Saturday, January 25, 2020

बीजेपी ने फ़िर किया मोदी का अपमान? BJP again insults Modi?

बीजेपी ने फ़िर किया मोदी का अपमान?

[अब्दुल मोईद अज़हरी]

केंद्र में मोदी 2.0 की सरकार आते ही मोदी लहर में कुछ बिखरता हुआ बदलाव देखने को मिल रहा है। भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी ने जिस दिन “सब का साथ”, “सब का विकास” के साथ “सब का विश्वास” जोड़ने की कोशिश की वहीँ से मोदी के पुराने लठैतों और बकैतों में एक अजीब सा बदलाव देखने को मिला। अभी “सब का विश्वास” की पालिसी लागू करने की कोई मज़बूत रणनीति बन भी नहीं पाई थी कि शाम को ही एक बेगुनाह भारतीय की मोब लिंचिंग कर दी जाती है। वहीँ से मोदी नो मोर की एक समकक्ष विचारधारा का उदय होता है जो मोदी पार्ट 1 में मोदी की सभी उपलब्धियों, प्रशंसनाओं और सम्मान को समाप्त करने में लग गयीं।
सरे नाज़ुक मुद्दे मोदी 2.0 में ही उठाये गए। तीन तलाक़ बिल, धारा 370 और फ़िर वर्षों पुराना सब से बड़ा भारतीय राजनीति का मुद्दा बाबरी मस्जिद-राम मंदिर भी इसी काल में उठाया गया और फैसला भी हो गया। एक एक कर के सारे मुद्दे हिट हो रहे थे और मोदी का वर्चस्व भारतीय हिंदुत्व में बढ़ता जा रहा था। अचानक से बीजेपी की राजनीति में एक नया मोड़ आता है। अमित शाह के गृह मंत्री बन जाने के बाद भी उन्हें बीजेपी के अध्यक्ष पद बने रहने दिया जाता है। और फिर सदन के माध्यम से एक ऐसा बिल पारित किया जाता है जिस किसी भी वर्तमान प्रधान मंत्री की रात की नींदें उड़ सकती हैं।
आखिर कार तंग आ कर रामलीला मैदान में उन्हें कहना पड़ा कि यह सब धोका है। मोदी जी के सामने तो कभी पार्टी में या सरकारी बैठक में इस पर चर्चा हुई ही नहीं तो फिर भारत के इस भावी प्रधान मंत्री के विरुद्ध इतना बड़ा षड्यंत्र क्यूँ, कैसे और किस के कहने पर किया जा रहा है। हालाँकि इस से पहले कुछ राजनैतिक विशेषज्ञों ने इस पर चर्चा भी की थी कि राजनाथ सिंह से गृह मंत्रालय लेना उचित नहीं है और उस से भी अनुचित काम अमित शाह को गृह मंत्रालय देना है। लेकिन हांडी में कैसी खिचड़ी पाक रही थी किसी को पता नहीं था।
दिल्ली चुनाव में बीजेपी द्वारा निर्वाचन के उम्मीदवारों में कुछ ऐसे नाम भी हैं जो कहीं ना कहीं मोदी विरोधी विचारधारा का हिस्सा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर आम आदमी पार्टी से निष्काषित पूर्व मंत्री कपिल मिश्र को बीजेपी ने टिकट देकर मोदी का सब से बड़ा अपमान किया है क्यूंकि कि कपिल मिश्रा ने मोदी पर एक बार नहीं तीन बार गंभीर टिप्पड़ी कर चुके हैं। नवाज़ शरीफ़ के साथ बिरयानी कि दावत, पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI का एजेंट और सब से गंभीर आरोप एक महिला को लेकर था। यह वह बयान हैं जिन पर काफ़ी चर्चा हुई। यह विवाद कई दिनों तक मीडिया की सुर्ख़ियों में रहा।
आज बीजेपी ने उसी कपिल मिश्रा को टिकट दे कर कहीं ना कहीं मोदी के नेतृत्व, उन के वर्चस्व और उन के व्यक्तित्व को चुनौती दी है। क्या इसे मोदी अपमान की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए।

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Friday, January 24, 2020

संविधान की लड़ाई को समुदाय का मुद्दा बनने से रोका जाये! Its fight for constitution not for Community


संविधान की लड़ाई को समुदाय का मुद्दा बनने से रोका जाये!

