تھا کہ کوفہ والوں نے ہزاروں خط لکھے ہیں ۔ ہر خط میں انہوں نے ہمیں دعوت دی اور دین کے لئے اس مشکل گھڑی میں ہماری امداد چا ہی ہے ۔ اصحاب اقربا کے زور دینے پر مسلم بن عقیل کو بھیجا ، انہوں نے بھی یہی کہا ہے ، کوفہ والوں نے اپنے خطوط میں یہاں تک کہہ دیا ہے کہ ہمارے عقیدوں کی حفاظت کے لئے اگر آپ نہ آئے تو کل قیامت کے دن تمہارا دامن پکڑیں گے اور نبی سے فریاد کریں گے کہ ہم نے دین اور عقیدے کی حفاظت کے تئیں مدد چاہی تھی اور یہ حفاظت کے لئے مدینہ سے کو فہ نہ آئے ۔
جب بات دین کی حفاظت کی ہو اور ہم نے وعدہ بھی کر لیا ہے تو ہم ضرور جا ئیں گے ۔ایک وعدہ جو کوفہ والوں سے کیا ، ایک وعدہ جو رب سے کیا ، ایک وعدہ جو نانا جان سے کیا کہ آج ہمارے لئے سجدہ طویل کیا گیا ہے ، دین کو قیامت تک کے لئے طویل کردوں گا ۔ ایک وعدہ نبھانے کے لئے اتنی قربانیاں دی ہیں حسین اعظم نے ۔ حسین جیسا شہید اعظم جہاں میں کوئی ہوا نہیں ہے چھری کے نیچے گلا ہے لیکن کسی سے کوئی گلا نہیں ۔ 
اس ایک وعدے کو نبھانے کے لئے پورا کنبہ تیار ہے ، دین کی حفاظت کے لئے بچے ، جوان ، مرد و عورت سبھی کا ایک سا جذبہ ہے ۔ پورے خاندان اور کنبے کا ایک ہی نعرہ ہے کہ جان جائے تو جائے پر دین محمد کو آنچ نہ آ ئے ۔ جس نے نا نا کا وعدہ وفا کر دیا ،گھر کا گھر سب سپرد خدا کر دیا جس نے حق کربلا میں ادا کر دیا ،اس حسین بن حیدر پر لاکھوں سلام
Abdul Moid Azhari abdulmoid07@gmail.com 09582859385














تین طلاق پر حکومت کا حلف نامہतीन तलाक़ पर सरकार का हलफ़नामा Govt. Stand on Triple Talaq


تین طلاق پر حکومت کا حلف نامہ 

عبد المعیدازہری


تین طلاق پر حکومت کا حلف نامہ ہندوستان کے آئین کے ساتھ چھیڑ چھاڑ کرنے کے سوا کچھ نہیں۔ آنے والے ۲۰۱۷ کے انتخابات میں مسلمانوں کو خوفزدہ و حراساں کر کے ۲۰۱۴ کی طرح مذہبی ووٹ کو اکٹھا کرنے کی سازش معلوم ہوتی ہے ۔اس سے پہلے شاہ بانو کیس میں بھی مرکزی حکومت نے مسلمانوں کی مذہبی آزادی ختم کرنے کو کوشش کی تھی ۔ اب اس بار پھر سے ہندوستانی آئین کو نظر انداز کیا جا رہاہے ۔ تین طلاق کی وجہ سے ہونے والی دشواریوں کا جائزہ لینے کے لئے مسلمانوں کے پاس مسلم پرسنل لا ء بورڈ ہے ۔ اس کے ذریعہ اگر کچھ لا پرواہی ہو رہی ہے ۔ مسائل کو صحیح طریقے سے لوگوں تک نہیں پہنچائے جا رہے ہیں تو اس کے مسلمانوں کے مذہبی اورفقہی پیشوا ہیں ۔ مسئلے کی سنگینی کے سمجھتے ہوئے اس پر کچھ لائحہ عمل تیار کریں گے ۔لیکناس طرح سے حکومت کی جبری دخل اندازی اور تین طلاق کے شرعی قانون کے خلاف حلف نامہ مسلمانوں کے لئے قطعی نا قابل برداشت ہے ۔ ہندوستانی قانون میں یقین رکھنے والے ہندوستانیوں کے لئے بھی یہ آئین کی خلاف ورزی ہے ۔ آج مسلمانوں کی قانونی آزادی کو ختم کرنے کا مسئلہ ہے کل کسی اور اقلیتی قوم کی مذہبی تشخص پر حملہ ہو سکتا ہے ۔ ایسا لگ رہا ہے موجودہ حکومت کو ملک کے آئین سے کچھ خاص دلچسپی نہیں ہے ۔تین طلاق کے مدعے کو سامنے رکھ کر وہ یکساں سول کوڈ کو نافظ کرنے کا بھی منصوبہ بنا رہی ہے ۔ آخر حکومت کو تانا شاہی ہی کرنی ہے تو پھر ادھر ادھر کے بہانے تلاش کرنے کی کیا ضرورت ہے ۔ سیدھے قانون بنا دے ۔ اعلان کر دے کہ اب سے کسی کو بھی مذہبی آزادی حاصل نہیں ہوگی ۔ یہ کسی اور طرح کے حقوق اور آزادی کاتصور کیا جا سکتا ہے ۔
۲۰۱۷ کے انتخابات کی تیاری دلتوں پر مظالم کے ذریعہ شروع ہو گئی ۔ گؤ رکشاکے نام پر دلتوں اور مسلمانوں کا بے دریغ قتل اور انسانیت سوز مظالم نے یہ واضح کر دیاہے کہ حکومت کے غنڈ موجودہ سرکار کو جمہوری سرکار ماننے کیلئے تیار نہیں۔ مرکزی حکومت کی بین الاقوامی پالیسیوں ملک کا داخلی نظام بالکل درہم برہم ہو گیا ہے ۔جو جسے چاہتا ہے گالی دے دیتا ہے ، جسے چاہتا ہے مار دیتا ۔ اس کے بعد جھوٹے وعدوں کا ایک طلسمی مرہم رکھ دیا جاتا ہے ۔ ملک کی جمہوریت کو جتنا خطرہ بلکہ نقصان آج ہو رہا ہے اتنا اس سے پہلے کبھی نہیں تھا۔ ملک کے آئین پر کبھی اس طرح بے دریغ حملہ نہیں کیا گیا ۔افسوس آج کی سیاسی جماعتوں کا ذہنی توازن نہ جانے کو ن لوگ سنوارتے ہیں۔ جنہیں انتخاب کی پالیسی میں فرقہ وارانہ فسادات، مذہبی جذبات کو ٹھیس پہنچاتا ، کسی ذات یا برادری والے کو ذلیل و رسوا کرنا ، کھلے عام لوٹ مار، غنڈہ گردی قتل و فساد کرنا جیسے طریقے سجھائے جار ہے ہیں۔ جسیے جیسے امریکہ اور اسرائیلسے دوستی بڑھتی جا رہی ہے ۔ ہمارے ملک کا رخ کچھ اچھی اور خوش آئند سمت نہیں ہے ۔خون اور درد کی سیاست کم سے ہندوستانی مٹی میں تو نہیں تھا ۔ اس مٹی کو خونی بنانے میں انسانیت کے قتل عام سے ملک کے تہذیب و وقار سے جو کھلواڑ کیا گیا ہے اس کی بھرپائی کوئی کرے گا؟۔یہ ایک لمحہ فکریہ ہے ۔
تین طلاق کے تعلق سے عدلیہ میں دیا گیا بیان اور فیصلہ بھی باعث تعجب اور حیرت انگیز ہے ۔جب معاملہ کسی طلاق یا اس کے نفاذ کا تھا ہی نہیں تو آخر جبرا کسی کے مسئلے میں تین طلاق کے تعلق سے فیصلہ داخل کرنے کے پیچھے کیا منشا ہو سکتی ہے ۔؟ کس کی ہو سکتی ہے؟ ۔ملک کے آئین کی طرف سے دی جانے والی مذہبی آزادی کی بنیاد پر قائم مسلم پرسنل لاء بورڈ سے نہ تو ملک کا کوئی نقصان ہے اور نہ ہی کسی بھی سیاسی جماعت کو کوئی خطرہ ہے ۔ توآخراسے نشانہ بنا کر کون کسے خوش کرنا چاہتاہے اور اس کیا حاصل کرنا چاہتا ہے؟ ۔ ہر بار کسی خاص موقعہ پر بالخصوص انتخابی موسم میں بڑے بڑے احتجاج کے حالات کیوں پیدا کر دئے جاتے ہیں؟۔اب اس مسئلے کو لیکر ایک بڑا ہنگامہ اور احتجاج ہوگا۔ اس کا سب اپنے اپنے اعتبار سے فائدہ اٹھانا چاہیں گے ۔موجودہ حکومت بھی اسے بھنانے کیلئے پھر پورکوشش کرے گی۔ اپوزیشن بھی اس موقعہ کا فائدہ اٹھائے گی ۔ مسلم اور دیگر لیڈر بھی اس میں اپنی روٹی سیکیں گے ۔ بس دن بھر میں دو وقت کی روٹی کمانے والی عوام ہے جس کا اپنا کوئی ایجنڈا نہیں۔ ایس کہا یہ تمہارے حق کی لڑائی ہے با ہر نکلو۔ وہ نکل گئے ۔ اسکی محنت سے ملنے والے فوائد کے سبھی حصہ دار بن جائیں گے ۔ بس اسی کو کچھ نہیں ملے گا ۔ اپنے آپ کو مسلمانوں کا لیڈر کہنے والے بھی اس میں پیچھے نہیں ہوں گے ۔وہ بھی اسی خانے میں آتے ہیں۔ آخر ایسے حالات کیوں بننے دیتے ہیں۔ صحیح طریقے سے مسئلے کو سمجھایا اور پہنچایا کیوں نہیں جاتا ۔ جب پانی سر سے اوپر اٹھ جاتا ہے تو نیند سے بے دار ہوتے ہیں۔اس تین طلاق سے پہلے ابھی درگاہ حاجی علی پر عورتوں کی حاضری کا مسئلہ بھی تھا ۔ سجا ہوا اسٹیج مل جائے تو کرسیاں توڑ دیں گے ۔ گھڑیالی آنسون بھی نکل آئیں گے ۔ فتوے تو ایسے نکلیں گے جیسے شرعی حقوق لے کر بیٹھے ہوں۔ جوں کہہ دیں وہی شریعت ہے ۔ لیکن عوامی مسائل کو سمجھنے اسے حل کرنے کیلئے کسی بھی طرح کی مشقت اٹھانے میں دل کا دورہ پڑ جاتا ہے ۔
تین طلاق ہو یا ایک طلاق ہو ۔ طلاق کے بارے میں پہلی بات تو یہ سمجھنی چاہئے کہ یہ کوئی ڈیوٹی ، فرض یا ذمہ داری نہیں ہے جسے ہر حال میں ادا ہی کرنی ہے ۔ شریعت انسانی زندگی کو آسان کرنے کیلئے ہوتی ہے اسے اور مشکل کرنا اس مقصد قطعی نہیں ۔ اسے نافذ کرنے والے یا اس کی نشر و اشاعت والے اسے مشکل بنا دیں تو اور بات ہے ۔ جیسے اسلام کے قانوں اور مسلمانوں کے کردار میں زمین و آسمان کا فرق آگیا ہے ۔یہ وقت ہے کہ اپنے آپ کو ذمہ دار کہنے والے او ر خود مسلم پرسنل لاء اپنے اپنے کردار کے بارے میں سوچے ۔ غور فکر کرے ۔ اپنی اہلیت، صلاحیت اور لیاقت کے بارے میں جانچ کرے ۔تین طلاق سے تین واقع ہوگی یا ایک ہوگی یہ خالص مذہبی مسئلہ ہے ۔ اس میں حکومت یا کسی بھی سیاست کی دخل اندازی کی قطعی ضرورت نہیں۔یہ قانون اسلئے نہیں بنائے گئے کہ اس قانون کی وجہ سے اس پر عمل واجب ہے ۔ قانون انسان کی ذاتی اور سماجی زندگی میں توازن قائم کرنے کے لئے ہوتے ہیں۔ افراط و تفریط سے محفوظ کرنے کیلئے نظام بنائے جاتے ہیں۔ سب کو اس کا حق ملے ۔ کسی کا حق نہ مارا جائے ۔ کسی بھی طرح کی ظلم و زیادتی یہ ہو ۔
طلاق کی طرح شریعت کا ایک مسئلہ نکا ح کا بھی ہے ۔ شریعت کہتی ہے کہ سماج میں زنا جیسے گھناؤنے جرم سے بچنا چاہتے ہو تو نکاح کو عام اور آسان کر دو۔قانون تو یہ ہے لیکن اس پر عمل کتنے لوگ کرتے ہیں۔ آج ہر سماج میں نکاح کو لیکر جو ہوڑ مچی ہوئی ہے اس سے اندازہ لگا جا سکتا ہے کہ لو گ قانون کا کتنا پاس و لحاظ رکھتے ہیں۔ لیکن اس کی وجہ سے یہ نہیں کہا جا سکتا کہ قانون ہی کو بدل دو۔ تین طلاق سے تین ہی واقع ہونا یا پھر حلالہ جیسی سزا کو ٹھیک سے سمجھ اس کے صحیح نفاذ کی ضرورت ہے ۔ 