[अब्दुल मोईद अज़हरी]
21वीं सदी का नया भारत भारतीय नागरिकों के लिए एक चुनौती बन कर आया। इस नए भारत की शुरुआत 19वीं सदी के आख़िरी दो दशकों से ही शुरू हो गयी थी। 1984, 1992 और फिर 1993 के हादसे भारत की संस्क्रति, लोकतंत्र और संविधान पर काले धब्बे हैं। यह सिलसिला रुका नहीं। 2002, 2011 और उस के बाद आज तक हर वर्ष कुछ ना कुछ ऐसा देखने को मिल रहा है जिस का सपना किसी भी लोकतंत्र देश ने नहीं देखा था।
इन दशकों में संविधान के लिए ही सब से बड़ी चुनौती थी और आज भी मूल मुद्दा भारत का लोकतंत्र और लोकतान्त्रिक संविधान ही है। लेकिन इन बीते दशकों में सत्ता और विपक्ष, अल्प संख्यक और बहु संख्यक अथवा हिन्दू मुस्लिम के साथ उच्च जाति और पिछड़ी जाति की लड़ाई ने किसी का ध्यान इस और जाने ही नहीं दिया।
इन दशकों की राजनीति ने अपने राजनैतिक मुद्दों, नीतियों, विचारों और लक्ष्यों पर भ्रमित वक्तव्य का ऐसा मुखौटा डाला कि लोग मुद्दों पर बात कर ही नहीं पाए। इन पूरे दशकों में कभी भी किसी मुद्दे पर निष्कर्ष रुपी चर्चा नहीं हुई। एक मुद्दे को कोई निष्कर्ष मिलता उस से पहले कोई नया मुद्दा सामने आ जाता। उस पर गहन विचार शुरू हो जाता। किसी नतीजे पर पहुँचने से पहले कोई और मुद्दा खड़ा हो जाता। इस बीच संविधान पर घात पर घात होती रही। लोग माइनॉरिटी और मेजोरिटी, इंडिया पाकिस्तान और राष्ट्रवाद एवं राष्ट्र द्रोह में उलझे रहे।
2014 में पूर्ण बहुमत से आयी आरएसएस समर्थित बीजेपी की सरकार ने बहुँत ज़्यादा कुछ नया नहीं किया। अंतर बस इतना था कि पहले चर्चा नहीं होती थी अब चर्चा होने लगी। पिछले दो दशकों की कांग्रेस सरकार में पुरानी कांग्रेस और नई कांग्रेस की एक बड़ी लड़ाई चली। राहुल गाँधी ने अपनी पार्टी की ग़लत नीतियों की सुधर करनी चाही तो अन्दर और बाहर दोनों तरफ से विरोध के ऐसे घातक वार हुए कि राहुल आत्म विश्वास खोने की कगार पर पहुँच गए। इसी लिए प्रियंका को भी सक्रिय राजनीति का हिस्सा नहीं बनने दिया गया।
बीजेपी के पूरे 6 साल के केंद्र के शासन काल में जब कभी भी रोज़गार, भुखमरी, शिक्षा, स्वास्थ, व्यसाय, किसान, सड़क, पानी बिजली इत्यादि समस्याओं पर गहन विचार विमर्श नहीं हो पाया। दो बड़े काम किये सौचालय और सिलेंडर लोगों तक पहुंचाए और कॉलोनियां भी बनवाई और इस में उन्हों ने कोई भेदभाव नहीं किया। लेकिन मूल समस्याओं से हमेशा भागते रहे।
पाकिस्तान, सीमा, सेना और राष्टवाद में जनता को इस क़दर फंसा दिया कि साल 2018-19 में बेरोज़गारी में हुयी आत्महत्याएं किसानों से जीत गयीं पता ही नहीं चला। यह भी नहीं पता चला कि 80 लाख बच्चे भुखमरी का शिकार हो गए जिन में 60-70% कुपोषण का शिकार हुए।
बीजेपी ने असल मुद्दे से भटकने का सुनियोजित प्लान भी बना लिया है। दो तरह के ग्रुप तैयार हुए। एक लठैतों का दूसरा बकैतों का। इन दोनों ने अपना काम बखूबी किया। देश में हिन्दू मुस्लिम और दलित ब्राह्मण चलता रहे इस का पूरा इंतज़ाम किया।
सरकार की नीतियों का जिस ने भी विरोध करना चाहा उसे राष्ट्रद्रोह या राष्ट्र विरोध का माला पहना दिया गया। या फिर सवाल करने पर विपक्ष के कंधे पर बंदूक रख दी गयी कि यह कोई नया काम नहीं है बल्कि पिछली सरकार ही की नीति है। जब उन का विरोध नहीं हुआ तो अब विरोध करना देश के साथ धोका है। मोदी जी और बीजेपी कब देश बन गए पता ही नहीं चला। बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ पर सवाल कब राष्ट्र विरोधी हो गया मालूम ही नहीं हुआ।
इस सभी चीजों के बीच कब कब संविधान को ख़तरे में डाला गया किसी ने सोचा ही नहीं क्यूंकि सभी ने व्यक्ति, जातिगत, धार्मिक और सामाजिक परिवेश में सवाल किये। संविधान और लोकतंत्र कि दृष्टि से देखा ही नहीं।
आज भी बहुतायत यही हो रहा है। असल मुद्दे से भटक रहे हैं लोग। CAA, NRC, और NPR को लेकर कुछ जागरूकता हो आयी है। इसे किसी समुदाय विशेष का मसला ना मानते हुए संविधान की मूल भावना का मुद्दा बनाया है लेकिन इस के लिए तैयारी कितनी है इस पर नज़र होनी ज़रूरी है।
सुप्रीम कोर्ट में जिन लोगों द्वारा याचिकाएं दाखिल की गयी हैं उन में से कितने लोग किसी राजनैतिक पार्टी की विचारधारा से अलग हैं, कितने लोग सामूहिक समुदाय और संवैधानिक एवं लोकतान्त्रिक मूलभावना के साथ जुड़े हुए, याचिकाओं में किस चीज़ को केंद्र बिंदु बनाया गया है, जैसी चीजों पर भी गौर करने कि ज़रूरत है।
पिछला इतिहास तो यही रहा है हमारा वकील और हमारी वकालत........