دو انسانوں کے درمیان نکاح سے ہونے والے رشتوں میں کبھی کبھار درار پڑجاتی ہے ۔ان رشتوں کو بحال کرنے کیلئے گھر والوں کی کوشش ہو ۔ بات نہ بننے پر دونوں گھر والے اور کچھ خاص رشتہ دار اس مسئلے کو سلجھانے کی کوشش کریں۔یہاں پر بھی بات نہ بننے پر کچھ با اثر لوگوں کو شامل کیا جائے ۔ اسکے بعد ایک طلاق دی جائے تاکہ تھوڑاسا الگ رہ کر رشتوں کی اہمیت وضروت پر غور فکر کیا جائے ۔ مدت گزر جانے کے بعد اگر پھربھی بات نہیں بنتی تو دوسری طلاق اس کے بعد تیسری طلاق دی جاتی ہے ۔ یہ تو عام حالات میں ہوتاہے ۔ کبھی کبھار ایسا بھی ہوتا ہے کہ رشتو تان زیادہ بگڑ جاتے ہیں کہ اب ایک پل بھی رہنا مشکل ہو جاتاہے ۔ یہ دونوں کے لئے مشکل ہوتاہے ۔ اب ایسے میں اگر تین مہینہ کا وقت گزارنا پڑے تویہ ان پر اور مشکل ڈالناہو گا ۔ ایک دوسرے کے ساتھ رہناہی نہیں چاہتے اسی لئے تو یہ نوبت آئی ہے اب اگر قانونا انہیں ایک دوسرے کے ساتھ رکھا جائے تو ان کی ذہنی حالت کیا ہوگی اس کا اندازہ لگایا جا سکتا ہے ۔ ایسے خاص ،اہم اور بالکل نادر موقعہ پر تین طلاق کو ایک ہی بیٹھک میں دے کر دونوں کوفارغ کر نے کا قانون ہے ۔اسی دن سے دونوں اپنی اپنی زندگی جئیں۔ دونوں کے راستے الگ ہو گئے ۔ حلالہ کسی پر فرض واجب یا مستحب نہیں ۔ یہ صرف اسلئے ہے کہ لوگوں میں طلاق کا رجحان نہ بڑھے ۔ حلالہ کے بارے میں سوچ کرہی طلاق دینے کا ارادہ ترک کردیں۔کسی غصہ ، مزاق یا پھر کسی غیر ضروری حالت کی وجہ سے رشتوں کو ختم کرنے کا کھیل نہ شروع ہو جائے ۔ اسلئے اس طرح کے قانون بنائے گئے ہیں۔ اب اگر کوئی اس کا غلط استعمال کرے تو اسے سدھارنے کی بجائے قانون ہی کو ختم کرنے کی بات کرنا عقل مندی تو نہیں ہے ۔
طلاق کو جائز کرتے ہوئے شریعت نے اسے سخت ناپسند کیا ہے ۔تین طلاق کو ایک ہی بیٹھک میں دینے کو بھی منع کیا گیا ہے ۔ بلکہ جرمانہ اور تادیبی سزائیں بھی دی گئی ہیں۔حکومت اگر واقعی میں نیک نیتی سے ملک کے ہر باشندے کے ساتھ اچھا سلوک چاہتی ہے تو قانون کے نفاذ میں دلچسپی دکھائے نہ کہ قانون کے ساتھ غیر قانونی برتاؤ کرنے کی جسارت کرے ۔نکاح طلاق اور دیگر قانون انسانی سماجی کی بہتری کیلئے ہی ہیں۔ اس میں غور فکر کرنے کی ضرورت ہے ۔ اس کے بہتر نفاذ کا طریقہ تلاش کرنا چاہئے نہ کہ اس پر سیاست کر کے انسانی سماجی کے لئے تباہی و بربادی کے راتے کھولنے چاہئیں ۔
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Abdul Moid Azhari (Amethi) Email: abdulmoid07@gmail.com, Contacat: 9582859385

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