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Thursday, January 23, 2020

उर्दू अदब के जादूगर कहाँ हैं? Where are the Urdu Legends?

उर्दू अदब के जादूगर कहाँ हैं?

[अब्दुल मोईद अज़हरी]
आज भारत एक सामाजिक आन्दोलन के एतिहासिक दौर से गुज़र रहा है। भारत के नक्शे पर हर राज्य में एक इंकलाबी शाहीन बाग स्थापित हो रहा है। शाहीन बाग अब दिल्ली के ओखला की एक कॉलोनी नहीं रही। हर वह जगह जहाँ अत्याचार, ज़ुल्म, अराजकता, तानाशाही, ज़िद और हठधर्मी के विरुद्ध, शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन हो, जिस में वक्त के बादशाह की आँख में आँख डाल कर मानवता, संविधान और लोकतंत्र की लड़ाई लड़ी जाये उसे शाहीन बाग कहा जाता है।
15 जनवरी को दिल्ली पुलिस ने अपनी बर्बरता का क्रूर रूप दिखाते हुए जामिया के निहत्थे छात्रों पर जिस तरह हमला किया था। कैंपस की लाइब्रेरी में और बाथरूम में घुस कर देश की बेटियों पर हमला किया था। उस ने देश की माताओं के दिलों को ज़ख्म से भर दिया। जामिया के एक छात्र की आँख चली गई। किसी का हाथ तो किसी का पैर टूट गया। इन ज़ख्मों ने देश की आधी आबादी को 2 डिग्री की ठण्ड और सर्दी की बरसात में भी सड़कों पर बिठा दिया।
80 साल से ज़्यादा उम्र की औरतों ने आज़ादी की लड़ाई के मंज़र वापस लौटते हुए देखे। बीस दिन की बच्ची जिसे जनवरी की कपकपाती हुई ठण्ड में कई कम्बलों के अन्दर होना चाहिए था वह शाहीन बाग की सड़कों पर भविष्य के भारत का निर्माण अपने कोरे दिमाग की मेमोरी में सेव कर रही है।
इतिहास साक्षी है, दुनिया के जितने भी इन्कलाब हों उस में कलाकारों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है। भिन्न भिन्न प्रकार के कलाकारों ने अपने अपने अंदाज़ से अपने अपने दौर के इन्कलाब में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 
कला के साथ साहित्य का भी बड़ा योगदान रहा है। हर ज़बान, अदब और साहित्य ने इंकलाबी नारे लगाए हैं, कवितायेँ लिखी हैं और लेख से जोश भरा है। भारत की आज़ादी में पहले शहीद उर्दू के पत्रकार/ सहाफी मोलवी मोहम्मद बाक़र थे जिन की तहरीर भारतीय नौजवानों में इन्कलाब की आग को शोले बना रही थी। उन्हें सज़ा के तौर पर तोप के मुंह में बिठा कर उड़ा दिया गया था।
शाहीन बाग़ में कला के उच्च वर्ग के उदाहरण देखने को मिलेंगे। ज़्यादा संख्या युवाओं की है। शाहीन बाग की सड़कों को बागी सड़कों में बदल दिया। ज़बरदस्त आर्ट देखने को मिला। पोस्टर देख कर दंग रह जायेंगे। प्रदर्शनकारियों ने शाहीन बाग का अपना इंडिया गेट बना दिया। उस गेट पर उन सभी लोगों के नाम लिख दिए जिन्हें शाही फरमान वाली पुलिस ने अपनी अवैध बर्बरता का निशाना बनाते हुए उन की जान ले ली।
यही नहीं प्रदर्शन की एकता और अखंडता को दर्शाने के लिए वहां लगभग 40 फीट ऊँचा भारत का नक्शा खड़ा कर दिया। यही वजह है कि शाहीन बाग अब सिर्फ़ दिल्ली की एक जगह नहीं रहा वह इतिहास के पन्नों में गोडसे के ख़िलाफ़ गाँधी की मिसाल बन गया है।
उर्दू शायरी के इतिहास में बग़ावत की बड़ी अहमियत है। आज भी फैज़ के नाम से लोग जल भुन जाते हैं। समाजी ताने बाने के लिए आज भी इक़बाल को कोट किया जाता है।
सवाल यह है कि आज इस नाज़ुक दौर में उर्दू का वह तेवर देखने को क्यूँ नहीं मिलता। शायर, सहाफी, तजज़िया कार, मज़मून निगार, बुद्धिजीवी और क़लम के जादूगरों की पूरी जमात का क़लम टूटा हुआ नज़र आ रहा है। स्याही ठण्ड हो कर जम गयी है। फ़िक्र और तदबीर अपाहिज और समाजी ताने बाने के सभी बुनियादी ख़याल सर्द ख़्वाब की नज़र हो गए हैं।
जहाँ एक तरफ़ तथाकथित धार्मिक क़यादत, पेशेवर राजनैतिक नेतृत्व और मौक़ा परस्त बुद्धिजीवी और स्कॉलर्स ने भारत की बेटियों को सड़क पर तनहा छोड़ दिया है वहीँ इन शायरों, कवियों और लेखकों ने भी अपनी कलमें तोड़ डाली हैं स्याही में पानी डाल दिया है।
तारीख़ इस पहलू को भी लिखेगी।

Wednesday, January 22, 2020

मिस्ड कॉल वाली सरकार और समर्थन में धरना प्रदर्शन Missed Call Based Govt and Protest in Support


मिस्ड कॉल वाली सरकार और समर्थन में धरना प्रदर्शन

[अब्दुल मोईद अज़हरी]
आज़ाद भारत के इतिहास में इतना हास्य पद क़दम शायद ही किसी पन्ने में दर्ज किया गया हो जितना कि वर्तमान में बहुमत से आयी सरकार का है। सरकार ने राज्य सभा और लोक सभा दोनों सदनों में बहुमत के साथ नागरिकता संशोधन बिल पारित किया जो अभी क़ानून बन चुका है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अध्यादेश/नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है। दोनों सदनों में बहुमत से पारित होने वाला क़ानून जनता की अदालत में सवालों के घेरे में आ गया। सवाल भी उचित हैं। सरकार उस का सीधे जवाब देने से कतरा रही है। जब भी सवाल होता है सत्ता के धुरंधर उसे विपक्ष के कंधे पर रख देते हैं।

एक इंटरव्यू में जब देश के गृह मंत्री अमित शाह से यह सवाल पूछा गया कि नागरिकता संशोधन क़ानून से संवैधानिक मूल्य उस वक़्त टकराते हैं जब NRC में बाहर किये गए लोगों में से मुस्लिम के अलावा सभी को इस क़ानून के ज़रिये नागरिकता दे दी जाएगी लेकिन मुस्लिम को बाहर कर दिया जायेगा। जवाब में अमित शाह कहते हैं कि यह नागरिकता संशोधन कानून किसी भी भारतीय की नागरिकता छीनने के लिए नहीं है बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यक समुदाय यानि हिन्दू, बौद्ध, जैन, क्रिस्चियन इत्यादि को नागरिकता देने का क़ानून है। उस के बाद जब वो NRC पर आते हैं तो सीधे कांग्रेस के पास चले जाते हैं कि NRC कोई नया मुद्दा नहीं है बल्कि यह तो कांग्रेस के समय पर लागू होने कि बात की गई थी।
दूसरी सच्चाई यह है धर्म प्रताड़ना एक प्रोपेगंडा के अलावा कुछ नहीं क्यूंकि इस बिल या क़ानून में धर्म प्रताड़ना का कोई ज़िक्र तक नहीं है।
सवाल अभी भी वही हैं:
जब नागरिकता देने का प्रावधान पहले से ही था तो नए क़ानून की आवश्यकता क्यूँ पड़ी?
नागरिकता देने में इन्हीं तीन देशों का चुनाव क्यूँ किया गया?
इसे धर्म से क्यूँ जोड़ा गया?
अगर नागरिकता संशोधन कानून सिर्फ़ बाहर के लोगों को नागरिकता देने का क़ानून है तो क्या इसे NRC से पहले लागू किया जायेगा और NRC के बाद इस का उपयोग नहीं होगा? जब कि गृह मंत्री जी कह रहे हैं कि पहले NRC होगी फिर यह क़ानून लागू होगा?
अभी तक धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों का कोई डाटा क्यूँ नहीं किया गया?
जब बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने लिस्ट मांगी कि जो भी बंगलादेशी भारत में हैं उन की सूची दे दो ताकि वो बांग्लादेशियों को अपने देश वापस बुला लें तो अब तक वह सूची बांग्लादेश को क्यूँ नहीं सौंपी गयी?
अब तक कितने घुसपैठियों को देश से निकाला गया है इस की कोई सूचना जारी क्यूँ नहीं की जाती?
असम में हुए NRC के बाद जो 19 लाख लोग बाहर हुए हैं उन का मामला अभी तक क्यूँ नहीं हल हो पाया?
एक राज्य में NRC के लिए 1600 करोड़ खर्च हुए थे। पूरे देश में NRC के लिए लगभग 55 हज़ार करोड़ खर्च होंगे। देश की मौजूदा आर्थिक मंदी को देखते हुए क्या देश इतने बड़े बजट के लिए तैयार है?
अगर वाकई में “सब चंगा सी” तो ख़ुद के ही पारित हुए क़ानून के समर्थन में देश में धरना प्रदर्शन क्यूँ कराये जा रहे हैं?
मिस्ड कॉल से समर्थन की आवश्यकता क्यूँ पड़ गई और मिस्ड कॉल नम्बर को प्रमोट करने के लिए अश्लील झूट का सहारा क्यूँ लिया गया?
देश में चल रही बहुमत की सरकार को अगर मिस्ड कॉल और धरना प्रदर्शन का सहारा लेना पड़े तो क्या यह नहीं समझ लेना चाहिए कि जनता क़ानून के विरोध में खड़ी है?
जब देश भर के लोगों को समझाने का प्लान सरकार के पास है विरोध में चल रहे धरना प्रदर्शनों पर सरकार के प्रतिनिधि क्यूँ नहीं जाते?
क्या अब सरकार से यह सवाल नहीं होना चाहिए कि उस के लिए देश बड़ा है या पार्टी?

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Tuesday, January 21, 2020

नए भारत का इन्कलाब हूँ मैं I am the new revolution in India


नए भारत का इन्कलाब हूँ मैं

[अब्दुल मोईद अज़हरी]
“गौर से देखो मुझे, शाहीन बाग हूँ मैं” का नारा देश के कोने कोने से गूंज रहा है। संविधान और उस के मूल्यों में विश्वास रखने वाली भारत की हर बेटी आज शाहीन बाग पर गर्व कर रही है। बादल कितने ही घने क्यूँ ना हों, एक दिन उन्हें छटना ही पड़ता है। सत्ता के जिद्दी बादल संविधान की स्याही को कुछ बरसाती मेंढकों की टर्र टर्र से मिटाने की कोशिश करना चाहते हैं लेकिन संविधान की यह सियाही किसी किताब का हिस्सा नहीं है बल्कि भारत के सीने नक्श किया हुआ ऐसा लेख है जिसे मिटाना इतना आसान नहीं है। 
अपनी नाकामी और ना क़ाबिलियत छुपाने के लिए चाहे जितने काले बादल भारत के संवैधानिक मूल्यों, लोकतान्त्रिक मान्यताओं एवं धर्म निरपेक्षता के अटूट और अखंड भारत के सपनों को घेरने की कोशिश कर लें, इन्कलाब का सूरज दिल्ली का शाहीन बाग बन कर अराजकता के पहाड़ों को पिघलायेगा और भ्रष्ट नेतृत्व से आज़ादी की प्यास बुझाएगा।
दिल्ली का शाहीन बाग भारत के इन्क़लाब के इतिहास में अमर होता जा रहा है। जब गाँधी की अहिंसा की विचारधारा की रौशनी फैल रही हो, तो अँधेरे के सौदागरों को भला यह बात कैसे अच्छी लग सकती है। गोडसे के पुजारी लगातार गाँधी विरोध में दिन रात जल रहे हैं लेकिन उन्हें हर रोज़ कुछ नए गाँधी पैदा होते नज़र आ रहे हैं। उन्हें मालूम नहीं कि गाँधी के शरीर को गोली मारी जा सकती है उन के विचारों को नहीं।
दिल्ली के शाहीन बाग के इंकलाबी जज्बे को जब पैसे के बेहूदा इलज़ाम से रोंदा नहीं जा सका तो उसे एक धर्म मात्र से जोड़ कर हिन्दू मुस्लिम का संविधान विरोधी कार्ड खेला गया। अभी इस कार्ड को गोदी मीडिया और बकैत नेताओं ने “IT Sale” की मदद से ख़ाली खोपड़ी में भरने का प्रयास भर किया था कि शाहीन बाग की औरतों और प्रदर्शनकारियों को कट्टरपंथी नज़र से देखने वालो के मुंह में ताला पड़ गया। हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई चारों लोगों ने एक साथ बैठ कर अपनी धार्मिक रस्मों का द्रश्य देश दुनिया को दिखा दिया। 
जिस से यह पता चल गया कि यह प्रदर्शन धार्मिक नहीं है और न किसी धर्म को बचाने की लड़ाई है बल्कि यह मामला देश का और उस के संविधान का है। भारतीय होने के नाते उसे बचाने की ज़िम्मेदारी भारत के सभी नागरिकों की है।

इस हिन्दू मुस्लिम कार्ड के फेल हो जाने के बाद 19 जनवरी को ऐसा कुछ हुआ कि जिस ने पूरे देश को हिला दिया। 19 जनवरी को समाजी कार्यकर्त्ता और अभिनेत्री स्वर भास्कर ने जश्ने शाहीन बाग मनाने का एलान किया था। कश्मीरी पंडितों के नाम पर राजनीति करने वाली मुद्दा मुक्त पार्टी के बकैत नेताओं ने कुछ कश्मीरी पंडितों को शाहीन बाग भेजने का प्लान बनाया जहाँ वह CAA, NRC के समर्थन में धरना देने वाले थे। उन कश्मीरी पंडितों ने कहा कि आज ही के दिन कश्मीर में हमारी बस्तियां उजाड़ी गयी थी, भला आज के दिन जश्न कैसे मनाया जा सकता है।
शाहीन बाग की मुखर, निडर, देश प्रेमी, सामाजिक सौहार्द एवं सद्भाव वाली औरतों ने अपना स्टेज उन कश्मीरी पंडितों को सौंप दिया और कहा कि आप भी अपना एहतिजाज कर लो। जिन लोगों ने आप को कश्मीर वापस दिलाने का सिर्फ़ वादा कर के आप का इस्तेमाल किया हैं उन्हें भी मालूम होना चाहिए कि हम किसी के जले पर नमक नहीं लगाते।
 हम भारतीय हैं और इस मुल्क की मिटटी ने हमें मरहम लगाना सिखाया है। शाहीन बाग की औरतों ने कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार की निंदा की और सभी कश्मीरियों को गले से लगा लिया। इस का असर यह हुआ कि वह कश्मीरी पंडित भी शाहीन बाग की औरतों के साथ बैठ गए उन्हों कहा कि मैं इस नए कानून का समर्थन तो करता हूँ लेकिन तुम्हारे दर्द में शामिल हूँ।

आख़िर कार अंग्रेज़ों की गुलामी करने वाले दिमाग को कभी तो अक्ल आएगी और इस देश की मिटटी से प्यार करेगें। नए भारत का इन्कलाब हूँ मैं, गौर से देख मुझे, शाहीन बाग हूँ मैं।

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Monday, January 20, 2020

भारत का नया इन्कलाब, बाग़ी आग शाहीन बाग़ The News Revolution in India, Shaheen Bagh


भारत का नया इन्कलाब, बाग़ी आग शाहीन बाग़


[अब्दुल मोईद अज़हरी]
NRC, CAA और NPR के विरुद्ध धरना प्रदर्शन की बढ़ती सीमा और क्षेत्र अवधि विश्व के नामी, चर्चित, एतिहासिक और इतिहास के पन्नों पर अमर आंदोलनों में से एक दिल्ली का शाहीन बाग होता जा रहा है। महिला द्वारा संचालित शांति प्रदर्शन “बागी आग शाहीन बाग” इतने लम्बे दिनों तक चलने वाला एकलौता और एकमात्र इन्किलाबी आन्दोलन बनता जा रहा है। 2 डिग्री की ठंडी और बारिश भी इन महिलाओं का हौसला ना तोड़ सकी और न ही  500 रुपये की बिकाऊ औरतें कहने का घटिया इलज़ाम उन के इरादे नहीं तोड़ सका। इसी लिए देश के किसी भी कोने में महिलाओं द्वारा शुरू किये गए शाहीन बाग के समर्थन में प्रदर्शन को शाहीन बाग का नाम दिया जाने लगा।

इस प्रदर्शन में हर वर्ग के लोगों ने अपनी प्रतिष्ठा और प्रतिभा का प्रयोग किया। 2 माह का बच्चा इस ठिठुरती ठण्ड में आने वाले दिनों के लिए साक्ष्य बना तो 4 साल कि बच्चियों ने आज़ादी के नारे लगा कर भारत के भविष्य का एलान कर दिया। अंग्रेजों को भारत से भागते देखने वाली आँखों ने भी इस आन्दोलन को साहस दिया। दिल्ली की दादियों ने 80-90 वर्ष की आयु में घर में बैठ कर बेटों और बहुओं की सेवा पाने की बजाये देश को एक नई क्रांति देने के लिए सड़कों का रुख किया और सारी रात सड़क पर ही बैठ कर सरकार को उस की ग़लती चेताने का फैसला किया।
यह धरना इस लिए भी असाधारण है क्यूंकि इस शांति पूर्ण धरने को रोकने के लिए ऐसे ऐसे प्रयास किये गए जिस की उम्मीद कभी भी किसी सभ्य समाज या व्यक्ति से नहीं जा सकती है। इस धरने में बैठने वाली लड़कियों और औरतों में लॉ, साइंस, इकॉनमी, पोलिटिकल साइंस, मैथ और UPSC की तैयारी करने वाली देश बेटियां हैं। इन में से कुछ तो सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की लॉयर हैं। अब ऐसे लोगों के बारे में घटिया मानसिकता के लोगों ने यह कह दिया कि उन्हें CAA का फुल फॉर्म भी नहीं पता आख़िर कार ऐसा हुआ कि ख़ुद गृह मंत्री इस मामले में फिसल गए।
बात यहीं ख़त्म नहीं हुई। चरित्र और मानसिकता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस प्रदर्शन में शामिल होने वाली औरतों में ओखला के बड़े बड़े बिल्डर्स और व्यवसाइयों के घर की महिलाएं हैं जो ख़ुद सड़क पर धरना में हैं और अपने बच्चों को भी साथ में रखती हैं। इन के बारे में यह कहा जाये कि वह 500 से 700 रुपये लेती हैं। भारतीय जनता पार्टी के एक नेता ने तो घटियापन की सारी हदें पार कर दीं और इन प्रदर्शनकारियों को “बिकाऊ औरतें शाहीन बाग की” कह डाला। दुर्भाग्यवश देश के मीडिया चैनल जो पत्रकारिता के माथे पर दलाली का एक दाग है उस ने ट्विटर पर इस नाम का ट्रेंड चला दिया। एक तरफ देश के प्रधान मंत्री देश की बेटियों को पढ़ाने और बचाने की बात कर रहे हैं दूसरी तरफ बीजेपी के ही नेता और एक मीडिया चैनल सर ए आम मोदी की इस स्कीम की बैंड बजा रहे हैं।
शाहीन बाग ने अपने शांति पूर्ण प्रदर्शन के अलावा धैर्य, सद्भाव और सामाजिक सौहार्द का जो उदहारण प्रस्तुत किया है वह अतुल्य और सराहनीय है। शाहीन बाग रोज़ एक नया रंग लेता हुआ नज़र आ रहा है।

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